बीजेपी के विशाल बहुमत और मोदी सरकार 2.0 के गठन में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का अपूर्व योगदान रहा. नए मंत्रिमंडल में उन्हें गृहमंत्री का कार्यभार दिया गया है. मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों के क्रियान्वयन नहीं होने पर संघ परिवार में बहुत बेचैनी थी. इस बार बीजेपी को अपने दम पर लोकसभा की 303 सीटें मिली हैं और अगले साल राज्यसभा में भी बहुमत मिल सकता है. सन् 2002 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब अमितशाह उनके मंत्रिमंडल में सबसे कम उम्र के मंत्री थे. शाह के पास गृह मंत्रालय के साथ 12 महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार था. अनेक विरोधों के बावजूद शाह ने गुजरात में धर्मांन्तरण विरोधी कानून को लागू किया. गुजरात मॉडल की सफलता से परे, बीजेपी के संकल्पपत्र को संघीय व्यवस्था में लागू करना, गृहमंत्री अमित शाह के सामने ज्यादा बड़ी चुनौती होगी. 


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अयोध्या विवाद और राम मंदिर: 
चुनाव नतीजे आने के बाद सरसंघचालक मोहन भागवत ने राम मंदिर के मामले पर वक्तव्य देकर संघ परिवार की गंभीरता को दर्शाया. राम मंदिर का मुद्दा पिछले कई चुनावों से बीजेपी के घोषणा-पत्र में शामिल है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले पर मध्यस्थों को 15 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है. मध्यस्थता से इस प्रकरण के समाधान की कम संभावनाएं हैं क्योंकि अन्य नए पक्ष सहमति के खिलाफ बखेड़ा खड़ाकर सकते हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट या सरकार को को ही इस मामले में फैसला करना होगा. न्यायिक प्रक्रिया में विलंब होने पर केंद्र सरकार अध्यादेश या संसद में कानून के माध्यम से राम मंदिर के निर्माण हेतु विवादित भूमि का आवंटन कर सकती है. बीजेपी के बहुमत के बावजूद एनडीए के सहयोगी दलों में इस बारे में असहमति होने पर, गृह मंत्री अमित शाह के सामने न्यायिक और राजनैतिक दोनों तरह की चुनौतियां रहेंगी.



जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और धारा-35-ए की समाप्ति: 
राम मंदिर ने बीजेपी को राजनीतिक उभार दिया तो कश्मीर का मामला जनसंघ की आधारशिला ही था. बीजेपी नेताओं के अनुसार कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद के लिए संविधान के अनुच्छेद-370 और धारा- 35-ए को समाप्त करना जरूरी है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के अनुसार धारा-370 की वजह से कश्मीर भारत का हिस्सा है और इसे खत्म नहीं किया जा सकता. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में भी मामला लम्बित है. अनुच्छेद-370 और धारा-35-ए को खत्म करने के लिए, जम्मू-कश्मीर विधानसभा से प्रस्ताव पारित होने की संवैधानिक जरुरत है. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग होने के बाद राष्ट्रपति शासन लागू है, और अगले कुछ महीने के बाद आम चुनावों की सम्भावना बन रही है. विधानसभा में यदि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो फिर 370 और 35-ए को खत्म करने पर कैसे कार्रवाई होगी? विधानसभा भंग रहने के दौर में राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद के माध्यम से भी इसे अंजाम दिया जा सकता है, परंतु इसके लिए विधानसभा चुनावों के पहले ही निर्णय लेना होगा. इस बारे में पाकिस्तान और मुस्लिम देशों के दबाव के साथ अमेरिकी हस्तक्षेप की चुनौती से, मोदी सरकार और गृहमंत्री शाह को निपटना होगा.


एनआरसी, रोहिंग्या और अवैध घुसपैठ: 
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर या एनआरसी को लागू करके आसाम और उत्तर पूर्व के राज्यों में अवैध घुसपैठ को रोकने की मांग असम समझौते के दिनों से हो रही है. सहयोगी दल असमगण परिषद् की असहमति के बाद बीजेपी ने नागरिकता कानून से कदम पीछे कर लिये. परन्तु एनआरसी को पूरे देश में लागू करने की बात पूरे चुनाव प्रचार में शामिल रही. रोहिंग्या घुसपैठियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई स्टे नहीं दिया, इसके बावजूद उन्हें देश से बाहर निकालने की ठोस प्रक्रिया शुरु नहीं हुई है. देश में अवैध घुसपैठियों की वजह से जनसंख्या और संसाधनों पर बढ़ते दबाव की ओर बाबा रामदेव जैसे लोगों ने आवाज उठाई है. इसके बावजूद अवैध घुसपैठियों को आधार कार्ड से वंचित करने के लिए कोई प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं शुरु की गई. केन्द्रीय गृहमंत्रालय द्वारा इस मामले पर राज्य सरकारों के सहयोग से ही प्रभावी कार्रवाई की जा सकती है. इसलिए पश्चिम बंगाल जैसे विपक्ष शासित राज्यों में इस मामले पर राजनीतिक विरोधाभास से निपटने की बड़ी चुनौती गृहमंत्री शाह के सम्मुख रहेगी.


'टुकड़े-टुकड़े गैंग' और देशद्रोह कानून:
प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया था तो इस बार उन्होंने बिम्सटेक देशों को आमन्त्रित किया. बंगाल की खाड़ी से लेकर कंधार तक भारतीय राजनीति के प्रभाव का विस्तार करने वाली सरकार के गृहमंत्री के सामने भारत की अखंडता सुरक्षित रखने की बड़ी जवाबदेही रहेगी. 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' के जवाब में बीजेपी ने अपने संकल्पपत्र में देशद्रोह के कानून को सख्त बनाने की बात कही थी. स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया, जिसके अमित शाह ट्रस्टी हैं. सरदार पटेल ने रियासतों के एकीकरण से भारत को एकीकृत किया तो शाह के सामने समान नागरिक संहिता के माध्यम से भारतीयता के भाव को सशक्त करने की चुनौती है.


अभूतपूर्व जनादेश के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 'सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास' की बात कही है. 'न्यू इंडिया' में अखंड भारत के संकल्प को साकार करने के लिए लौह पुरुष की सख्ती के साथ मोदी के 'सबके विकास' की सहमति का संतुलन बनाना, शाह की सबसे बड़ी चुनौती होगी.


(लेखक विराग गुप्‍ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं. Election on the Roads पुस्‍तक के लेखक हैं.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)