राजेश कटियार का परिचय एक लाइन में यों दिया जा सकता है कि वे आपको कुछ सिखा नहीं सकते लेकिन आप उनसे सीख बहुत कुछ सकते हैं...पिच्च की ध्वनि के साथ मुंह से खून की तरह थूक को उगल कर होंठो के किनारों को हाथ से साफ करते हुए राजेश बाबू ने अपने बाजू में बैठे लड़के की ओर देखते हुए पूछा, ‘क्यां बताएं’.. ‘जी जो जानते हों, आप पत्रकार हैं तो आपके पास तो बहुत कुछ होगा बताने के लिए’ . लड़के ने अपनी गर्दन को हल्का सा मोड़ते हुए जवाब दिया . दोनों पप्पू की दुकान पर बैठे हुए थे . लड़का चाय की चुस्की ले रहा था औऱ राजेश कटियार पान चुभला रहे थे. अब तक उनका मुंह फिर से पान की नदी से भर गया था.


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बनारस में अमूमन हर किसी के मुंह की तुलना आप कुंए से कर सकते हैं जिसमें से पानी निकालने के बाद थोड़ी देर बाद झिरी से रिस रिस कर पानी फिर से भर जाता है. उन्हें इस झिरी को मुंह में रख कर बोलने की और सामने बैठे हुए को समझने की आदत है. नए के लिए यह नया है, इसलिए राजेश जी को कोई भी बात दो बार बोलनी पड़ रही थी. एक तो आदत के अनुसार उन्हें लगा कि सामने वाला मुंह में भरी नदी के साथ बात समझ जाएगा. जब सामने वाला उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा तो फिर नदी को बहा कर वो दोबारा अपनी बात बोलते थे . अभी दस मिनिट में वो ऐसा पांच बार कर चुके थे. लेकिन साथ बैठे ल़ड़के को अभी भी अक्ल नहीं आई थी औऱ वो उनका पान खत्म करवाने पर आमादा था . ( दर दर गंगे से पुस्तकांश)


अगर आप बनारस जाते हैं तो वहां आपको सामने वाली की बात डीकोड करना आना चाहिए क्योंकि वो अपने मुंह मे भरा हुए तंबाकू से लबरेज पान की कुर्बानी किसी कीमत पर नहीं कर सकते हैं. यहां तक कि इलाहाबाद, बनारस कहीं भी आप किसी से अगर रास्ता पूछते हैं और उसके मुंह में तंबाकू मौजूद है तो वो अपनी गर्दन को ऊपर-नीचे, दाएं –बांए घुमा कर रास्ता बताता है. इस दौरान वो अपने निचले होंठ को आगे करके, मुंह को हल्का सा खोल कर और गर्दन को टेढ़ा करके मुंह से बोलेगा भी जिसमें आपको सिर्फ गोंगियाने का स्वर सुनाई देगा.


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कानपुर से लेकर बनारस तक लोगों के मुंह इसी तरह से भरे रहते हैं. यहां हर साल कितने लोगों की मौत तंबाकू खाने से होती है इसका सही आंकड़ा तो नहीं है लेकिन यहां की सड़कों पर घूमते हुए आपको तंबाकू की लत की भयावह तस्वीर देखने को मिल जाती है. पहले लोग पान खाया करते थे फिर उसकी जगह पाउच ने ले ली. जिसने इस तस्वीर को और भयानक रूप दे दिया . इसी भयानक तस्वीर का एक रूप भोपाल में देखने को मिलता है जहां हर दूसरा आदमी, हर गली नुक्कड़ पर, छोटा क्या, बड़ा क्या सभी एक पाउच फाड़ कर गर्दन पीछे करके मुंह में डालते हुए दिख जाते हैं.


कुछ दिनों पहले भोपाल से खबर मिली कि बड़े भाई के दोस्त की कैंसर से मौत हो गई. चालीस बसंत भी नहीं देख सके भाई के दोस्त की मौत का सदमा उसकी मां नहीं झेल पाई और उसके चौथे के दिन उनका भी स्वर्गवास हो गया. अब उसके पीछे दो छोटे बच्चे और पत्नी रह गई हैं. जिन्हे ता-उम्र इसी पछतावे के साथ गुज़ारना है कि काश वो गुटखा खाना छोड़ देते तो ये दिन नहीं देखने को मिलता . सबसे खास बात ये हैं कि मरने वाले के दोस्त उसकी अंत्येष्टि में जब पहुंचे तब भी उनके मुंह में गुटखा था. बात करने पर सब अपने अपने तर्कों से ये समझाने की कोशिश करने नजर आए कि वो ज्यादा खाता था, या गलत ब्रांड खाता था, या तरीका गलत था वगैरह-वगैरह . कुछ तो ये तर्क भी देते हुए मिल जाते हैं कि वो इसलिए बीड़ी-पत्ती को मल कर खाते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि गुटखा कितना नुकसान करता है.


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इसी तरह अगर सिगरेट की बात की जाए तो वहां भी लोग इसी तरह के तर्कों को देते हुए नज़र आते हैं, शायद वो खुद को समझा रहे होते हैं. फिल्म शुरू होने से पहले तंबाकू, बीड़ी, खैनी जैसे उत्पादों के इस्तेमाल ना करने वाला विज्ञापन हो या फिर सिगरेट के पैकेट पर छपी हुई भयानक तस्वीर, इसका कोई विशेष फर्क नज़र नहीं आता है.


हमारे घर में डैडी एक वक्त में चैन स्मोकर थे. सिगरेट पीने की लत का ये आलम था कि जब एक सिगरेट बुझने वाली होती थी तो उससे ही दूसरी सिगरेट जल जाती थी. कितनी बार तो ऐसा भी हुआ है कि जलती हुई सिगरेट हाथ में लिए हुए किताब पढ़ने में मशगूल डैडी ने सिगरेट से गद्दे का अंतिम संस्कार किया. फिर जब डैडी टीबी के सबसे अंतिम स्टेज पर जा पहुंचे और डॉक्टर से इलाज शुरू हुआ तो डॉक्टर ने डैडी को सिर्फ यही कहा था कि अगर तुम छिपकर, बाथरूम मैं बैठ कर यहां किसी को बगैर बताए सिगरेट पियोगे तो पी सकते हो बस ध्यान रखना जो होगा वो तुम्हारे साथ ही होगा.


खास बात ये थी की सलाह देने वाले डॉक्टर जो भोपाल के टीबी हॉस्पिटल के प्रमुख थे वो खुद सिगरेट पीने के आदी थे. यहां तक कि जब वो सिगरेट पीते हुए डैडी को ये सलाह दे रहे थे तब भी उन्होंने यही कहा था कि हम अपनी जिंदगी के लिए खुद ज़िम्मेदार है. डैडी ने उसी वक्त सिगरेट से तौबा की और लगभग दो साल की कठिन इलाज के बाद वो ठीक हो पाए थे .


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एक बार कहीं पढ़ा था कि सिगरेट के आदि अजय देवगन अपनी सिगरेट के नुकसान को कम करने के लिए उसके फिल्टर में छेद कर देते हैं जिससे कम निकोटिन अंदर जाए. सिगरेट आप एक पिएं या ज्यादा, तंबाकू एक बार खाएं या मुंह में भर कर रखे वो नुकसान करेगा ही. दिल्ली जैसे शहर में जहां बगैर सिगरेट जलाए हर आदमी पांच से छह सिगरेट पीने को मजबूर है वहां अगर किसी को सिगरेट पीने की लत हो तो सोचिए उसके शरीर के साथ क्या हो रहा होगा.


अनुराग कश्यप की स्टीफन किंग की लघुं कथा, क्विटर,इन्क पर आधारित नो स्मोकिंग सिगरेट की लत पर बनी बेहतरीन फिल्मों से एक है. ये निये-नोए (डार्क सिनेमा) फिल्म बुरी तरह से पिटी थी लेकिन उसके बावजूद ये अनुराग कश्यप के बेहतरीन कामों में से एक है. फिल्म की कहानी एक रईस बिजनेसमेन की है जिसे सिगरेट पीने की लत है. उसकी लत इस कदर बढती है कि उस हॉस्पिटल जाना पड़ता है. यहां तक कि उसकी बीवी भी उसे छोड़ देती है. तब वो अपने दोस्त के कहने पर एक बाबा के पास जाता है जो सिगरेट छुडवाने का काम करते हैं. वहां सबसे पहले उस पर कुछ आरोप लगाए जाते हैं जिसमें पहला आरोप अपने प्रिय को सिंगरेट के धुंए से भरे हुए गैस चैंबर में रखकर मारने की कोशिश का है, फिर ये बताया जाता है कि उसने कितने लाख सिगरटें पीने में फूंक दिये.


इस तरह से उसे बताया जाता है कि अगर वो आगे सिगरेट पीता है तो सबसे पहले उसे अपनी उंगली से हाथ धोना पड़ेगा, फिर भी नहीं माना तो उसके सबसे प्रिय को जान ले ली जाएगी और उसके बाद भी अगर वो सिगरेट पीना नहीं छोड़ता है तो उसकी आत्मा को उसके शरीर को निकाल लिया जाएगा. ट्रांस में ले जाती फिल्म में अत आते आते आपको सिगरेट से होने वाले नुकसान समझ आने लगते है. रूपक के तौर पर अपनी बात कहने वाली इस कहानी का लब्बोलुआब यही है कि सिगरेट आपकी जिंदगी ही नहीं आपके परिवार की जिंदगी भी छीन लेती है साथ ही आप कई बार एक जीती जागती लाश बन कर रह जाते हो जिसके पास जान तो है लेकिन आत्मा नहीं है .


इसी तरह 2003 में आई ह़ॉरर फैंटेसी फिल्म, डरना मना है की नो स्मोकिंग कहानी भी सिगरेट की लत और उसे छुड़वाने के अतिरेक को प्रस्तुत करती है. एक फोटोग्राफर जिसे सिगरेट पीने की लत है वो एक होटल में रुकने जाता है तो वहां का मालिक उसे बताता है कि यहां सिगरेट पीना मना है. उसकी बात को मानते हुए फोटोग्राफर बाहर सिगरेट पीने चला जाता है तो होटल मालिक उसके पीछे वहां पहुंच जाता है और उसे बताता है कि आपकी सिगरेट छूट जाएगी.


साथ ही वो उसे सिगरेट से होने वाले नुकसान के बारे मे भी बताता है जब उसे लगता है कि फोटोग्राफर उसकी बात पर कान नहीं दे रहा है तो फिर वो उसे अपनी होटल के बेसमेंट में लेकर जाता है जहां लाशों का ढेर लगा होता है वो उनकी ओर इशारा करते हुए बताता है कि इन सभी को सिगरेट पीने की लत थी. ये कहते हुए कि वो फोटोग्राफर को कमरे में बद कर देता है . कुछ दिन बाद उस फोटोग्राफर को भी उसी होटल में नौकरी करते हुए दिखाते है. वहां एक आदमी रुकने के लिए आता है जिसके मुंह में सिगरेट दबी हुई है उसे फोटोग्राफर सिगरेट पीने के लिए मना करता है. जब वो नहीं मानता है तो फोटोग्राफर बंदूक निकालकर उसे गोली मार देता है. फिर वो और होटल मालिक दोनों मुस्कुराने लगते हैं. इसलिए इस बार एक बार फिर सोचिए क्योंकि तंबाकू सेवन से डरना ज़रूरी है.


(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)