गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सॉफ्ट हिंदुत्व की नीति अपनाई, ताकि अल्पसंख्यक परस्त पार्टी की उसकी छवि दूर हो सके और हिंदू उसे बिना किसी पूर्वाग्रह के अपना सकें. इसी नीति के तहत राहुल गांधी मंदिर दर्शन करते रहे. इस दौरान जब वे सोमनाथ मंदिर गए, तो उनके धर्म पर भी सवाल खड़ा हो गया. चुनाव परिणाम आने के बाद भी वे सोमनाथ मंदिर दर्शन करने गए. उस समय कुछ लोगों को लगा होगा कि कांग्रेस पार्टी अपनी अल्पसंख्यक परस्त छवि से बाहर निकलने के लिए गंभीर है, लेकिन इस धारणा पर सवाल खड़ा होने में ज्यादा समय नहीं लगा. फौरी तीन तलाक विरोधी विधेयक की राह में उसने राज्यसभा में जिस तरह अड़ंगा डाला, उससे उसकी इस नीति को धक्का लगने में देर नहीं लगी. जाहिर है भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उठाएगी. ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस अब भी अल्पसंख्यक परस्त पार्टी है?


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सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या कांग्रेस वास्तव में हिंदुत्व को लेकर नरम है या हिंदुओं को भ्रम में रखना चाहती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस खुद ही नीतिगत भ्रम का शिकार है? बेशक फौरी तीन तलाक का मसला मुस्लिम समाज से जुड़ा है, लेकिन यहां लैंगिक समानता का प्रश्न भी छिपा हुआ है. मुस्लिम समाज में ऐसे लोग हैं जो इसे धार्मिक दृष्टि से देख सकते हैं, लेकिन एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस को समग्र दृष्टि अपनानी पड़ेगी.


अगर फौरी तीन तलाक को संज्ञेय अपराध बनाया जाना गलत है, तो सवाल उठ सकता है कि क्या दहेज उत्पीड़न को संज्ञेय अपराध बनाया जाना उचित था? क्या दहेज उत्पीड़न संबंधी कानून का दुरुपयोग नहीं होता? क्या इससे हिंदू समाज के लोग अनावश्यक रूप से परेशान नहीं होते? कांग्रेस जिस तरह राज्यसभा में फौरी तीन तलाक विरोधी विधेयक का विरोध कर रही है, क्या उसने दहेज उत्पीड़न संबंधी कानून का कभी विरोध किया? क्या यह समाज के प्रति कांग्रेस का दोहरा रवैया नहीं दिखाता? इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मंजुल कुमार सिंह का कहना है कि हिंदूसमाज में व्याप्त दहेज प्रथा की बुराई को दूर करने के लिए दहेज निषेध कानून जवाहरलाल नेहरू के शासनकाल में बनाया गया था, जबकि महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए भारतीय अपराध संहिता में धारा 498ए इंदिरा गांधी के राज में खासतौर पर जोड़ी गई थी. दोनों में ही दहेज उत्पीड़न को संज्ञेय अपराध बनाया गया है.


फौरी तीन तलाक विरोधी विधेयक लोकसभा से पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों के विरोध के कारण इसमें गतिरोध उत्पन्न हो गया है, जहां भाजपा अल्पमत में है. अब बजट सत्र में इस पर विचार किया जाएगा. कांग्रेस का यह रुख कथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाली तृणमूल कांग्रेस, राजद, सपा, वामपंथी पार्टियों जैसा है, जिन्हें मुसलमानों के बीच समर्थन प्राप्त है.


क्षेत्रीय दलों की राजनीति का पैमाना अलग है, जिसे तय करने में राज्य की सामाजिक परिस्थितियों का योगदान होता है. कांग्रेस इसमें फिट नहीं बैठती, फिर भी वह उनके साथ लामबंद होती है तो ऐसा माना जा सकता है कि कांग्रेस मुसलमानों को नाराज कर उनका वोट नहीं खोना चाहती. ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस इस विधेयक को रुकवाना चाहेगी, लेकिन अगर वह फौरी तीन तलाक विरोधी विधेयक को अन्य पार्टियों के साथ मिलकर राज्यसभा से पास होने से रुकवा भी दे, तो इससे उसे राजनीतिक लाभ के बजाय नुकसान ही ज्यादा होगा. असली फायदा क्षेत्रीय दलों को होगा. कांग्रेस को लाभ तभी होगा, जब उनके साथ उसका उस राज्य विशेष में चुनावी गठबंधन हो. अगर कांग्रेस को विपक्षी एकता की चिंता है, तो यह तभी कारगर होगी, जब वह खुद मजबूत होगी. ऐसे में कांग्रेस द्वारा विपक्षी दलों को आधार बनाकर इसे प्रवर समिति में भेजने के प्रस्ताव पर ज्यादा जोर डालना उसके लिए राजनीतिक दृष्टि से फायदेमंद नहीं है. उल्टे भाजपा राजीव गांधी के शासनकाल में सामने आए शाहबानो केस का मसला उछालकर उसकी कथित धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशीलता को लेकर घेरेगी, जैसा कि उसके नेताओं के बयानों से परिलक्षित हो रहा है. शायद इसी कारण खुद भाजपा भी इसको पास कराने की जल्दबाजी में नहीं लगती.


ध्यान रहे इस साल आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चूंकि भाजपा को मुस्लिम वोट नाममात्र के ही मिलते हैं, इस कारण उसे फौरी तीन तलाक विरोधी कानून बनाने में कोई हिचक नहीं है. जिन मुस्लिम महिलाओं के हित की बात भाजपा कर रही है, उनमें भी भाजपा को कम ही वोट मिलेंगे. भाजपा के रणनीतिकारों को इसका अहसास होगा. भाजपा की नजर वास्तव में मुस्लिम नहीं, हिंदू वोट पर है. इसलिए भाजपा चाहेगी कि कांग्रेस इसका विरोध करे, ताकि उसकी ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राजनीति पर लोग विश्वास न करें. कांग्रेस इसका जितना विरोध करेगी, भाजपा को उतना ही राजनीतिक लाभ होगा, क्योंकि हिंदू समाज में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ विरोध भाव बढ़ता जा रहा है.


हालांकि हिंदू समाज को इससे प्रत्यक्षतः कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन उसमें ऐसी धारणा बढ़ती जा रही है कि वह साफ्ट टारगेट है, कोई भी उसके रीति-रिवाज में प्रगतिशीलता के नाम पर आसानी से हस्तक्षेप कर लेता है. कांग्रेस को यह समझना होगा, अन्यथा ऐसे कई मसले भाजपा लेकर आएगी, जहां उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. चाहे वह आतंकवाद का मुद्दा हो या बांग्लादेशी घुसपैठियों का, कांग्रेस को संभलकर प्रतिक्रिया देनी होगी. राहुल गांधी की मंदिर दर्शन की रणनीति उसकी नीतियों में झलकना चाहिए. इसके अभाव में वह दिखावा बनकर रह जाएगा. ऐसा लगता है कि कांग्रेस अब भी दुविधाग्रस्त है.


(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)