साल के आखिरी दिन नए राजनीतिक दल बनाने का ऐलान करके रजनीकांत ने न्यू इयर में सबसे धमाकेदार पार्टी कर दी. पार्टी बनने से पहले रजनीकांत की मुख्यमंत्री बनने की आश्वस्ति और वायदे पूरे न होने पर 3 साल में त्यागपत्र की घोषणा से देश की सियासत में भूचाल कैसे आ सकता है?


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द्रविड़ सियासत का एजेंडा हो सकता है ठप्प 
तमिलनाडु में कई दशकों से द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (DMK) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIDMK) के बीच सत्ता के बंटवारे में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की नगण्य भूमिका रहती है. आर्य संस्कृति और हिन्दी के विरोध के नाम सत्ता हासिल करके द्रविड़ दलों ने तमिलनाडु को भ्रष्टाचार को ऊंचे पायदान पर पंहुचा दिया है. डीएमके के करुणानिधि और एआईडीमके के दिवंगत नेता एमजी रामचन्द्रन और जयललिता फिल्मों के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने. रजनीकांत के भाषण से यह स्पष्ट है कि तमिलनाडु की सियासत का रुख अब द्रविड़वाद की बजाए भ्रष्टाचार के खिलाफ होगा, जिससे सुशासन के एजेंडे का अखिल भारतीय विस्तार हो सकता है.


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रजनीकांत, क्या शिवाजी की तरह राष्ट्रवाद के महानायक बन पायेंगे
रजनीकांत कनार्टक में बस कंडक्टर थे पर उनके पूर्वज महाराष्ट्र में शिवाजी के सेनानी हुआ करते थे. संघ परिवार में शिवाजी को भारत का अंतिम हिन्दू शासक माना जाता है, जिन्होंने केसरिया ध्वज को गौरव प्रदान किया. शिवाजी की मां की तरह रजनीकांत की मां का नाम भी जीजाबाई (रमाबाई) है. रजनीकांत ने 10 साल पहले शिवाजी फिल्म में भ्रष्टाचार के विरुद्ध महानायक की भूमिका निभाई थी. रजनीकांत ने अपने भाषण में गीता के उपदेशों, अच्छे बनने और मां-बाप के प्रति समर्पित होने की बात कही. द्रविड़ भूमि में राष्ट्रवाद के केसरिया एजेंडे से रजनीकांत तमिलनाडु की राजनीति में कैसे सफल हो पायेंगे?
 
क्या रजनीकांत दलित राजनीति का नया केन्द्र बनायेंगे
तमिलनाडु के समाज में दलित और पिछड़ों का बाहुल्य होने के बावजूद ब्राह्मण जयललिता ने राजनीति में लंबा राज किया. गरीब और दलितों पर भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा मार पड़ती है और वे विकास में अपनी वाजिब हिस्सेदारी चाहते है. गुजरात चुनावों में जिग्नेश मेवानी के दलित एजेंडे से बीजेपी के विजय-रथ की रफ्तार धीमी हो गई. भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लोकप्रिय एजेंडे पर चुनावी वोटों की फसल काटने के लिए रजनीकांत यदि दलित राजनीति का कार्ड खेलें तो देश की सियासत में भूचाल आ सकता है.


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तमिलनाडु की पॉलिटिक्स में सत्ता का फिल्मी खेल
पद्मविभूषण रजनीकांत की तमिलनाडु में सबसे ज्यादा फैन फॉलोइंग है. भारत रत्न सचिन तेंदुलकर भी देश में सर्वाधिक लोकप्रिय खिलाड़ी हैं पर उन्हें अभी तक राज्य सभा में बोलने का मौका ही नहीं मिला. हेमामालिनी, जया बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, किरण खेर, स्मृति ईरानी जैसे फिल्मी कलाकार राजनीति में भी सफल हो गए पर अमिताभ बच्चन, धमेंन्द्र और गोविन्दा राजनीति को ठुकराकर फिल्मी दुनिया में वापस आ गये. चिरंजीवी ने 2008 में खुद की पार्टी बनाई और फिर कांग्रेस से जुड़ गये और अब कमल हसन ने अरविंद केजरीवाल से मुलाकात कर सरगर्मी पैदा कर दी है. बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हाराव ने रजनीकांत की राजनीति में एंट्री का स्वागत किया है. जयललिता की मौत के बाद रजनीकांत तमिलनाडु की राजनीति के नए हीरो भले ही बन जायें पर वह अपने वादों को कैसे पूरा करेंगे?


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रील लाइफ के हीरो, रीयल लाइफ में कैसे करेंगे बदलाव
रजनीकांत ने कहा है कि वे तमिलनाडु में 2021 के चुनावों में सभी 234 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़ा करेंगे. रजनीकांत जैसा चमत्कारिक हीरो ही पार्टी बनने से पहले मुख्यमंत्री पद को निश्चित मानकर वायदे पूरा न होने पर 3 साल में त्यागपत्र की बात कर सकता है. अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद केजरीवाल ने आप पार्टी बनाकर 95 फीसदी सीटें जीतकर दिल्ली में सरकार बना लिया पर 3 साल बाद गर्वनेंस में शायद ही कोई बदलाव आया हो? 


तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीमएमके के भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता, रजनीकांत का राजतिलक कर भी दे तो रील लाइफ का हीरो पब्लिक की रियल लाइफ में कैसे बदलाव लायेगा? इन सभी सवालों के बावजूद रजनीकांत की पॉलिटिक्स में एंट्री समाज, देश और गर्वनेंस के लिए नये साल में एक बेहतरीन शुरुआत तो मानी ही जानी चाहिए.


(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.)