स्वीमिंग का `महामानव` माइकल फेलेप्स
लंबी कदकाठी, सुगठित काया, 6 फीट चार इंट की लंबाई और 6 फीट सात इंच का विंग स्पैन। माइकल फेलेप्स ओलंपिक की दुनिया में उन खिलाड़ियों में शुमार होते हैं जो चुनौती देकर जीत हासिल करना बखूबी जानता है। खेल से पहले जीत का शंखनाद कर गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाता है। ऐसा लगता है मानो जीत जिसकी नसों में बहता है और कामयाबी अपने मजबूत इरादों और अनोखे पंजे से हासिल करता है। जीतना उसका उसका जुनून भी है और फितरत भी। लंबा कद उसके उस मजबूत इरादों के प्रतीक भी है जिसका वह स्वीमिंग के दौरान इस्तेमाल करता है।
तैराकी का यह अनोखा महारथी अद्भुत तरीके से मेहनत करने के लिए जाना जाता है। फेलेप्स के बारे में कहा जाता है कि वह रोजाना लगभग 90 किलोमीटर की तैराकी करता है। एक धावक के सामने अगर यह चुनौती अगर दी जाए तो उसके लिए लगभग नामुमकिन सी बात होगी कि वह रोजाना 90 किलोमीटर की दौड़ लगाए। इस स्वीमिंग चैंपियन की बात अलग है जो सिर्फ तैराकी के अभ्यास के रुप में 90 किलोमीटर तक की दूरी तय करता है। ओलंपिक के इतिहास का ऐसा खिलाड़ी जो रोजाना 12 हजार कैलोरी का भोजन लेता है। क्योंकि इस खिलाड़ी को जितनी उर्जा की रोजाना जरूरत होती है वह आम आदमी जितनी कैलोरी से हर्गिज मुमकिन नहीं। लिहाजा उसकी ताकत के लिए उसकी खुराक भी आम लोगों से अलग है।
30 जून, 1985 को अमेरिका के बाल्टीमोर में जन्मा फेलेप्स की सबसे बड़ी खूबी है कि वह अपनी तैयारियों को बड़े ही सिलसिलेवार ढंग से करते है। वह ओलंपिक में स्वीमिंग के कई प्रतियोगिताओं में अलग-अलग शिरकत करते है। किसी भी स्पर्धा के लिए उनकी तैयारी उसी मुताबिक होती है। वह अपनी उन गलतियों पर बारीक निगाह रखते है और उसे कभी दोहराते नहीं। पिछले दिनों उनकी तैयारियों का एक अनोखा अंदाज दिखा जब स्वीमिंग की प्रतियोगिता से ठीक पहले उनके शरीर पर बड़े-बड़े निशान और धब्बे देखे गए। उनके शरीर पर बने धब्बों ने हर तरफ इसे लेकर चर्चा तेज कर दी। सबकी जुबान पर यही था कि ये दाग किस चीज के है?
दरअसल, ये धब्बे न तो टैटू थे और न ही तैराकों का कोई खास सिंबल था। फिर यह पता चला कि यह एक प्रकार का हीलिंग सेशन था जो फेलेप्स हर कंपटीशन से पहले लिया करते है। इस सेशन का नाम कप्पिंग है जो एक चीनी तकनीक है। इस तकनीक के जरिए मसल्स को आराम दिया जाता है और साथ ही ये दर्द भी दूर करता है। इस प्रक्रिया में कांच के कप का इस्तेमाल होता है। हीलिंग सेशन में पहले कप को गर्म किया जाता है । फिर उसे त्वचा पर लगाया जाता है। इससे मांसपेशियों को आराम मिलता है। ऐसा माना जाता है कि रक्त के प्रवाह को ठीक करने और दर्द के इलाज के लिए यह काफी मदद करता है। यकीकन यह प्रकिया तकलीफदेह होती है और इस दौरान त्वचा में जलन भी होती है। लेकिन फेलेप्स के जेहन में हर वक्त जीत का जुनून सवार होता है लिहाजा वह जीत और अपनी फिटनेस के लिए सबकुछ कर लेना चाहते है। तैराकी के इस सिकंदर को जीत की खातिर इस तरह से बदन जलाना भी मुश्किल नहीं लगता।
माइकल फेलेप्स की जीत के लिए सिर्फ उनकी फिटनेस और मेहनत ही जिम्मेदार नहीं है। बल्कि कुदरत ने उन्हें एक तैराक के रूप में कुछ पैदाइशी हुनर भी दिए है। फेलेप्स के पैर आम आदमी के पैर से थोड़े अलग है। उनके पंजे चौड़े है और जब वह तैरते है तो उनके पंजों का कुछ अलग होना उनके लिए जीत की बुनियाद रखता है। मछली के पिछले हिस्से की तरफ आप देखें तो वह वह पिछला हिस्सा ही उसके तैरने में काफी मददगार साबित होता है। फेलेप्स की लंबाई उनके लिए खास मददगार नहीं होती लेकिन उनके पैर के पंजे उनमें मछली जैसा तैरने की शक्ति देते है और सहूलियत प्रदान करते है। फेलेप्स जब पूरी शक्ति लगाकर पानी को चीरते हुए आगे बढ़ते हैं तो यही पंजे उनके लिए सहूलियत और आगे बढ़ने का सबब बनते है। फिर पानी को चीरते हुए यह योद्धा विजयी पताका लहराते हुए तरणताल से निकलता है।
बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि पानी का यह बाजीगर कभी पानी से ही डरा करता था। उसके जेहन में बचपन से ही पानी को लेकर खौफ था। बचपन में माइकल फेलप्स को डिफिटिस हाइपरऐक्टिव डिसऑर्डर (ADHD) था। स्विमिंग उनकी ऊर्जा केंद्रित करने के लिए इस्तेमाल की गई थी। इस डिसऑर्डर में बच्चे में हर समय आवेग, लापरवाही और अस्थिरता का भाव रहता है। लेकिन फेलेप्स अपने मजबूत इरादों की बदौलत जल्दी इन सबसे बाहर निकल गए।
फेलेप्स के बारे में यह सभी लोग जानते है कि वह जो कहते हैं बखूबी कर दिखाते है। पेइचिंग ओलंपिक में माइकल फेलेप्स ने चैलेंज देते हुए आठों स्पर्धाओं में भाग लिया था। फेलेप्स ने कहा था कि वह तैराकी के हर इवेंट में भाग लेंगे और गोल्ड मेडल जीतेंगे और फेलेप्स ने अपनी कही हुई बातों को सच कर दिखाया था। उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर यह करिश्मा कर दिखाया था।
वर्ष 2000 में ओलंपिक की फीकी शुरूआत करने वाले माइकल फेल्पस ने फिर कभी मुड़कर नहीं देखा। आज की तारीख में वह ओलंपिक के सबसे बड़े महारथी बन चुके हैं जो ताल ठोककर जीतना जानता है। साल 2000 में अमेरिका के लिए पिछले 70 सालों में ओलंपिक में क्वालीफाइ करने वाले फेलेप्स 15 साल की उम्र में सबसे युवा पुरूष ओलंपियन बने। 2004 में खेले गए एथेंस ओलंपिक में माइकल फेलेप्स इस कदर छाए कि दुनियाभर में उनके नाम का डंका बज गया। फेलेप्स ने एथेंस ओलंपिक में 6 गोल्ड और 2 ब्रांज मेडल जीते। उन्होंने अबतक 21 गोल्ड मेडल जीते हैं और कुल मिलाकर 16 साल में ओलंपिक में उनके 25 पदक हो चुके हैं। ओलंपिक में शामिल 205 देशों में से सिर्फ 32 देश ऐसे है जिनके पास फेलेप्स से ज्यादा गोल्ड है।
फेलेप्स ने ओलंपिक की दुनिया में अपना लोहा मनवाया है। कोई भी ओलंपिक शुरू होने से पहले ही उनके नाम की चर्चा होने लगती है। ओलंपिक के इतिहास में सर्वाधिक मेडल का रिकॉर्ड भी अब माइकल फेलेप्स के नाम हो गया है। उन्होंने अब तक कुल 25 मेडल जीते हैं जबकि उनके बाद लेरिसा लेटिनिना का नंबर है जिन्होंने जिमनास्ट में कुल 18 मेडल जीते। किसी भी एक सिंगल ओलंपिक में पहले स्थान पर रहते हुए सर्वाधिक 8 गोल्ड मेडल्स का रिकॉर्ड भी बीजिंग ओलंपिक के दौरान माइकल फेलेप्स के नाम दर्ज है।
फेलेप्स के बारे में तैराक दिग्गजों की राय भी जब ली जाती है तो दिग्गज मौन हो जाते हैं और उनसे कुछ कहते हुए नहीं बनता। रूस के दिग्गज तैराक एलेक्जेंडर पोपोव का मानना है कि अमरीका के स्टार तैराक माइकल फेलेप्स के लिए साबित करने को कुछ बाकी नहीं रह गया है। वह पहले ही खुद को साबित कर चुके हैं। रियो ओलंपिक शुरू होने से पहले उन्होंने कहा था कि क्या सच में फेलेप्स को कुछ साबित करने की जरूरत है?
जाहिर तौर पर फेलेप्स की खूबियां उन्हें महान तैराक बनाती है। लेकिन तैराकी के इस साधक की साधना को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। एक ओलंपिक से पहले तैराकी का यह अनोखा बाजीगर हजारों घंटे की तैराकी अभ्यास और अपने आत्मविश्वास की बदौलत जीत की इबारत लिखने के लिए स्वामिंग पूल में पानी को चीरता हुआ आगे बढ़ता है। उसके इस हौसलों में जीतने का वो जुनून भी होता है जिसकी बदौलत वह तैराकी का सबसा बड़ा महारथी के रूप में हर ओलंपिक में उभरकर सामने आता है। सुनकर हैरानी होती है कि भारत 116 साल में सिर्फ 26 मेडल जीत पाया है जिसमें 9 गोल्ड मेडल है। फेलेप्स के पास 25 मेडल है जिसमें सिर्फ 21 गोल्ड मेडल है।