जया बच्चन के खिलाफ जो कुछ भी कहा सुना गया वह निंदनीय है. जयाजी के साथ अपनी राजनीतिक सीमाओं से भी परे विपक्षी दलों की महिला राजनीतिज्ञों का आना सुखद है, आखिर आधी आबादी के सवाल हैं. कई बार सोचने में यह आता है कि यह बात जयाजी को छोड़ किसी और के बारे में कही जाती, तो क्या सचमुच ऐसी व्यापक प्रतिक्रिया आती. क्या सचमुच हमारा समाज महिलाओं के अपमान के मामले में इतना संवेदनशील है अथवा वह इसलिए संवेदनशील हुआ क्योंकि मामला जयाजी से जुड़ा हुआ है. वरना तो समाज महिलाओं को महिला बनाने के लिए इतनी सफाई के साथ उसके जेहन में वह बातें बैठा देता है जो कोई भी मानवीय इकाई स्वीकार नहीं कर सकती है. क्या कोई भी व्यक्ति के रूप में यह बात स्वीकार कर सकता है कि किसी भी परिस्थिति में उसके साथ हिंसक व्यवहार किया जाए, जबकि किसी भी गलती को सुधारे जाने के रूप में संवाद के साथ-साथ कई और भी सम्मानजनक रास्ते खुले हो सकते हैं. आखिर इसी देश में तो महात्मा गांधी ने ऐसे कई उपायों को आजमा कर उन्हें सफलतम रूप में स्थापित भी किया, कमोबेश यह रास्ते महिलाओं के मामले में हमारे अपने घर-परिवार के दायरे में अपनाए नहीं जाते. आखिर कैसे महिलाओं के मानस में यह बैठा दिया गया है कि कुछ परिस्थितियों में महिलाओं के साथ मारपीट की जा सकती है.


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देखिए कि हमारे समाज में लैंगिक असमानता और भेदभाव की खाई इतनी गहरी है कि महिलाएं अपनी पिटाई को सही मानने लगी हैं. यह सालों-साल से चली आ रही पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था का असर है. जो हमारे समाज में गहरे तक बैठा दिया गया है, यह कम नहीं हो रहा. 


इस बारे में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के आंकड़े इस भयावह तस्वीर को सामने लाते हैं. सर्वेक्षण में बताया गया है कि महिलाओं की तकरीबन आधी आबादी मानती है कि किन्हीं परिस्थितियों में पति यदि पत्नी को शारीरिक या मानसिक दंड दे तो वह जायज होगा. 38 फीसदी महिलाएं मानती हैं कि यदि महिला ससुराल में अपने रिश्तेदारों का अनादर करती है तो उसे पीटा जा सकता है. 28 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि यदि महिला अपने पति से बहस करे तो उसे पीटा जा सकता है. 27 प्रतिशत महिलाएं यह भी मानती हैं कि यदि पति को पत्नी का व्यवहार शंकास्पद लगता है तो वह उसे पीट सकता है.


पुरुषों की भी ऐसी ही मान्यता है. 43 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि किन्हीं खास हालातों में महिलाओं का पीटा जाना जायज है. जैसे यदि पत्नी अपने ससुराल में रिश्तेदारों का अनादर करे तो 29 प्रतिशत मर्द उसे पीटे जाने को जायज मानेंगे. पत्नी का व्यवहार शंकास्पद मानने पर 24 प्रतिशत मर्द पिटाई को जायज मानेंगे.


यह धारणा केवल निरक्षर लोगों में ही नहीं, बल्कि ऐसे लोगों में भी व्याप्त है, जिन्होंने कम से कम 12 साल स्कूलिंग की है. इस सवाल के जवाब में हां कहने वालों में 30 प्रतिशत महिलाएं और 34 प्रतिशत पुरुष पढ़े-लिखे थे. ऐसी पढ़ाई लिखाई के बारे में हमें एक बार फिर से सोचना चाहिए, और इसके बावजूद भी धारणा यही रहती है तो दोबारा फिर से पढ़ाई करवानी चाहिए, जिसमें जीवन की बुनियादी बातें केवल किताबों में ही नहीं रहें, वह स्वभाव में भी परिवर्तित हों.


सवाल यह है कि यदि किसी पत्नी को पति में ही यह व्यवहार दिखाई दे तो क्या उसे इस बात के लिए जायज ठहराया जा सकता है कि वह पति की वैसी ही पिटाई कर सके. नहीं, इस सवाल का जवाब आसान नहीं है, हम कितनी आसानी से एक पत्नी को पति की ओर से की गई पिटाई को जायज ठहरा देते हैं और उन्हीं आधारों पर पत्नी की ओर से पति की पिटाई पर आत्मसम्मान जागृत हो जाता है. 
 
मामला केवल अपमान और र्दुव्यवहार का ही नहीं है. पुरुषवादी मानसिकता एक स्त्री के साथ निजी संबंधों में भी अपने को शीर्ष पर रखती हैं. भारतीय समाज में यौन संबंधों के लिए भी पत्नी की सहमति और असहमति को तवज्जो नहीं दी जाती. कानून में यह जरूर लिखा है कि अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाना अपराध है, लेकिन यदि पत्नी इसके लिए मना कर दे, तो उसे पीटा जाता है. इसी सर्वेक्षण से निकलकर आता है कि 74 प्रतिशत पुरुष इस बात से सहमत नहीं है कि पत्नी अपने पति से यौन संबंध बनाने से मना कर सकती है, यानी वह जब चाहे उनके अहंकार के आगे पत्नी की असहमति को बिछना ही पड़ेगा. 


सर्वे के मुताबिक 15 से 49 साल की 30 प्रतिशत महिलाएं शारीरिक हिंसा का शिकार हुई हैं और 7 प्रतिशत महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुई हैं. इनमें से ज्यादातर महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें 15 साल की उम्र से किसी न किसी तरह की हिंसा का शिकार होना पड़ा है. हमें लगता है कि जो संवेदनशीलता किन्हीं प्रतिष्ठित महिला के प्रति हमारा समाज दिखाता है, संवेदना का वही स्तर समाज की हर एक महिला के साथ हर एक दायरे में दिखना चाहिए, महसूस होना चाहिए, आधी आबादी की सूरत तभी बदलेगी.


किस कारण मारना जायज


 

   

  महिला पुरुष महिला पुरुष महिला पुरुष

यौन संबंध के लिए मना करना

             

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)