बाल संरक्षण आयोग
बाल गृहों का लैंगिक यातना गृहों में तब्दील हो जाना
कुछ महीनों पहले मुज्ज़फरनगर से लेकर देवरिया होते हुए जम्मू के कठुआ तक ऐसे दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं, जिन्होंने साबित किया है कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत संचालित होने वाले बाल संरक्षण गृहों में भी बच्चे सुरक्षित नहीं हैं.
Feb 7,2019, 13:56 PM IST
मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेशः स्थानीय निकायों की राजनीति महत्वहीन क्यों है?
विधानसभा-2018 में मुख्य रूप से राज्य स्तर की राजनीति का अहसास हमें होता है, किन्तु 15 साल सत्ता रहने के बाद भी भाजपा ने जिस तरह से अपनी उपस्थिति को बरकरार रखा और बराबरी की टक्कर दी, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस की जमीनी ताकत अभी बहुत कमज़ोर है.
Dec 23,2018, 14:14 PM IST
बचपन
बचपन उपेक्षित है और युवा महत्वपूर्ण!
शिक्षा, कौशल विकास और मनोवैज्ञानिक आत्मविश्वास के अवसर से बच्चे वंचित किये गए हैं. भारत में जो नव-मतदाता यानी वयस्क नागरिक मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में चुनाव की प्रक्रिया में जायेंगे, उन्हें भांति-भांति के तरीकों से शिक्षा और विकास के अवसरों से वंचित किया गया है.
Nov 21,2018, 17:02 PM IST
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018
मध्य प्रदेश के चुनावी घोषणा पत्रों में बच्चे कहां हैं?
मध्य प्रदेश के सामने नवजात शिशु मृत्यु दर, महिलाओं के स्वास्थ्य, कुपोषण, संचारी-असंचारी बीमारियों के फैलाव, प्रजनन स्वास्थ्य और बच्चों के अवरुद्ध विकास से सम्बंधित समस्याओं की गंभीर स्थिति है.
Nov 19,2018, 20:14 PM IST
विधानसभा चुनाव 2018
घोषणापत्र को हाशिये पर डाल लोकतंत्र से मुंह मोड़तीं पार्टियां
वर्तमान आदर्श आचार संहिता में उल्लेख है कि सभी राजनीतिक दल और उम्मीदवार ऐसी कोई गतिविधि संचालित नहीं करेंगे, जो भ्रष्ट आचरण” मानी जाएं; मसलन मतदाताओं को रिश्वत देना, धमकाना, मतदान केंद्र के 100 मीटर के भीतर प्रचार करना आदि.
Nov 12,2018, 18:08 PM IST
कुपोषण
21वीं सदी में भी कुपोषित बचपन से कुपोषित लोकतंत्र
आज जब हम विधानसभा और लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया में प्रवेश कर रहे हैं, तब राजनीतिक दलों, विश्लेषकों से रणनीतिकारों से यह स्वाभाविक अपेक्षा की जाती है कि वे बच्चों के कुपोषण को विकास और बेहतर भविष्य के लिए एक अनिवार्य राजनीतिक-आर्थिक मुद्दे के रूप में इसे केंद्र में रहें
Nov 5,2018, 19:19 PM IST
शिक्षा पद्धति
21वीं सदी के पहले पूर्ण नागरिक
हम ऐसे वक्त में हैं, जब शिक्षा पद्धति में ऐसे पाठ शामिल हैं, जो बच्चों की तर्क करने की क्षमता को छीनते हैं, उन पाठों में भारत के स्थानीय परिवेश और पारिस्थितिकी को शामिल नहीं किया जाता है.
Oct 26,2018, 16:41 PM IST
पर्यावरण संरक्षण
आदिवासी समाज के बिना पर्यावरण संरक्षण एक आत्मघाती सोच है...
नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट “कम्पोसिट वाटर मेनेजमेंट इंडेक्स-2018” के बारे में आप जानते ही होंगे, जो कहती है कि देश के 60 करोड़ लोग पानी के “उच्च से अति उच्च” स्तर के जलसंकट का सामना कर रहे हैं.
Sep 3,2018, 18:19 PM IST
मॉब लिंचिंग
हम भीड़तंत्र की ओर बढ़ रहे हैं, खामोशी से नहीं, ढोल-नगाड़ों के साथ
भारत में भीड़तंत्र अपने आप स्थापित नहीं हो रहा है, उसे स्थापित किया जा रहा है. जरा गौर से देखिए, भीड़ केवल महिला को निर्वस्त्र करके सड़क पर दौड़ाती ही नहीं है, बल्कि उसकी फोटो खींचती है, वीडियो बनाती है और सोशल मीडिया पर गर्व से अपनी पहचान के साथ निडर होकर साझा करती है.
Aug 28,2018, 14:51 PM IST
RCEP
आरसीईपी - मुनाफे के व्यापार के सामने कहीं देश हार न जाए!
23 जुलाई 2018 को लोकसभा में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में जो बताया, वह भारत की अदूरदर्शिता का परिचायक है.
Aug 24,2018, 18:55 PM IST
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी
आरसीईपी यानी समग्र संकट के व्यापार समझौते
आरसीईपी में पहले चरण में ही 65 प्रतिशत वस्तुओं-सेवाओं पर आयात-सीमा शुल्क को “शून्य” कर दिए जाने प्रस्ताव है. शेष वस्तुओं-सेवाओं पर दूसरे चरण में ऐसी ही कार्यवाही की जायेगी.
Jul 28,2018, 19:42 PM IST
बाल यौन उत्पीड़न
लड़के बलात्कार के आसान शिकार क्यों हैं?
बच्चों के साथ परामर्श सेवाओं के तहत संवाद करने वाले शोधकर्ता कहते हैं कि लड़कों के साथ होने वाले यौन दुराचार और उत्पीडन के मामलों में परिवार एक ही सोच रखता है – घटना को छिपा कर रखना, परिजन मानते हैं कि लड़का है, समय के साथ इसके असर और और दबाव से ऊबर जाएगा.
Jul 18,2018, 19:37 PM IST
यौन शोषण
लड़कों से होने वाले बलात्कार को छिपाना सामाजिक नियम है!
भारत में केवल लड़कियां ही असुरक्षा के जाल में नहीं फंसी हैं. लड़के भी बलात्कार और यौन शोषण के शिकार होते हैं. इस विषय को पेश करने का मकसद यह साबित करना कतई नहीं है कि समाज में लड़के असुरक्षित है और लड़कियां सुरक्षित हैं!
Jul 3,2018, 22:43 PM IST
खाद्य सुरक्षा
खाद्य सुरक्षा पर अमेरिकी चाल और सस्ते उत्पाद की डम्पिंग
यह तय है कि जिस तरह से ट्रंप सरकार अमेरिका के हितों को केंद्र में रख कर विश्व बाज़ार और वैश्विक समुदाय को अपने नियंत्रण में करने की नीतिको उग्र तरीके से लागू कर रही है, इससे विश्व मंच पर खुला टकराव होते रहने की पूरा आशंका है.
Jun 15,2018, 20:09 PM IST
बाल सुरक्षा
Opinion: बच्चों की सुरक्षा अब भी प्राथमिकता नहीं है!
बच्चों का अपहरण बढ़ रहा है, यौनिक हिंसा और उत्पीड़न बाद रहा है, इसके बाद पुलिस और न्याय व्यवस्था का बर्ताव उनके साथ दोहरा अपराध करता है.
Jun 4,2018, 0:36 AM IST
खाद्य सुरक्षा नीति
भारत की खाद्य सुरक्षा नीति पर अमेरिका का रणनीतिक हमला शुरू
अमेरिका यह कह रहा है कि भारत में गेहूं और चावल का लगभग तीन चौथाई उत्पादन सरकार की रियायत प्राप्त कर रहा है और इससे ही उसका प्रबंधन होता है. यह अपने आप में किसी विकसित देश का समझदारी भरा विश्लेषण नहीं हो सकता है कि भारत के मुख्य खाद्यान्न को तीन चौथाई सरकारी रियायत मिलती हो.
May 21,2018, 22:59 PM IST
child marriage
बाल विवाह के पक्ष में होना यानी बच्चों के खिलाफ होना
सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में साफ उल्लेख किया है कि वयस्क व्यक्ति को अपनी पसंद और हित का निर्णय लेने का अधिकार है, परन्तु समाज का वर्गवादी और नियंत्रणवादी चरित्र उस अवस्था तक व्यक्ति को पंहुचने देना ही नहीं चाहता है.
May 10,2018, 15:45 PM IST
Sachin kumar jain
न्याय व्यवस्था में भी संरक्षण से वंचित बच्चे!
एक तरफ तो समाज की विकृतियां बच्चों को असुरक्षित बना रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर न्याय व्यवस्था भी अपनी जरूरी भूमिका नहीं निभा रही है.
Apr 1,2018, 16:43 PM IST
बच्चे नहीं, समाज और व्यवस्था के विवेक का अपहरण हुआ है!
भारत में बहुत तेज़ी से सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था के तहत बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था कमज़ोर हो रही है. बच्चे घर और परिवार में भी अकेले होने लगे हैं.
Mar 31,2018, 14:30 PM IST
21वीं सदी: बच्चों से बलात्कार और यौन शोषण 1700 प्रतिशत बढ़ा!
वर्ष 2007 से वर्ष 2016 तक की अवधि में देश में घटित हुए बलात्कार के पूरे मामलों का अध्ययन करने से पता चलता है कि बच्चों की असुरक्षा लगातार बढ़ रही है. वर्ष 2007 में भारत में सभी आयु वर्गों में बलात्कार के कुल 20737 मामले दर्ज किये गए थे. इनमें से 25 प्रतिशत शिकार (5124) बच्चियां थीं.
Mar 30,2018, 16:21 PM IST
21वीं सदी और बच्चों के प्रति अपराध में 889% वृद्धि के मायने
हाल ही में भारत की महत्वपूर्ण सरकारी संस्था राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) ने वर्ष 2016 में हुए अपराधों का आंकड़ा जारी किया. हर साल ये आंकड़े जारी होते हैं, अखबारों-टीवी चैनल पर आते हैं. हम दुःख मनाते हैं और अपने रोज़मर्रा के काम में जुट जाते हैं. यही आज के समाज और राज्य व्यवस्था की सीमा है.
Mar 27,2018, 21:01 PM IST
Civil war
जब युद्धों की कीमत 949000 अरब रुपए हो, तो गरीबी कैसे मिटेगी?
वर्ष 2030 तक प्रभावी स्तर तक सभी तरह की हिंसा और गैर-कानूनी हथियारों के व्यापार में कमी लाना. सवाल यह है कि जब हथियारों का 'वैध कारोबार' का आकार ही इतना बड़ा है, तो हम शांतिपूर्ण समाज की स्थापना के लक्ष्य को हासिल कैसे कर पायेंगे?
Mar 1,2018, 16:38 PM IST
War Economics
सभ्य और विकसित समाज में राज्य समर्थित युद्ध-हिंसा का वीभत्स अर्थशास्त्र
युद्ध अब केवल रणभूमि में ही नहीं लड़ा जाता है. युद्ध तो एक भावना है, जिसे हमारे भीतर, हमारे घरों के भीतर घुसा दिया गया है.
Feb 19,2018, 13:45 PM IST
Forest Rights
Opinion : वन अधिकार पर व्यवस्था का आघात
सच तो यह है कि वन विभाग वन अधिकार के कानून को अपने प्रभुत्व और सत्ता के लिए चुनौती के रूप में देखता है. इस कानून के बनने की प्रक्रिया के दौरान और इसके बन जाने के बाद भी वनविभाग विशेषज्ञों ने हरसंभव प्रयास किया कि इसे खत्म या कमजोर किया जा सके.
Feb 9,2018, 14:07 PM IST
democracy
गणतंत्र दिवस...हम भारत के लोग
वास्तव में आज की सबसे बड़ी जरूरत है कि हम, भारत के लोग संविधान को पढ़ें, जानें और उसमें अपना विश्वास प्रगाढ़ करें. इसे भूल जाने का परिणाम है हम एक हिंसक, गैर-बराबर और असंवेदनशील परिस्थिति में आकार फंस गए हैं.
Jan 25,2018, 16:11 PM IST
Anganwadi Workers
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता उपनिवेश नहीं हैं!
सरकार द्वारा सिर्फ अपनी विशेष भाषा से ही 28 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं-सहायिकाओं के सम्मान-श्रम और भूमिका को दोयम दर्जे का साबित किया जा रहा है
Jan 19,2018, 16:38 PM IST
world trade organization
WTO - क्या भारत को खाद्य सुरक्षा और खेती का नैतिक पक्ष याद रहेगा!
अमेरिका सरीखे विकसित देशों का तर्क रहा है कि जब सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर किसानों से सीधे अनाज खरीदती है, तो इससे खुले बाजार में प्रतिस्पर्धा कमजोर पड़ती है.
Dec 7,2017, 16:58 PM IST
Indian agriculture
भारत की खेती, खाद्य सुरक्षा और विश्व व्यापार संगठन
अमेरिका की पूरी कोशिश है कि दोहा विकास चक्र (डब्ल्यूटीओ में विकास के मुद्दों पर वार्ता का वह दौर जो वर्ष 2001 में शुरू हुआ था) में शामिल विषयों को बिना सहमति-बिना निर्णय के ही छोड़ दिया जाए और अब ई-कामर्स सरीखे नए विषयों पर बात शुरू हो.
Dec 2,2017, 15:58 PM IST
e-commerce
WTO में ई-कामर्स: आर्थिक उपनिवेशवाद की नई इबारत
विश्व व्यापार संगठन में कोशिश यह है कि दुनिया में कहीं भी ई-कामर्स पर किसी भी तरह के शुल्क न लगें, उपकरण, तकनीक, सॉफ्टवेयर और इंटरनेट के जरिये होने वाले व्यापार को सीमा शुल्कों से मुक्त रखा जाए और स्थानीय कानून की बंदिशें भी न रहें. भारत और अफ्रीका सरीखे देश इन कोशिशों का विरोध कर रहे हैं.
Nov 27,2017, 13:48 PM IST
Poverty
भुखमरी सूचकांक से कहीं ज्यादा बड़ी है!
भारत में जीवन की शुरुआत की भूखे रहने के पाठ से होती है. देश में 6 से 8 महीने की उम्र में केवल 42.7 प्रतिशत बच्चों को ऊपरी आहार मिलना शुरू होता है. यानी लगभग 57 प्रतिशत बच्चे भूख के साथ ही बड़े होते हैं. इसके साथ की देश में छह महीने की उम्र से दो साल की उम्र तक केवल 8.7 प्रतिशत बच्चों को स्तनपान के साथ पूरा जरूरी आहार मिलता है. यानी दो साल तक के 91.3 प्रतिशत बच्चे भूखे रहते हैं और जीना सीखते हैं.
Nov 25,2017, 16:04 PM IST
Students Suicides in india
क्या हिंसक प्रतिस्पर्धा का दबाव मौत को आसान बना देता है?
जिस आर्थिक विकास की अवधारणा और नीति को हमने अपनाया है, उसमें सबसे आगे रहना ही मायने नहीं रखता है; इसमें जरूरी है सबको पीछे छोड़कर आगे बढ़ना. जीवन के पहले दूसरे साल में ही बच्चों को यह जता दिया जा रहा है कि आगे निकलो, सब कुछ रट डालो. चौबीसों घंटे कुछ न कुछ सीखते रहो. कुदरत से, समाज से, अपने आस-पड़ोस से कुछ मत सीखना. यह 100 प्रतिशत का दौर है, इससे कम पर जीवन संभव नहीं है.
Oct 12,2017, 13:22 PM IST
Suicides in India
बीमार, बीमारी से नहीं, आत्महत्या से मर रहा है!
भारत में इस सदी के पहले 15 सालों में लगभग 3.84 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिसका कारण थीं बीमारियां. अस्थमा, अवसाद, डिमेंशिया, कैंसर, पैरालिसिस और अन्य लंबी असाध्य बीमारियां...
Oct 6,2017, 13:22 PM IST
Farmers
नैराश्य में घिरे किसान के सामने आत्महत्या ही विकल्प क्यों?
•परंपरागत रूप से किसान और खेती का काम गरिमा और आत्मनिर्भरता के आधार रहे हैं, लेकिन आर्थिक विकास के इस दौर में ये 'अति नैराश्य और आत्महत्या' के कारण चर्चा में हैं. किसानों की आत्महत्या के पीछे एक बड़ा कारण उन्हें उपज का सही दाम न मिलना, आपदाओं-फसल की खराबी की खराबी की स्थिति में व्यवस्थागत संरक्षण न मिलना, कृषि कार्यों की लागत का बढ़ना और नीतिगत रूप से खेती को कमज़ोर करने वाले कदम हैं. सरकार कृषि सब्सिडी कम कर रही है और इसकी एवज में बीमा और ऋण की व्यवस्था कर रही है. भारतीय कृषि व्यवस्था के सन्दर्भ में यह उचित नीति है.
Oct 5,2017, 14:54 PM IST
suicide in India
भारत में आत्महत्या का 'संकट काल'...
गरीबी का सबसे गहरा जुड़ाव बेरोज़गारी और आजीविका के संकट से हैं. राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के प्रतिवेदनों के मुताबिक, भारत में वर्ष 2001 से 2015 के बीच 72,333 लोगों ने गरीबी और बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या की.
Oct 3,2017, 11:10 AM IST
Women Employment
रोजगार में महिलाओं से समाज कर रहा भेदभाव
विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित शोध पत्र रिपोर्ट (रीअसेसिंग पैटर्न्स आफ फीमेल लेबर फ़ोर्स पार्टिसिपेशन इन इंडिया, मार्च-अप्रैल 2017) ने कुछ गंभीर संकेत उजागर किये हैं. इसके हिसाब से भारत में श्रम शक्ति में महिलाओं की सहभागिता दर केवल 27 प्रतिशत है, यानी 100 संभावित कार्यशील आयुवर्ग की महिलाओं में से 27 महिलायें ही रोज़गार में शामिल हैं.
Oct 2,2017, 21:01 PM IST
भारत
मेहनत ज्यादा, लेकिन वेतन में पुरुषों से पीछे हैं महिलाएं
श्रम ज्यादा करें पर पारिश्रमिक पुरुषों से कम मिले; यह प्रमाण है व्यवस्था पर मर्दों के जबरिया कब्ज़े का. आंध्र प्रदेश में बुआई के काम के लिए पुरुषों को 276.5 रुपये मजदूरी मिलती है, जबकि महिलाओं को 206.5 रुपये (25.3 प्रतिशत कम) मजदूरी मिल रही है. बिहार में इस काम के लिए पुरुषों को 252.6 रुपये रोज मिल रहे हैं, पर महिलाओं को 214.6 रुपये. मध्यप्रदेश में पुरुषों को 193.6 रुपये और महिलाओं को 183.1 रुपये की मजदूरी मिल रही थी.
Oct 1,2017, 11:58 AM IST
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