ऐतिहासिक जनादेश से दुबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने अब महानायक का दर्जा हासिल कर लिया है. दूसरी तरफ उनको चुनौती देकर जनता को न्याय देने की बात करने वाले राहुल गांधी अब विपक्षी नेता का दर्जा पाने में विफल हो गए हैं. नियमों के अनुसार लोकसभा की 543 सीटों में 10 फ़ीसदी सीटों पर जीत हासिल करने वाले दल के नेता को विपक्षी नेता का औपचारिक दर्जा दिया जाता है. कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत मिली है, जबकि विपक्षी नेता के दर्जे के लिए पार्टी को 55 सीटों की दरकार है. पिछले दौर की संसद में मोदी से गले मिलकर राहुल ने खूब ख़बरें बटोरीं थीं, अब इस बार क्या होगा?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इस बारे में नियम और पुराने विपक्षी नेता- विपक्षी नेता के वेतन इत्यादि के बारे में वर्ष 1977 में संसद ने कानून पारित किया था, लेकिन उसमे 10 फ़ीसदी सीटों की अनिवार्यता के बारे में कोई भी उल्लेख नहीं है. लोकसभा द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार न्यूनतम 10 फ़ीसदी सीट हासिल करने वाले सबसे बड़े दल के नेता को विपक्षी नेता का दर्जा दिया जाएगा. लोकसभा में सन 1969 से लेकर 2014 तक अनेक नेता जो विपक्षी नेता का दर्ज़ा हासिल कर चुके, उनमे जगजीवन राम, राजीव गांधी, पीवी नरसिंहराव, अटल बिहारी बाजपेई, शरद पवार, सोनिया गांधी, एलके आडवाणी और सुषमा स्वराज शामिल हैं. 



पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार के सदस्य होने के नाते राहुल को एसपीजी की सुरक्षा तो मिलेगी पर नेता विपक्ष का प्रोटोकॉल और सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी. मोदी सरकार के पिछले दौर में भी कांग्रेस के पास 44 सीटें थी, जिसकी वजह से उनके नेता मल्लिकार्जुन खड्गे को विपक्षी नेता का दर्जा नहीं मिल पाया था. इस बार लोकसभा में कांग्रेस के नेता राहुल होंगे या कोई और? प्रधानमंत्री पद की रेस में शामिल राहुल गांधी का अब विपक्ष का नेता नहीं बन पाना, कांग्रेस के साथ संसदीय लोकतंत्र के लिए भी चिंतनीय है.



क़ानून में बदलाव होगा या गतिरोध होगा
देश के अनेक संवैधानिक संस्थानों में नियुक्तियों के लिए बनाई गई समितियों में लोकसभा में विपक्ष के नेता को भी शामिल किया गया है. सन् 2003 में बने क़ानून के अनुसार केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या सीवीसी की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में नेता विपक्ष की समिति का प्रावधान है. लेकिन इस क़ानून में दी गई. छूट के अनुसार 10 फीसदी सीट नहीं मिलने पर भी लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता को सीवीसी की चयन समिति में शामिल किया जा सकता है. मुख्य सूचना आयुक्त या सीआईसी की नियुक्ति के लिए भी प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में विपक्ष की नेता की समिति का प्रावधान है, लेकिन इसमें भी 10 फ़ीसदी न्यूनतम सीटों के बारे में कोई अनिवार्यता नहीं है. 


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या एनएचआरसी में नियुक्ति के लिए एक बड़ी समिति का प्रावधान है, जिसमे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा में डिप्टी चेयरमैन, लोकसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता को शामिल किया जाता है. एनएचआरसी में नियुक्ति के लिए 1993 में बनाए गए कानून के अनुसार चयन समिति में यदि कोई वैकेंसी है, तो भी नियुक्ति की जा सकती है. लोकपाल के वर्ष 2013 में बनाए गए क़ानून के अनुसार चयन समिति में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता और वरिष्ठ न्यायविद को शामिल करने का प्रावधान है. इस क़ानून के अनुसार चयन समिति में वैकेंसी होने पर भी नियुक्ति की जा सकती है. 



सीबीआई चीफ की नियुक्ति के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, लोकसभा में विपक्ष के नेता को शामिल करने का प्रावधान है. यदि किसी दल को 10 फीसदी सीट हासिल नहीं हुई तो सबसे बड़ी पार्टी के नेता को सीबीआई की चयन समिति में शामिल करने का प्रावधान है. कांग्रेस के नेता को विपक्षी नेता का दर्ज़ा नहीं मिलने पर क़ानून में आपसी सहमती से बदलाव होगा या गतिरोध होगा?
 
गठबंधन सरकार बन सकती है तो फिर गठबंधन का विपक्ष क्यों नहीं-  पिछले 5 वर्षों के बाद अब दूसरी बार स्पष्ट बहुमत से सरकार गठित हो रही है. संविधान में गठबंधन सरकार के बारे में स्पष्ट प्रावधान नहीं है, फिर भी देश में 30 सालों तक गठबंधन सरकार का दौर रहा. संसदीय लोकतंत्र में सरकार के साथ मजबूत विपक्ष का होना भी बहुत जरूरी है कांग्रेस ने यूपीए गठबंधन में चुनाव लड़ा, जिसे 10 फीसदी से ज्यादा सीटें मिलीं हैं. क्या यूपीए गठबंधन के नेता को विपक्षी नेता का दर्ज़ा दिए जाने पर संसद में विचार और सहमति होगी.



भाजपा का संकल्पपत्र और मोदी के लिए चुनौती- भाजपा के संकल्प पत्र में राम मंदिर का निर्माण, कश्मीर में धारा 370 और 35-A की समाप्ति. देशभर में एनआरसी लागू करना और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे विषय शामिल हैं, जिन पर सहयोगी दलों की सहमति नहीं है. लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया है और आने वाले समय में राज्यसभा में पूर्ण बहुमत की उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट या मध्यस्थता से यदि समाधान नहीं हुआ, तो मोदी सरकार पर अध्यादेश या कानून बनाने का दबाव रहेगा. नयी परिस्थितियों में विपक्षी दल के नेता के नाते राहुल गांधी क्या निर्णय लेंगे, इससे कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य तय होगा.


(लेखक विराग गुप्‍ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं. Election on the Roads पुस्‍तक के लेखक हैं.)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)