भारत के सबसे पवित्र त्योहारों में एक है नवरात्र, दुर्गापूजा है. 9 दिन तक देश में बेटियां पूजी जाएंगी, उनको भोज कराया जाएगा. असलियत में अगर हम देश में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ़ होने वाले अपराध की बात करें तो आंखें शर्म से झुक जाती हैं. मुझे इस बार का नवरात्र बहुत अलग नज़र आ रहा है, क्योंकि बेटियां अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न पर मुखर हो रही हैं. भले ही यह काम अभी सोशल साइट्स पर हो रहा है. यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं महिलाएं खुलकर अपनी बात कह रही हैं. वो बता रही हैं कि आखिर उनकी पीड़ा क्या है. यहां बात की जा रही है #MeToo कैंपेन की.


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एक साल पहले हॉलीवुड से शुरू हुआ अभियान भारत में दोबारा अपने चरम पर है. #MeToo के साथ महिलाएं जीवन में अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के बारे में बता रही हैं. #MeToo यानि मैं भी, यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हूं.
 
बॉलीवुड में तो #MeToo ने तहलका मचा दिया है. नाना पाटेकर, विकास बहल, कैलाश खेर, ज़ुल्फी सैय्यद से लेकर संस्कारी बाबूजी आलोक नाथ तक पर यौन उत्पीड़न का आरोप है. 10 साल बाद अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. कैलाश खेर, जुल्फी सैय्यद पर महिला पत्रकारों ने गलत तरीके से छूने का आरोप लगाया. लेकिन सबसे ज्यादा सनसनीखेज़ आरोप लगा है बॉलीवुड के संस्कारी बाबूजी कहे जाने वाले आलोक नाथ पर. आलोक नाथ पर आरोप 80 से 90 के दशक में टेलीविजन की जानी मानी प्रोड्यूसर और लेखिका विंटा नंदा ने लगाया है. विंटा नंदा ने सोशल मीडिया पर लंबा सा पोस्ट लिखा और अपनी आप बीती लोगों को बताई. विंटा ने पोस्ट के ज़रिए आलोक नाथ पर बलात्कार का आरोप लगाया है. कॉमेडी ग्रुप एआईबी के कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती पर वहां पर काम करने वाली महिलाओं ने शोषण का आरोप लगाया था. अब इस मामले पर कॉमेडी ग्रुप एआईबी ने खुद अपनी गलती स्वीकार की है और माफी मांगी . लेकिन इस मामले में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म हॉटस्टार ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए एआईबी का शो रद्द कर दिया है.


बॉलीवुड को लेकर जो मामले सामने आ रहे हैं वो बहुत हैरान करने वाले नहीं हैं. लेकिन #MeToo कैंपेन के तहत बहुत ही साधारण सी लड़कियां, महिलाएं अपना दर्द साझा कर रही हैं. कुछ खुलकर यौन उत्पीड़न करने वाले का नाम लिख रही हैं, तो कुछ बिना नाम लिए भी अपनी बात लिख रही हैं. #MeToo को लेकर एक तबके में अजीब सी बेचैनी है, ये शायद वो डर है जो महिलांओं के बोलने का है. लड़कियां बेबाकी के साथ भले ही अपनी बात कह रही हैं, लेकिन उन पर एक वर्ग निशाना भी साध रहा है, कहा जा रहा है कि ये सब पब्लिसिटी के लिए है. लेकिन मेरा सवाल सिर्फ़ इतना है कि क्या किसी लड़की के लिए वाकई इतना आसान है अपने साथ हुए उत्पीड़न को बयां करना ? क्या वाकई इतना आसान है उस ज़ख़्म को कुरेदना जिसके भरने की एक लड़की तमाम उम्र दुआ करती है? क्या वाकई इतना आसान है सबकुछ कह देना कि उसका बचपन, जवानी किसी घिनौने शख्स के घिनौने इरादों का शिकार हुई है? नहीं आसान कुछ भी नही हैं. आसान ये भी नहीं कि हम स्वीकार कर पाएं अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को. कई दफ़ा तो तमाम उम्र कोशिश करते रहे हैं लेकिन किसी से कुछ कह नहीं पा रहे हैं. विंटा नंदा जैसी सशक्त मानी जाने वाली प्रोड्यूसर और लेखिका को अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न से निकलने में, उसे सबके सामने कहने में 20 साल लग गए. वो लिखती हैं कि मैं 20 साल बाद इतनी मज़बूत हुई हूं कि उस घटना को लोगों के सामने बयां कर पाऊं.


जब कोई लड़की अपने जीवन के किसी भी पड़ाव पर यौन उत्पीड़न का शिकार होती है, तो ज़्यादातर गहरे अवसाद में चली जाती है जिससे निकलने में एक अरसा लगता है या फिर पूरी उम्र ही लग जाती है. ऐसे में अगर अब #MeToo अभियान के तहत महिलाएं अपने साथ हुए उत्पीड़न को बता रही हैं, तो हमें उनका हौसला बनना चाहिए. क्योंकि यौन उत्पीड़न ऐसा दंश है जो सिर्फ़ सांसे नहीं छीनता बल्कि आत्मा को मार देता है. उसे छलनी कर देता है.


मुझे हैरानी इस बात की है कि सोशल मीडिया पर महिलाएं खुलकर #MeToo के तहत यौन उत्पीड़न की बात कह रही हैं, तो उनको शक की नज़र से देखा जा रहा है. उनसे कहा जा रहा है कि इतने साल बात ये बातें क्यों, उस समय पुलिस रिपोर्ट या किसी से क्यों नहीं कहा. लेकिन ऐसा नहीं है कि हर पीड़ित महिला खामोश रही हो, कई दफ़ा परिवार साथ नहीं देते हैं. आज बच्चों के यौन उत्पीड़न को लेकर  में जागरुकता आई तो है, लेकिन क्या यही जागरुकता 15-20 साल पहले थी. नहीं, तब किसी का ध्यान गुड टच या बैड टच की तरफ़ जाता ही नहीं था. यौन उत्पीड़न करने वालों में सबसे ज़्यादा रिश्तेदार या फिर करीबी होते हैं और ये बात आंकड़े भी बताते हैं. लेकिन अकसर इज्ज़त के नाम पर बच्चियों को खामोश रहने को कहा जाता है. आज जब सोशल मीडिया एक मज़बूत और बड़ा प्लेटफॉर्म है, अपनी बात कहने का तो लड़कियां बोल रही हैं, लिख रही हैं, अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को सबसे सामने लाने की हिम्मत दिखा रही हैं.


 #MeToo के ज़रिए मैं भी अपने साथ 5-6 साल की उम्र में हुए यौन उत्पीड़न को लिख चुकी हूं.शायद ये हिम्मत कभी नहीं आती, लेकिन #MeToo ने मुझे ये हौसला दिया कि मैं बता पाऊं कि मैं भी शिकार हुई हूं यौन उत्पीड़न की. बचपन के मासूम मन में एक घिनौनी याद हमेशा के लिए घर कर गई, लेकिन मुझे सुकून है कि मैंने लिखा. जो लिख रही हैं उनको मेरा सलाम है. ये कन्याओं को पूजने वाला देश है तो अब इन देवियों ने दुर्गा का रूप धर लिया है. हां #MeToo भले ज़मीनी स्तर पर ना हो, गांव, कस्बों की औरतें, लड़कियां भले इस अभियान का हिस्सा ना हों, लेकिन यक़ीन करिए एक ना एक दिन ये बात ज़रूर उन तक पहुंचेगी और वो भी बोलेंगी.


कुछ लोग इस अभियान को हवा हवाई बता रहे हैं, लेकिन सब कुछ हवा हवाई नहीं होता है. छोटी सी चिंगारी बड़ी आग बनती है. एक पहले शुरु हुआ #MeToo बीच में लगभग ख़त्म सा हो गया था, लेकिन जिस तरह से देश की महिलाओं ने इसे दोबारा ज़िंदा किया है सलाम है उन्हें. बोलिए क्योंकि बोलना ज़रूरी है, हमारी चुप्पी किसी और के यौन शोषण की वजह बन सकती है.