प्रेम का बन्धन अटूट है
पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ अहम की लड़ाई पर आ जाते हैं. भूल जातें है कि जब रिश्ते बंधे तब किसी की नहीं सुनी, ना समाज की, ना माता-पिता की, ना जात-पात के बन्धनों की.
विवाह करके गृहस्थी की बागडोर संभाले हुए, एक दूसरे के साथ चलते-चलते अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि एक-दूसरे से कटु हो जाते हैं औेर अलग होने का मन बना लेते हैं, आजादी सबको अच्छी लगती है पर इस आजादी का ये मतलब नहीं कि शादी जैसे पवित्र रिश्तों की गरिमा भी खो जाये. आज कई परिवारों में ये देखा जाता है कि जरा सी बात पर कहासुनी होकर अलगाव की स्थिति बन जाती है. पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ अहम की लड़ाई पर आ जाते हैं. भूल जातें है कि जब रिश्ते बंधे तब किसी की नहीं सुनी, ना समाज की, ना माता-पिता की, ना जात-पात के बन्धनों की. मान्यताएं रोक ना सकी, माता-पिता के आंसू डिगा ना सके और समाज की बातें इरादे बदल ना सकी. मन ने जिसे चाहा उसी के साथ सात फेरों के बन्धन में बंध गये. तब तो ऐसा लगता है जैसे सारे जमाने की खुशी एक वही शख्स दे सकता है जो जिन्दगी के कई वसन्त निकल जाने के बाद जिन्दगी में आता है. उसके आने के बाद सारा जमाना पराया हो जाता है एक वही अपना बनकर रह जाता है.तो फिर क्यों शुरु हो जाती है विवाह के बाद छोटी-छोटी बातों पर तकरार?
क्यों किसी की भी बातों में आकर ये रिश्ता कमजोर पड़ने लगता है. कहां विलीन हो जाती हैं वो कसमें कि एक दूसरे के लिए ही बने हैं? एक दूसरे के बिना जिन्दा नहीं रह सकते. जिस रिश्ते को सारे जमाने से लड़कर हासिल किया है उसी रिश्ते की डोर ढीली क्यों पड़ने लगती है क्यों उसकी मिठास कम होने लगती हैै. अब तो जीवन में नन्हा-मंन्ना भी आ जाता है फिर क्यों बात-बात में नाराजगी और तीखापन आ जाता है. सामान्य जिन्दगी ठहर सी क्यों जाती है.मन-मुटाव क्यों बढ़ जाते हैं. इन बिन्दुओं पर ध्यान देने की आज बहुत जरुरत हैै. घर जब खामोशियों के पर्याय बन जायें, दूरियां बढ़ने लगें,तब इस मोड़ पर आकर किन्हीं अन्य बातों को प्रमुखता नहीं देनी चाहिये अपने जीवनसाथी के साथ सामंजस्य बनाकर रहने में ही खुशी तलाशनी चाहिये.एक-दूसरे पर मर-मिटने का जुनून हर उम्र में होना चाहिये,अपने विवाह की स्मृति को कभी धूमिल नहीं पड़ने देना चाहिये.
सामाजिक मान्यताओं से ऊपर उठकर जिस रिश्ते को नाम दिया है उस प्रेम की दीवारों को कभी दरकने ना दें. प्रेम के ये मजबूत बन्धन असंख्य परिक्षाओं के बाद भी असफल नहीं होने चाहिये.रिश्तों की टूटन उन मासूम बच्चों कों ही अपना शिकार बनाती है जो सिर्फ प्रेम की ही भाषा जानते हैं उन्हें अपने माता-पिता की स्नेहिल छवि ही अच्छी लगती है. जरा-जरा सी बातों पर घर में लड़ना, बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव नहीं डालता. समय किसी के लिए रुकता नहीं है. प्रेम विवाह हो या समायोजित, खुशियां और समस्याएं सभी के जीवन में आती रहती हैं ये भी सच है कि सिर्फ प्यार के सहारे भी जीवन नहीें चल सकता तो समझदारी इसी में है कि सभी रिश्तों को साथ लेकर आगे बढ़ें और अपनी जिन्दगी की हर खुशी को भरपूर जीएं.
विवाह पूर्व किये गये वादों कों, अपनी बातों को कभी भी वक्त के हाथों मजबूर न होने दें. सम्बन्धों की डोर को मजबूती से थामे. माता-पिता हमेशा ही आपके मार्गदर्शक हैं, अपने सुख-दुख में उन्हें हमेशा शामिल रखें. विवाह के बाद जो भी परिवार टूटने के कगार पर हैं उन्हे अपने रिश्तों को एक नहीं, अनेक नहीं,बस मौके ही मौके देने चाहिये क्योंकि उनका परिवार मासूमों की किलकारियों से गुंजार है, ये किलकारियां हर घर आंगन में गूंजती ही रहनी चाहिये. ये बच्चों का हक हैे कि वे मां-पिता के सानिध्य में ही जीवन यापन करें. पति-पत्नी को अलग होने से पहले मासूम बच्चों के भविष्य,उनके जीवन के दर्द, उनकी आंखों के सवालों का जवाब ढूंढ लेना चाहिये. अपने स्वाभिमान को ताक पर रखकर उन मासूमों के अस्तित्व को समझना चाहिये जिसे वे बड़े प्रेम व समर्पण से इस दुनिया में लाये हैं. अपने अहम की,अमीरी की, गरीबी की,परिवार की ,दुनिया की,समाज की सभी बातों की वजह से अपने रिश्ते में दूरी बढ़ाने से अच्छा है हर समस्या का समाधान खोजें और मासूम बच्चों की खातिर तलाक जैसे शब्द को कभी भी अपनी जिन्दगी में प्रवेश न करने दें.
प्रेम को ही महत्व दें क्योंकि आप दोनों ने प्रेम विवाह किया है. प्रेम में सभी दीवारें तोड़ी हैं. आज भी आपके रास्ते में आपकी सन्तान है इस सन्तान के वजूद को कम न समझें सन्तान के प्रेम को ही सर्वोपरि मानकर अपनी जिन्दगी का फैसला करें.
(रेखा गर्ग सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)