इन गोल्डन गर्ल्स ने ऐसे दी मुश्किलों को मात और बढ़ा दी तिरंगे की शान
महिला मुक्केबाज नीतू, ज्योति गुलिया, साक्षी चौधरी, शशि चोपड़ा और अंकुशिता बोरो ने कमाल करते हुए 5 गोल्ड अपने नाम कर लिए.
नई दिल्ली : खेलों में एक बार फिर से देश की बेटियों ने हमें मुस्कराने का मौका दिया है. इस बार मैडल मुक्केबाजी में बरसे हैं. इस बार बॉक्सिंग की यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप गुवाहाटी में हुई. इस चैंपियनशिप में अब तक भारत ने सिर्फ दो मैडल जीते थे, लेकिन इस बार टीम की महिला मुक्केबाज नीतू, ज्योति गुलिया, साक्षी चौधरी, शशि चोपड़ा और अंकुशिता बोरो ने कमाल करते हुए 5 गोल्ड अपने नाम कर लिए. ये महिला मुक्केबाज देश के किसी बड़े शहरों से नहीं हैं. बल्कि ये ताल्लुक रखती हैं गांव और छोटे कस्बों से. लेकिन इन महिला खिलाड़ियों ने अपने दमदार प्रदर्शन से दुनिया के नक्शे पर देश की सुनहरी चमक बिखेर दी.
लेकिन इन सभी महिला मुक्केबाजों का ये सफर इतना आसान नहीं था. ये सभी सामान्य से घरों से वास्ता रखती हैं. ऐसे में इन्हें खेल के लिए अनुमति मिलना मुश्किल था. इन खिलाड़ियों में से किसी के पिता किसान, किसी के टीचर तो किसी के पिता सरकारी कर्मचारी हैं.
गांव की बेटियों ने पहली बार महिला मुक्केबाजी में देश को दिलाए 5 गोल्ड
48 किलोग्राम की केटेगरी में गोल्ड जीतने वाली ज्योति ने तो अपने परिवार को बिना बताए बॉक्सिंग शुरू की थी. उनके पिता ममन किसान हैं. वह याद करते हुए कहते हैं कि जब उसने हमें बॉक्सिंग के बारे में बताया तो हम बहुत गुस्सा हुए थे, क्योंकि वह बहुत अच्छी डांसर थी. ऐसे में हम चाहते थे कि वह वही करे. हमने उससे कहा कि वह बॉक्सिंग छोड़ दे.
अब ज्योति के गोल्ड मैडल जीतने पर उसके पिता बहुत खुश हैं. वह कहते हैं कि हमने ही उसे बॉक्सिंग छोड़ने के लिए कहा था. लेकिन ये उसकी ही लगन थी, कि वह यहां तक पहुंची. मुझे उम्मीद है कि वह अब मुझे थोड़ा ब्रेक देगी. एक पिता अपनी बेटी से और क्या चाहेगा. भिवानी बॉक्सिंग अकादमी में बॉक्सिंग सीखने वाली साक्षी और नीतू भी सामान्य परिवारों से ताल्लुक रखती हैं. नीतू के पिता जय भगवान बिजली विभाग में काम करते हैं और घर घर जाकर बिल देते हैं. जयभगवान कहते हैं कि इस खबर के बाद मेरा सीना चौड़ा हो गया है.
लिंग असमानता से उबरने की कोशिश में ओलंपिक मुक्केबाजी
अभी हाल में भारतीय मुक्केबाजी के कोच बनाए गए इटली के रफेल बेगामास्को कहते हैं कि भारतीय लड़कियों के पंच बहुत ताकतवर होते हैं. भले ये लड़कियां गांव से आती हैं, लेकिन इनकी तकनीक भी कमाल की होती है. हालांकि मानसिक रूप से ये इतनी तैयार नहीं होती हैं. हालांकि मैंने उन्हें ज्यादा से ज्याद ट्रेनिंग लेने के लिए कहा है.
कुछ ऐसी ही कहानी असम की अंकुशिता बोरो की है. उनके पिता प्रोबेशन टीचर हैं. उनका परिवार गुवाहाटी से 150 किमी दूर मेगाई गैरानी गांव में रहता है. उनकी रंजीता कहती हैं कि आज उनकी बेटी सिर्फ उनकी नहीं पूरे देश की बेटी बन गई है. वह अब उसकी पुरस्कार राशि से उसके लिए पक्के कमरे बनबाएंगी. अब तक उनका परिवार बांस के बने घर में रहता है.
कौन हैं ये पांच गोल्डन गर्ल
अंकुशिता बोरो, असम
असम के छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली लड़की आज किसी परिचय का मोहताज नहीं रही. अंकुशिता ने 2012 में अपना सफर शुरू किया. हालांकि उनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उसे प्राइवेट कोचिंग दिला पाते. इसके बाद अंकुशिता को साई सेंटर में दाखिला मिल गया. 2013 में उसने डिस्ट्रिक लेवल पर गोल्ड मैडल जीतकर अपने इरादे जता दिए थे. photo : IANS
नीतू, हरियाणा
17 साल की नीतू ने 48 किग्रा के वर्ग में गोल्ड जीता. उन्होंने भिवानी बॉक्सिंग अकादमी में बॉक्सिंग के गुर सीखे हैं. कुछ साल पहले तक उन्हें नेशनल कैंप में जगह नहीं मिली थी. उन्होंने अपने गांव में ही बॉक्सिंग सीखी. सुबह वह अपने खेतों में बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करती, तो शाम को बॉक्सिंग क्लब में. photo : PTI
ज्योति गुलिया, हरियाणा
ज्योति को उनके घरवालों ने पहले बॉक्सिंग सीखने से मना किया था. हालांकि उन्होंने अपनी जिद से बॉक्सिंग जारी रखी. शुरुआती दौर में ज्योति को उनके रुरकी गांव के सरपंच और बॉक्सिंग कोच सुधीर हुड्डा ने ट्रेनिंग दी. photo : PTI
साक्षी चौधरी, हरियाणा
साक्षी चौधरी ने भी भिवानी बॉक्सिंग अकादमी से बॉक्सिंग के गुर सीखे. 54 किलो वर्ग में उन्होंने गुवाहाटी में गोल्ड जीता. 2015 में जूनियर वर्ल्डकप कैंप में भी उन्हें बॉक्सिंग सीखने का मौका मिला. Photo : IANS
शशि चोपड़ा, हरियाणा
मेरी कॉम को अपना आदर्श मानने वाली शशि भी हरियाणा की रहने वाली हैं. उन्होंने 57 किलो वर्ग में देश के लिए गोल्ड जीता. जब मेरी कॉम ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता तो उनकी उम्मीदों को भी पंख लग गए. photo : PTI