व्यस्तताओं से घिरी जिन्दगी में हम बहुत कुछ खोते जा रहे हैं .खो रहे हैं घर आंगन की चहल-पहल, रिश्तों का संसार, दादी-नानी की रसोई का तड़का, छुटिटयों की मौज-मस्ती और त्योहारों को मनाने का पारम्परिक ढंग. एकाकी होते परिवारों में पीढ़ियों का अभाव आज स्वाभविक रूप से दिखाई देता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

खाने की मेज पद व्यंजनो के प्रकार और व्यंजनों में स्वाद की कमी निकालने वाले रिश्ते भी दिखाई नहीं देते. ऐसा लगता है जैसे जिन्दगी की वास्तविकता कहीं गुम हो गई है.यूं तो टीवी चैनलों के धारावाहिक हमें सुसंस्कृत होने का गौरव प्रदान करते हैं.वहां आज भी परम्परा में कई पीढ़ियां दिखाई दे जाती हैं और त्योहारों के मनाने का पारम्पररिक ढंग वास्तव में भारतीय संस्कृति के सम्पूर्ण दर्शन करा देते हैं.किन्तु क्या हम वास्तविक जिन्दगी में ये सब कर पा रहे हैं?


यह भी पढ़ें- 'मायका बेटियों की विरासत है'


खुशियों व खनखनाहट से भरी जिन्दगी आज तनाव से भरी हो गई है.आज आदमी के पास गाड़ी,मकान पैसा सब कुछ है नहीं है तो समय और रिश्ते. आज जिन्दगी काम का और पैसा कमाने का ही नाम बनकर रह गई है. संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है और एकाकी परिवारों का चलन बढ़ रहा है. घर सजावट और खामोशियों के पर्याय बन गए हैं. घरों में बच्चों पर प्यार उडेलने वाले बड़े नहीं हैं और बड़े बच्चों की किलकारियों से दूर हैं. फोन पर ही कुशलक्षेम पूछने में जिन्दगी व्यतीत हो रही है.


यह भी पढ़ें- मायूसियों में दबी जिन्दगी


आज किसी के पास समय ही नहीं है कि दो घड़ी बैठ लें अपने उन सम्बन्धों की निकटता में जो बाहें फैलाए अपनो का इन्तजार ही करते रहते हैं. इस आधुनिकता ने मनुष्य का बहुत कुछ निगल लिया है,बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है, खेलना, कूदना, हंसना खिलखिलाना,छीन लिया है. छोटे-छोटे बच्चे भी मोबाइल पर ही उंगलियां चलाने मे लगे रहते हैं, बाहरी संसार उन्हें कम अच्छा लगने लगा है. जल्दी बड़े होते बच्चे जीवन की खुशियों के साथ नहीं एकाकी भाव मन में लेकर बड़े हो रहे हैं.


यह भी पढ़ें- महिला... शब्द भी जिसकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते


मुझे याद आता है वो बचपन जब गर्मियों की छुट्टियों में हम मौसी,मामा,बुआ,चाचा,ताउ के सब बहिन-भाई इकट्ठे होते थे खूब मौज-मस्ती करते थे,रिश्तों का एक संसार बस जाता था. आंगन की वो चहल-पहल आज दायरों में सिमट गई है, आज तो उदासीन जिन्दगी में मोबाइल बड़े मरहम का काम करता है.ऐसा लगता है जिन्दगी की हर खुशी आज मोबाइल में बन्द है. बनावटी मेकअप से रिश्ते धुंधले दिखाई देने लगते हैं. लहुलुहान होते रिश्तों की पुकार सुनने के लिए हमें अपने बच्चों में प्रेम और जुड़ाव के संस्कार डालने होंगे. मरुस्थलीय बगिया को रिश्तों की फुहार से हरा-भरा करना होगा. नीरस होती बच्चों की दुनिया को किलकारियों से गुलजार करना होगा.


हमारी जिन्दगी का एकान्त,सूनापन और नीरसता हमारे बच्चों को विरासत में ना मिल जाए इसके लिए हमें रिश्तों को, सम्बन्धो को बहुत संभालकर रखना होगा. हमारे वे रिश्ते जो गुमनामियों में दम तोड़ रहे हैं,उन्हे फिर से नाम देना होगा, हमारी जिन्दगी की व्यस्तताएं और उदासीनता हमारे बच्चों की किताबों के अध्याय ना बन जाएं इसके लिए जरुरी है हम अपने बच्चों के लिए एक सुन्दर सा,प्यारा सा रिश्तों का अनूठा संसार रच जाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए इससे अच्छा तोहफा कुछ और हो ही नहीं सकता.