भारत में वर्ष 2001 से 2010 के बीच बलात्कार और यौन अपराधों में अपराधों में 160 प्रतिशत की वृद्धि हुई, किन्तु वर्ष 2010 से 2016 के बीच यह वृद्धि बहुत ज्यादा यानी 557 प्रतिशत रही. कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां पहले अपराध तेज गति से बढ़े, फिर 2010 के बाद उनमें वृद्धि की गति धीमी रही. आंध्रप्रदेश में वर्ष 2001 से 2010 के बीच बलात्कार और यौन अपराधों में वृद्धि 431 प्रतिशत रही, पर 2010 से 2016 के बीच 86 प्रतिशत हो गई.


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अक्टूबर 2017 में मध्यप्रदेश में एक घटना सामने आई. 13 साल की गुडिया (बदला हुआ नाम) की माँ की मृत्यु हो चुकी थी. वह अपने पिता के साथ रही. फिर उसके पिता की भी मृत्यु हो गई. उसकी बहन की शादी विदिशा में हो चुकी थी. पिता की मृत्यु के बाद वह अपने चाचा के साथ रहने लगी. चाचा ने उसके साथ यौन हिंसा की और सम्बन्ध बनाए. उनसे बचने के लिए वह अपनी बहन के यहाँ विदिशा चली गई. जहाँ जीजा ने उसके साथ बलात्कार किया. कुछ सोच कर वह वापस भोपाल अपने चाचा के पास आ गई. इसके बाद चाचा के बेटे यानी चचेरे भाई ने भी उसके साथ बलात्कार किया. चूंकि उसका कोई अभिभावक नहीं था, इसलिए पुलिस में मामला जाने के बाद भी उसका चिकित्सकीय परीक्षण नहीं हो पाया.


मध्यप्रदेश के बारेला गाँव में आठ फिट ऊंची छत पर छः साल की छोटी बच्ची फांसी के फंदे से झूलती मिली. छः माह बाद यह साबित हुआ कि उसके पिता ने ही उसके साथ यौन शोषण किया था और ख़ुदकुशी का रूप देने के लिए उसे फांसी पट लटका कर अपनी दुकान चला गया. इसका सामाजिक पहलू यह भी है कि वह व्यक्ति (जिसने हत्या की) अपनी पत्नी चरित्र पर संदेह करता था, इसलिए वह चारों बेटियों को अपनी संतान ही नहीं मानता था. 


कुछ ज्यादा नहीं बस समग्रता में कुछ आंकड़े रखने की कोशिश भर है यह आलेख. आर्थिक विकास को हमने विकास का मूल मान लिया है. भले ही वह किसी भी कीमत पर हो. ऐसा आभास भी कराया जाता है कि हमने विकास किया है और अब भी बहुत तेज़ी से विकास कर रहे हैं. चलिए इसे भी देख लेते हैं. भारत का सकल घरेलू उत्पाद (यानी देश में जितना भी उत्पादन हुआ-वस्तु, सेवाएँ, शुल्क समेत सब कुछ) वर्ष 2001 में 23558 अरब रूपए था. हर साल हमें बताया जाता रहा है कि इसमें कभी छः प्रतिशत, तो कभी सात और आठ प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी हो रही है. इससे सभी सरकारों का सीना फूल कर कुप्पा होता रहा है. यही सकल घरेलू उत्पाद 16 सालों में लगभग साढ़े छः गुना बढ़कर वर्ष 2016 में 151837 अरब रूपए हो गया. मुझे पता है कि इतनी गिनती हमें आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था में नहीं पढ़ाई जाती है और हमारे इसी अज्ञान का फायदा सरकारें उठाती हैं. वो हमें अपनी गणना और सांख्यिकी से यह झूठ मानने के लिए तैयार कर देती हैं कि देश बदल रहा है और वे इसका सबसे स्याह पक्ष छिपा जाती हैं. 


भारत में अब तक के खुले आंकड़ों से पता चलता है कि इस सदी के पहले 16 सालों में बच्चों के खिलाफ हिंसा/अपराध के कुल 595089 मामले दर्ज हुए हैं. इनमें से 290553 यानी कि 49 प्रतिशत मामले तो वर्ष 2014, 2015 और 2016 में ही दर्ज हुए हैं. इसका मतलब यह है कि इस समाज में बच्चे लगातार असुरक्षित होते जा रहे हैं. इस पूरी अवधि में बच्चों से अपराध के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश (95324) दर्ज हुए. इसी तरह उत्तरप्रदेश में 88193, महाराष्ट्र में 74306 और दिल्ली राज्य में 59347 मामले दर्ज हुए हैं. 


बच्चों के प्रति “अपराध की विकास दर” को देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2001 में भारत में ऐसे 10814 मामले दर्ज हुए थे, जो वर्ष 2005 में 14975, वर्ष 2010 में 26694 हो गए. अगले छः सालों में बच्चों के प्रति अपराध चार गुना बढ़े और वर्ष 2016 में 106958 मामले दर्ज हुए. दूसरे मायनों में सोलह सालों में 889 प्रतिशत की वृद्धि हुई.  


वर्ष 2001 में मध्यप्रदेश में ऐसे 1425 मामले दर्ज हुए थे, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 13746 हो गए. उत्तरप्रदेश में 3709 से बढ़कर 16079, दिल्ली में 912 से बढ़कर 8178, महाराष्ट्र में 1621 से बढ़कर 14559, राजस्थान में 218 से बढ़कर 4034 और कर्नाटक में 72 से बढ़कर 4455 हो गए. 


बच्चों के खिलाफ अपराधों में मध्यप्रदेश में 864 प्रतिशत, आन्ध्र प्रदेश में 585 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 333 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 798 प्रतिशत, तमिलनाडु में 4582 प्रतिशत की वृद्धि हुई है!


सबसे दुखद पक्ष यह है कि विकास की परिभाषा, संस्कृति का मूल्यांकन और राष्ट्रवाद के मुहावरे में यह सच कहीं उभरता ही नहीं है कि हमारा समाज वास्तव में बच्चों के प्रति अपराध करने वाला समाज बन गया है. भारत की संसद में या राज्य की विधानसभाओं में यह विषय चर्चा के लिए महत्वपूर्ण माना ही नहीं जाता है कि हमारी व्यवस्था इस हद तक बाल-विरोधी कैसे हो गयी है? बहरहाल, तथाकथित राष्ट्रवादी संगठनों को भी यह विषय कोई ख़ास महत्त्व का नहीं लगता है, क्योंकि इससे राजनीतिक भावनाएं नहीं भड़कती हैं. 


सबसे बुरा पक्ष यह है कि हमारा समाज भी इस पर सदैव से मौन ही रहा है, क्योंकि हमारे ताने-बाने में बच्चों से होने वाली यौन हिंसा या बलात्कार को छिपाने की परंपरा रही है. लगभग हमेशा ही बलात्कार करने वाला कोई न कोई परिचित या रिश्ते का ही व्यक्ति होता है और परिवार के मान-सम्मान के लिए बच्चों के साथ होने वाली घटना को ही छिपाया जाता रहा है. वस्तुतः बच्चों के साथ हिंसा में परिवार और समाज भी उतना ही हिस्सेदार होता है, जितना कि अपराधी; क्योंकि हमें चुप रह कर और बच्चों को चुप कराकर उसे अपराधी बनने और ज्यादा अपराध करने के लिए तैयार किया जाता है. 


बच्चों से बलात्कार और यौन अपराध – 16 साल में 1705 प्रतिशत वृद्धि


भारत में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध के हर चार मामलों में से एक मामला बच्चों से बलात्कार का होता है. इन 16 सालों में भारत में बच्चों से बलात्कार और यौन अपराधों के कुल 153701 मामले दर्ज हुए हैं और हमें यह भलीभांति पता है कि अब भी ऐसे कई मामले पुलिस के रिकार्ड तक पंहुच ही नहीं पाते हैं. 


इन्ही सोलह सालों में भारत में बच्चों के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले वर्ष 2001 में 2113 से बढ़कर वर्ष 2016 में 36022 हो गए यानी सबसे तेज़ विकास के दौर में बच्चों से गंभीर यौन अपराधों और बलात्कार के मामलों में 1705 प्रतिशत की वृद्धि हुई. उल्लेखनीय है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पोक्सो)-2012 के लागू होने के बाद वर्ष 2014 से बच्चों के यौन उत्पीड़न एवं शोषण के ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. 


अगर बच्चों से बलात्कार का सन्दर्भ लें तो यह स्पष्ट नज़र आता है कि इन सालों में ये मामले 2113 से बढ़ कर 19765 हो गए. बच्चों से बलात्कार के मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और पोक्सो क़ानून 2012 की धाराओं 4 और 6 में दर्ज किये जाते हैं. 


बच्चों के साथ बलात्कार और यौन अपराध – वर्ष 2001 से 2016 के बीच प्रतिशत बदलाव



16 सालों में देश में इस श्रेणी के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश में (23569) दर्ज हुए हैं. इसके बाद उत्तरप्रदेश में 22171, महारष्ट्र में 18307, छत्तीसगढ़ में 9076 और दिल्ली में 7825 मामले दर्ज किये गए हैं.   
 
जब विकास के मानक तय होते हैं, तब यह बात क्यों छिपा दी जाती हैं कि इन सोलह सालों में कर्नाटक में बच्चों से बलात्कार-यौन उत्पीड़न के दर्ज मामले 11 से बढ़कर वर्ष 2017 में 1565 हो गए. इसी तरह मध्यप्रदेश में 390 मामलों की संख्या बढ़कर 4717, महारष्ट्र में 367 से बढ़कर 4815, गुजरात में 39 से बढ़कर 1408, छत्तीसगढ़ में 150 से बढ़कर 1570 ओडीसा में 17 से बढ़कर 1928, पश्चिम बंगाल में 12 से बढ़कर 2132 और तमिलनाडु में 20 से बढ़कर 1583 हो गयी. 


पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में बच्चों से बलात्कार के मामले वर्ष 2014 से 16 तक पोक्सो क़ानून के तहत दर्ज किये हैं. तय है कि सरकार के नुमायिंदे यह तर्क देंगे कि वास्तव में अपराध बढे नहीं है, सरकार ने कोशिश की है कि हर मामला दर्ज हो और कार्यवाही हो; क्या हमारी कार्यवाही में इन घटनाओं के कारणों और कारकों को जानने की कोई ठोस पहल शामिल है? 


 


इस अवधि में मध्यप्रदेश में 1109 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 1212 प्रतिशत, उत्तरप्रदेश में 781 प्रतिशत, तमिलनाडु में 7815 प्रतिशत और राजस्थान में 4126 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.  


यह उल्लेख करना जरूरी है कि वर्ष 2001 से 2016 के बीच बच्चों के प्रति अपराधों में वृद्धि की दर एक समान नहीं रही है. भारत में वर्ष 2001 से 2010 के बीच बलात्कार और यौन अपराधों में अपराधों में 160 प्रतिशत की वृद्धि हुई, किन्तु वर्ष 2010 से 2016 के बीच यह वृद्धि बहुत ज्यादा यानी 557 प्रतिशत रही. कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां पहले अपराध तेज गति से बढ़े, फिर 2010 के बाद उनमें वृद्धि की गति धीमी रही. आंध्रप्रदेश में वर्ष 2001 से 2010 के बीच बलात्कार और यौन अपराधों में वृद्धि 431 प्रतिशत रही, पर 2010 से 2016 के बीच 86 प्रतिशत हो गई. इसी तरह बिहार में पहले 613 प्रतिशत वृद्धि हुई, फिर 104 प्रतिशत वृद्धि हुई. गुजरात में पहले 162 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जो वर्ष 2010 से 2016 के बीच 1280 प्रतिशत हो गई. मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और केरल में वर्ष 2001 से 2016 तक वृद्धि क्रमशः 203 प्रतिशत, 104 प्रतिशत और 225 प्रतिशत थी, जो बाद के वर्षों में 299 प्रतिशत, 545 प्रतिशत और 788 प्रतिशत हो गई.
बच्चे ही सबसे बड़े शिकार हैं!


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वर्ष 2007 से वर्ष 2016 तक की अवधि में देश में घटित हुए बलात्कार के पूरे मामलों का अध्ययन करने से पता चलता है कि बच्चों की असुरक्षा लगातार बढ़ रही है. वर्ष 2007 में भारत में सभी आयु वर्गों में बलात्कार के कुल 20737 मामले दर्ज किये गए थे. इनमें से 25 प्रतिशत शिकार (5124) बच्चियां थीं.  उस समय दिल्ली में घटित हुए बलात्कार के 598 मामलों में से 67 प्रतिशत (398) घटनाएं बच्चियों के साथ घटित हुईं.


मध्यप्रदेश में 3010 में से 1043 (35 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 1451 में से 517 (36 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश में 1648 मामलों में से 471 (29 प्रतिशत) मामलों में बलात्कार बच्चियों के साथ हुआ था. 
दस सालों में कुल बलात्कारों में पीड़ित बच्चियों की संख्या 25 प्रतिशत से बढ़ कर वर्ष 2016 में 43 प्रतिशत हो गयी. वर्ष 2016 में भारत में बलात्कार के 38947 मामले दर्ज हुए. इनमें से बच्चियों की संख्या 16863 थी. मध्यप्रदेश में 4882 में से 2479 (51 प्रतिशत), ओडीसा में 1983 में से 1258 (63 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 4189 में से 2310 (55 प्रतिशत), कर्नाटक में 1655 में से 1142 (69 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ में 1626 में से 984 (61 प्रतिशत) घटनाएं बच्चियों के साथ हुईं. कौन करता है बच्चों के विरुद्ध अपराध?


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क्या यह कोई स्थापित सिद्धांत है कि हमारे साथ सबसे गंभीर अपराध वही करता है, जो हमसे या हम जिससे परिचित होते हैं, जिसे हम जानते हैं और जिस पर हम विश्वास करते हैं? कुल बलात्कार और बच्चों से बलात्कार के मामले तो कम से कम यह बता रहे हैं. वर्ष 2007 में भारत में बलात्कार के कुल 20737 मामले दर्ज हुए थे. इनमें से 19188 (93 प्रतिशत) मामलों में बलात्कार करने वाला व्यक्ति पीड़ित महिला या बच्चे का परिचित, रिशेत्दार या जानकार था. 


मध्यप्रदेश में तो सभी 3010 मामलों में, उत्तरप्रदेश में 1648 में से 1638 मामलों में, राजस्थान में 1238 में से 1159 मामलों में और महाराष्ट्र में 1451 मामलों में बलात्कार करने वाला कोई रिश्तेदार या परिचित व्यक्ति ही था. अपरिचय के लोग कम चोट दिया करते हैं, खतरा तो अब अपनों से महसूस होता है. 


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यह स्थिति लगातार बनी हुई है. एनसीआरबी (2016) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक देश में घटित हुए बलात्कार के 38947 अपराधों में 95 प्रतिशत मामलों (38947) में अपराध करने वाला व्यक्ति कोई परिचित और करीबी रिश्तेदार ही था. मध्यप्रदेश में 4882 में से 4789 मामलों में, उत्तरप्रदेश में 4816 में से 4803 मामलों में, राजस्थान में 3656 मामलों में से 3626 मामलों में, महाराष्ट्र में 4189 मामलों में 4126 मामलों में बलात्कार करने वाले परिचित और रिश्तेदार ही थे. आज के समाज और मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है कि बच्चे और महिलायें किन पर और किस हद तक विश्वास कर सकती हैं?


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक मुद्दों पर शोधार्थी हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)