मध्य प्रदेश के चुनाव में वाकई गजब काम होते हैं. इस बार यहां के छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा सीट पर सामाजिक संगठन लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण की एक नई तकनीक अपना रहे हैं. अगर यह तकनीक कामयाब हुई, तो वाकई बड़ा प्रयोग साबित हो सकती है. अब देखिए कि यहां पर महज 701 वोट से विधायक बनने की कवायद हो रही है. सुनने में यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है कि भला 701 वोट में विधायक कैसे बना जा सकता है, लेकिन यदि सब कुछ योजनाकारों के मुताबिक हो गया तो महज 701 वोट में यहां से विधायक चुन लिया जाएगा.
 
ऐसी कोशिश संभवत: देश में अपनी तरह की पहली और अनूठी कोशिश है. मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के विधानसभा सीट नंबर 53 बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र में. जब उमा भारती मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय थीं, तब इसी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करती थीं. इन दिनों यहां के गांव-गांव में 701 फॉर्मूला चुनाव की चर्चा रफ्तार पकड़ रही है. चर्चा इस बात की है कि एक छोटे से गणित से क्या राजनीति के अखाड़े में वह दांव चल पाएगा जिससे राजनीति की मुख्यधारा के उम्मीदवार चित हो पाएं. युवाओं के एक समूह भारत नवनिर्माण संगठन ने इसके लिए अपनी तरकीब भिड़ाई है.
 
जब हमने संगठन के वरिष्ठ सदस्य रमन जैन से इस बारे में बात की तो उन्होंने हमें यह दिलचस्प गणित बताया, पहले तो हमें भी यह बात पल्ले नहीं पड़ी, लेकिन उनका विश्वास देखकर दोबारा समझा. पेशे से वकील और समाजसेवी रमन बताते हैं कि बड़ामलहरा सीट के तकरीबन 200 गांवों में 1,40,000 वोटर्स हैं. आइडिया के मुताबिक हर पंचायत से एक व्यक्ति विधानसभा चुनाव में खड़ा होगा. उस प्रत्याशी का लक्ष्य हजार-दस हजार मत प्राप्त करना नहीं होगा. उसको केवल 701 वोट प्राप्त करने की लड़ाई लड़नी है.
 
ऐसा हर पंचायत और दो नगर पंचायत में होगा, इस गणित के मुताबिक 140000 वोट महज 700 स्थानीय वोट में बदल जाएंगे. जो प्रत्याशी 701 वोट प्राप्त कर लेगा, वह विधायक बन जाएगा. बाकी के हारे हुए 199 प्रत्याशी हारकर भी विधायक प्रतिनिधि बनेंगे, इसलिए हारकर भी वह हार जीत मानी जाएगी.
 
इस कोशिश के जरिए वह अपने प्रतिनिधि को विधानसभा में पहुंचा देंगे. चुनाव आयोग ने किसी विधानसभा सीट पर अधिकतम कितने उम्मीदवार खड़े किए जा सकते हैं, इसकी कोई अधिकतम सीमा तय नहीं की है. कोई भी व्यक्ति जिसका नाम उस विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज है और उसकी उम्र न्यूनतम 25 साल है चुनाव लड़ सकता है. इसी प्रावधान के तहत मुख्यधारा के राजनैतिक दलों को टक्कर देने के लिए कोई एक-दो नहीं पूरे 200 उम्मीदवारों को तैयार किया जा रहा है.
 
हमने पूछा कि आखिर क्यों आप ऐसी कोशिश कर रहे हैं. उनका जवाब सीधा और सपाट था. बकौल रमन बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से ही बाहरी प्रत्याशी को तवज्जो दी जाती रही है. चुने गए प्रतिनिधि एक बार यहां से जीतकर दोबारा नहीं आते, न ही क्षेत्र की समस्याओं को गंभीरता से समझा जाता है, तभी इतने सालों बाद भी इस इलाके में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंच पाई हैं.
 
पिछले साल इस क्षेत्र के बच्चों ने अपना परीक्षा केन्द्र गांव में शुरू करने के लिए कई दिनों तक हड़ताल की, स्कूल बिल्डिंग बनवाने की मांग की, लेकिन इसका कोई नतीजा हाथ नहीं लगा. इससे लोगों में असंतोष है. हमें लगता है कि विधायक हमारा होगा, तो शायद हमारे मुद्दों को भी प्राथमिकता मिलेगा.
 
हमारी यह कोशिश एक गैर राजनैतिक जनकेन्द्रित कोशिश है, इसमें हम अपने ही बीच के किसी व्यक्ति को विधानसभा में चुनकर पहुंचाना चाहते हैं, और यह उम्मीद बंधाना चाहते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक आम आदमी भी विधायक बनकर पहुंच सकता है. चूंकि वह हमारा अपना व्यक्ति होगा इसलिए एक आम आदमी की हैसियत से वह हमारे मुद्दों को विधानसभा तक पहुंचाएगा.
 
अमूमन विधानसभा चुनाव में धनबल खर्च होता है. मिशन 701 वोट में इससे कैसे निपटा जाएगा इसका भी जवाब इनके पास है. संगठन के दूसरे सदस्य राजेश यादव, हरिराम लोधी कहते हैं कि अपना प्रचार केवल अपने आसपास ही करना है, और लक्ष्य केवल 701 वोट प्राप्त करना है इसलिए इस पर कोई बड़ा खर्च नहीं होने वाला है. उम्मीदवार केवल अपने आसपास के इलाकों में ही प्रचार करेगा. पर जमानत का क्या होगा.
 
विधानसभा चुनाव में जमानत के रूप में सामान्य वर्ग के प्रत्याशी को दस हजार रुपए जमा करने होते हैं. इसका जवाब भी संगठन के पास है. संगठन के लोगों का कहना है कि यह एक विचार है, इसमें जिन लोगों की सहमति बन रही है वह खुद अपना खर्चा उठाने को तैयार हो रहे हैं. संगठन के मुताबिक बीस गांवों में लोगों ने अपनी सहमति दे दी है.
 
यह एक तरह से बाहरी बनाम स्थानीय आम व्यक्ति की लड़ाई है, यह उन नेताओं के लिए भी सबक है जो यह मानते हैं कि एक बार चुनाव जीतने से पांच साल तक तो काम चल ही जाता है. संगठन से जुड़े रामनरेश तिवारी बताते हैं कि चुनावी प्रक्रिया में कोई भी उम्मीदवार पसंद न होने पर नोटा का विकल्प सरकार ने दिया है. लेकिन नोटा के विकल्प चुनने से वह वोट खराब ही होता है. मिशन 701 की इस कवायद से वोट भी खराब नहीं होगा और अपना प्रत्याशी चुना जा सकेगा.
 
संगठन सदस्यों के मुताबिक मिशन 701 के लिए पूरी रणनीति तैयार की जा रही है और गांव-गांव में इसके लिए लोगों को तैयार किया जा रहा है. इस मुहिम में शामिल होने वाला लोगों को संगठन की ओर से बकायदा प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. उनकी इस मुहिम को खासा समर्थन भी मिल रहा है.
 
यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस विधानसभा से संभवत: प्रदेश के सबसे ज्यादा उम्मीदवार खड़े होंगे. मध्यप्रदेश में नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि नौ नवंबर है. 28 नवंबर को मध्यप्रदेश की 230 सीटों के लिए एक चरण में मतदान होगा.


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इस सीट पर पिछला चुनाव भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी रेखा यादव और कांग्रेस से तिलक सिंह लोधी के बीच लड़ा गया था. इनमें कांटे की टक्कर हुई थी और रेखा यादव महज 1514 मतों से जीती थीं. अब देखना यह है कि राजनीति के इस मैदान में यह सीट क्या दिलचस्प गणित बनाने वाली है और क्या वास्तव में कागजों पर किया गया यह गणित मैदान पर कितना सफल हो पाता है...


 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)