असमां जहांगीर : शांतिदूत जिसने पाकिस्तानी ही नहीं भारतीयों के लिए भी किया संघर्ष
असमां पाकिस्तानी सेना की आंख की किरकिरी बनीं रहीं. इसलिए उन्हें कई बार जान से मारने की कोशिश की गई. भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मुद्दे पर तो असमां ने पाकिस्तानी हुकूमत तक को आड़े हाथों ले लिया था.
इंसानी हकूक़ों की पैरोकार असमां जहांगीर बड़ी खामोशी से इस दुनिया को अलविदा कह गईं. मानवाधिकारों, महिलाओं, पिछड़ों, मज़लूमों के लिए अपनी ज़िंदगी लगाने वाली असमां जहांगीर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. असमां भले पाकिस्तान में पैदा हुईं हों और पाकिस्तान में ही सुपुर्द-ए-ख़ाक़. लेकिन उनकी पहचान पाकिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में रही. असमां जहांगीर का 66 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उनकी मौत की ख़बर से हिंदुस्तान-पाकिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम हिस्सों में मातम पसर गया. असमां ने अपनी ज़िंदगी इंसानियत के नाम की. वो अपने पिता की दिखाई राह पर चलीं और आखिरी सांस तक इंसानियत के लिए लड़ती रहीं. असमां जहांगीर हमेशा से पाकिस्तान के हुक्मरानों और कट्टरपंथी-दक्षिणपंथियों को चुभती रहीं.
असमां जहांगीर सिर्फ़ पाकिस्तान में मज़लूमों, शोषितों के लिए फरिश्ता नहीं थीं बल्कि वो पाकिस्तान में कैद सरबजीत, कुलभूषण जाधव जैसे भारतीयों के लिए भी इंसाफ़ की लड़ाई लड़ती रहीं. असमां पाकिस्तानी सेना की आंख की किरकिरी बनीं रहीं. इसलिए उन्हें कई बार जान से मारने की कोशिश की गई. भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मुद्दे पर तो असमां ने पाकिस्तानी हुकूमत तक को आड़े हाथों लिया था. असमां ने कहा था कि कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान को राजनीतिक पहुंच की अनुमति देनी चाहिए. असमां ने कुलभूषण के परिजनों से पाकिस्तान में हुई बदसलूकी पर भी पाकिस्तानी हुकूमत पर सवाल उठाया था कि पता नहीं उन्हें किसने यह सलाह दी, उन्हें यह समझना चाहिए कि इसकी प्रतिक्रिया भारत की जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों पर भी हो सकती है.
हिंदुस्तान में असमां जहांगीर की मौत के बाद शोक है. क्योंकि असमां जहांगीर सरहदों से परे रहीं. वो हक़ की लड़ाई लड़ती रहीं. जिसके बदले में उन्हें पाकिस्तान में गद्दार तक कहा गया. एक औरत पाकिस्तान के कट्टरपंथ, तानाशाही, सैनिक शासन के खिलाफ़ खुलकर लड़ती रही. उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं, वो जेल गईं लेकिन वो डिगी नहीं. उन्हें कोई डरा नहीं पाया उन्हें कोई रोक नहीं पाया. कुछ दिन पहले एक चैनल की डिबेट में असमां ने पाकिस्तानी सेना के जनरलों को डफर बताते हुए कब्जा ग्रुप तक कह डाला था. असमां के अनुसार पाकिस्तान के जनरल प्लाट पर कब्जा करने और गोल्फ खेलने के काम में ही मगन रहते हैं, उन्होंने देश को आतंकवाद का अड्डा बना दिया है.
यह भी पढ़ें- इस ख़ामोशी का खामियाज़ा सबको भुगतना पड़ेगा!
असमां अमन, प्यार का पैगाम देते हुए इस दुनिया से रुख़सत हो गईं. लोकतंत्र समर्थक अभियानों ने असमां को इंटरनेश्नल लेवल पर पहचान दिलवाई, लेकिन वो अपने ही मुल्क़ में बंदूक के निशाने पर रहीं. असमां जहांगीर के पिता मलिक गुलाम जिलानी ने पूर्वी पाकिस्तान में सेना के अत्याचारों का विरोध किया था जिसका नतीजा ये हुआ कि उन्हें और उनकी बहन को गद्दार की औलाद तक पुकारा गया. असमां ने खुलकर पाकिस्तान में तानाशाही, कट्टरपंथियों की मुखालफ़त की. पाकिस्तान में सबसे खतरनाक कानून है ईशनिंदा कानून, जहां किसी को भी ईश्वर की निंदा करने पर मौत के घाट उतार दिया जाता है. असमां जहांगीर ने खुलकर इस कानून का विरोध किया. यह जानकर भी वह पीछे नहीं हटी कि इस कानून के समर्थन में पाकिस्तान का कट्टर समाज खुलकर उनका विरोध करेगा.
1983 में पाकिस्तान में एक 13 साल की लड़की के साथ बलात्कार हुआ था, जिसके चलते वह गर्भवती हो गई थी. पाकिस्तान के कानून के अनुसार उसे जिना बनाने (शादी से पहले संबंध) के आरोप में जेल में डाल दिया गया. असमां खुलकर इस निर्णय के विरोध में खड़ी हो गई और राष्ट्रपति जिया उल हक के निर्णय को चुनौती दी. इसके बाद वह पाकिस्तान में काफी लोकप्रिय हुईं.
यह भी पढ़ें- दिनदहाड़े सड़क किनारे हुए बलात्कार को देखने वालों ने अपनी पत्नी, बेटी, मां से क्या कहा होगा!
असमां पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला अध्यक्ष थी और उन्हें महिला सशक्तिकरण की मिसाल माना जाता था. वो यूनाइटेड नेशन्स के लिए ह्यूमन राइट जर्नलिस्ट का भी काम करती रहीं. साल 2007 में जब पाकिस्तानी शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी को पद से हटा दिया तो इसके बाद शुरू हुए वकीलों के आंदोलन का असमां ने खुलकर समर्थन किया. एक बड़े आंदोलन के बाद मुशर्रफ को पूर्व चीफ जस्टिस चौधरी को दोबारा बहाल करना पड़ा.
असमां जहांगीर की कामयाबी ये है कि उनके निधन के बाद उनके समर्थकों और विरोधियों ने भी शोक व्यक्त किया है. मानवाधिकार कार्यकर्ता जिब्रान नासीर ने ट्वीट करते हुए लिखा कि असमां जहांगीर के सबसे बड़े आलोचक, विरोधी भी इससे इंकार नहीं कर सकते हैं कि वो अपनी आज़ादी और अधिकारों की सुरक्षा के लिए उनके ऋणी हैं. लोकतंत्र के लिए संघर्ष के ज़रिए उन्होंने हम सभी की ज़िंदगी को आकार देने का काम किया है और वो हमारे ज़हन में ज़िंदा रहेंगी. न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है.
यह भी पढ़ें- माह-ए-इश्क़ में मजहब के नाम पर मोहब्बत का बेरहम कत्ल
असमां जहांगीर इंसानियत की आवाज़ थीं. वो हमेशा अमन की पैरोकार रहीं. वो चाहती तो पाकिस्तान में धमकियां मिलने के बाद मुल्क़ छोड़ सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगी खपाने वाली असमां मज़बूत इरादों वाली औरत थीं जो कट्टरपंथियों, तानाशाहों की धमकियों से हिली नहीं. साल 2012 में असमां ने कही कि उनकी हत्या की साजिश सुरक्षा प्रतिष्ठान के शीर्ष स्तर पर की गई है. उन्होंने कहा कि वो दूसरे कार्यकर्ताओं की तरह देश छोड़कर बाहर से अपना काम नहीं करेंगी बल्कि अपने मुल्क़ में ही रहेंगी. वो कहती थीं कि मेरी ज़रूरत पाकिस्तान को है.
असमां जहांगीर उन लोगों के लिए उम्मीद की रोशनी थी जो मज़लूम थे, जो समाज के सबसे निचले पायदान पर थे. असमां चलीं गईं बहुत जल्दी. अभी दुनिया को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी. हिंदुस्तान पाकिस्तान की सरहद पर फैले तनाव के बीच असमां जहांगीर जैसी शख्सियत सुकून, अमन, मोहब्बत के झोंके की मानिंद थीं. वो इंसानियत के लिए, इंसान को इंसाफ़ दिलाने के लिए दुनिया में जानी जाएंगी. भले असमां जहांगीर इस दुनिया से अलविदा कह गईं हों लेकिन वो एक सोच थीं और सोच कभी मरा नहीं करती है. असमां जहांगीर को ये दुनिया अमन के पैरोकार, शांतिदूत के रूप में जानेगी. असमां जहांगीर आप ज़िंदा रहेंगी तब तक जब तक इंसानियत ज़िंदा है. इस जहां से आपको अलविदा लेकिन आप हैं हमारे बीच हमेशा मोहब्बत,अमन का फरिश्ता बनकर.
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)