Book Review : इग्नोरेंशिया ज्यूरिस नॉन एक्सक्यूसैट! कुछ समझ आया...
दो कानूनविदों ने लोगों तक खासकर बच्चों में कानून की समझ बढ़ाने के लिए एक बेहतरीन पहल की है. इस पहल का नाम है लॉटून्स. 2014 में कानून को सरल तरीके से लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से इसकी शुरूआत की गई. यह अब कॉमिक्स के रूप में हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लोगों तक पहुंच गई है. इसको रचने वाली कानन ध्रु और केली ध्रु हैं.
अगर आपसे कहा जाए इग्नोरेंशिया ज्यूरिस नॉन एक्सक्यूसैट तो शायद एक ही प्रतिक्रिया होगी - क्या कहा? यह प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक भी है, क्योंकि हमें लैटिन भाषा की जानकारी नहीं है और ये उसी भाषा में कहा गया एक वाक्य है जो हमें कानून के बारे में बताता है. कानून एक ऐसा विषय है, जिसे लागू करने में सबसे बड़ी दिक्कत इसके बारे में समझ को लेकर ही है. वैसे इग्नोरेंशिया ज्यूरिस नॉन एक्सक्यूसैट का मतलब है कानून की जानकारी नहीं होना, कोई बचाव का कारण नहीं है. अब शायद आपमें से कुछ लोगों को इस शब्द का मतलब समझ आ गया होगा.
चलिए इसे और सरल करते हैं. आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में आपको एक पर्स या बैग पड़ा मिलता है. आप इधर–उधर देखते हैं. थोड़ी देर तक खड़े रहते हैं जब आपको उस बैग या पर्स का कोई मालिक नज़र नहीं आता है तो आप उसे उठाते हैं और अगले ही पल से आप खुद को उस बैग का मालिक मानने लग जाते हैं. इस तरह आप उस बैग को लेकर घर पहुंच जाते हैं. अगले दिन पुलिस आपके घर आती है और ये कहते हुए आपको पकड़ लेती हैं कि आपने फलाने आदमी का पर्स उठाया था. उसने आपके नाम पर शिकायत दर्ज की है. आप अदालत पहुंचते हैं और वहां ये कहते हैं कि मुझे ये पर्स रास्ते में मिला था. तो अगला सवाल आपसे पूछा जाता है कि अगर आपको रास्ते में मिला था तो आपने पुलिस को क्यों नहीं दिया. आप कहते हैं कि मुझे क्या मालूम था, मुझे तो लगा की रास्ते में पड़ी हुई चीज़ है कोई नामलेवा नहीं है तो ये मेरी हुई. कानून आपको सजा सुनाता है. आप ये कहते हैं कि मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी. आपकी ये दलील कोई मायने नहीं रखती है, क्योंकि कानून कहता है कि अगर आप किसी की भी सामान को उसके मालिक की मर्जी के बगैर लेते हैं तो वो चोरी कहलाती है.
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इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं- हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि किसी का भी सामान उसकी इजाज़त के बगैर नहीं उठाना चाहिए. ये हमारी सामाजिक व्यवस्था है और इसी को बनाए रखने और चलाए रखने के लिए कानून का निर्माण किया गया है, इसलिए इग्नोरेंशिया ज्यूरिस नॉन एक्सक्यूसैट मतलब कानून की जानकारी नहीं होना कोई बचाव का कारण नहीं है. दरअसल, कानून की प्रक्रिया जितनी जटिल है, इसकी भाषा उतनी ही मुश्किल है. अगर इसका सरलीकरण किया जाए तो इसे आसानी से समझा जा सकता है. जैसे ऊपर एक उदाहरण देने से बात काफी हद तक साफ हो गई और अगर हम बच्चों में शुरू से ये समझ पैदा करना शुरू कर दें तो शायद उनमें बड़े होने तक एक अच्छी कानून की समझ पैदा हो सकती है. वैसे भी हमारे देश में होने वाले अपराधों में एक हिस्सा जागरुकता की कमी की वजह से होने वाले अपराधों का ही है. मसलन घरेलू हिंसा, बच्चों के साथ मारपीट ये हमारी आम जिंदगी में इस तरह से घुल मिल गए हैं कि मारने वाला और मार खाने वाला इसे किसी तरह के अपराध की तरह लेता ही नहीं है. उसे लगता है ये तो होता है. वो संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य बस हमारी नैतिक शिक्षा की किताब तक सिमट कर रह जाते हैं, क्योंकि उनका सरलीकरण नहीं होता है, उन्हें रोचक ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जाता है.
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दो कानूनविदों ने लोगों तक खासकर बच्चों में कानून की समझ बढ़ाने के लिए एक बेहतरीन पहल की है. इस पहल का नाम है लॉटून्स. 2014 में कानून को सरल तरीके से लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से इसकी शुरूआत की गई. यह अब कॉमिक्स के रूप में हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लोगों तक पहुंच गई है. इसको रचने वाली कानन ध्रु और केली ध्रु हैं. कानन ध्रु ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कानून की पढ़ाई की. 2009 में उन्होंने कानूनी और राजनीतिक सुधारों पर काम करने के लिए 'रिसर्च फाउंडेशन फॉर गवर्नेंन्स इन इंडिया' नाम से एक संगठन की स्थापना की है. लॉटून्स की दूसरी लेखिका केली ध्रु ने कानून की पढ़ाई ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड जैसे विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से की.
क्या है लॉटून्स
लॉटून्स कॉमिक्स शैली में लिखी गई है, जिससे बच्चों को भी इसे पढ़ने में रुचि आती है. किताब में कानून को बहुत ही सरल भाषा और छोटी–छोटी कहानियों के माध्यम से समझाने की कोशिश की गई है. इसके बाद एक बार में बात दिमाग में उतर जाती है. मसलन.. लॉटून्स का किरदार पग्लू जब संविधान की किताब से निकले जज (नाम– जजनी) को देखकर चौंकता है तो वो पूछता है 'कौन?, तुम क्या हो?'. संविधान से निकला जज बोलता है, 'रेस इन्सा लॉंक्यूटर यानि चीज़ें अपने आप बातें करती हैं'. उसी दौरान वहां बैठा पग्लू का कुत्ता अपनी दोनों आंखो पर हाथ ऱखते हुए सोच रहा होता है, 'मुझे इन चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं है'. पग्लू के सवाल पर जज का ये बोलना की चीज़ें अपने आप बातें करती हैं, आपको कानून की बारीकी के बारे में बताता है कि सच अपने आप बोलता है उसे छिपाया नहीं जा सकता है. उसे बताने के लिए चीज़ें भी अक्सर जानकारी दे देती हैं. वहीं, पग्लू के कुत्ते का इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाते हुए आंख बंद करना ये समझाता है कि आप आंख मूंदकर भी कानून से बच नहीं सकते हैं, आपकी दिलचस्पी हो या ना हो आप इसके दायरे में हैं. हालांकि लैटिन भाषा के अनुवाद को लेकर कहीं-कहीं भाषा के तौर पर गड़बड़ नज़र आती है, जैसे इग्नोरेंशिया ज्यूरिस नॉन एक्सक्यूसैट का हिंदी अनुवाद- कानून को टालना कोई माफी नहीं है- थोड़ा उलझाने वाला लगता है, लेकिन जज उर्फ जजनी का कहानियों के माध्यम से अपनी बातों को समझाना किताब को ही नहीं कानून को भी बच्चों के लिए रोचक बना देता है.
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लॉटून्स एक लड़के पार्थ उर्फ पग्लू की कहानी कहती है. पग्लू को उसके जन्मदिन पर उसकी दादी एक किताब तोहफे में देती है. ये किताब उसके दादाजी की है. जन्मदिन की पार्टी में तब व्यवधान पड़ जाता है जब पग्लू की दोस्त बोज़ी एक गाना सुनाने की बात करती है जिससे पग्लू इंकार करता है. इस बहस में पग्लू का केक गिर जाता है और पग्लू रूठकर अपने कमरे में चला जाता है, जहां उसकी दादी की दी हुई किताब में से एक जिन्न जैसा किरदार बाहर निकलता है. पग्लू के पूछे जाने पर वो बोलता है कि वो जज है. इस तरह जज और जिन्न को मिलाकर पग्लू उसका नाम जजनी रख देता है. जजनी जिस किताब से निकला है वो हमारे देश का संविधान है. जज उसे बताता है कि ये किताब उसे इस बात की छूट देती है कि वह नाच गा सकता है, कलाकारी कर सकता है और कोई उसे रोक नहीं सकता है. इस बात को सुनकर जब पग्लू खुश होता है तभी जजनी उससे बोलता है कि भारत के सभी नागरिकों को ये अधिकार है, उसकी दोस्त बोज़ी को भी है. हालांकि कहानी में आगे बच्चे का सीधे सवाल पूछ लेना कि उसे कैसे पता चलेगा कि बोज़ी का गाना उसे नुकसान पहुंचा रहा है, एक बच्चे के हिसाब से थोड़ा परिपक्व सवाल लगता है. फिर जजनी का बारीकी को समझाए बगैर सीधे उसके नुकसान की बात करना भी कहानी की निरंतरता को तोड़ता है. इस सवाल के जवाब में आगे जजनी एक कहानी सुनाता है, जिसके मुताबिक शेखर नाम के आदमी के घर के पास एक सर्कस लगा. सर्कस में रात-दिन बहुत तेज आवाज़ में गाने बजते थे. इस शोर से शेखर बहुत परेशान हो जाता है औऱ पूरी रात एक पल भी चैन से सो नहीं पाता है, जिसकी वजह से वह दिन में भी ढंग से अपना काम नहीं कर पाता है. फिर वो पग्लू से सवाल पूछता है कि उसके हिसाब से सर्कस का शोरगुल नुकसानदायक है या नहीं? पग्लू इस बात का जवाब हां में देता है और कारण बताता है. पग्लू को बात समझ में आ जाती है औऱ वो बोज़ी को गाना गाने देता है. इस तरह से उसके जन्मदिन की पार्टी अच्छे से मनाई जाती है.
इसी तरह से छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से लॉटून्स में मौलिक अधिकारों को बेहद ही सरल तरीके से समझाया गया है. वैसे भी पुस्तकों में कॉमिक्स यानि चित्रों या फिर फिल्मों के जरिए बहुत आसानी और रोचकता के साथ अपनी बातों को प्रस्तुत किया जा सकता है. लॉटून्स इस काम को बखूबी निभाती है. इस तरह की पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित किए जाने की ज़रूरत है. बस किताब की चित्रों की क्वालिटी को अगर प्रकाशक बेहतर कर दें तो यह पुस्तक देश में कानून की समझ पैदा करने के मामले में मील का पत्थर साबित हो सकती है.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)