जूनडलूप: आपातकालीन परिस्थितियों में काम करने वाले कर्मचारी और सफाई कर्मचारी 9/11 के राहत एवं बचाव कर्मियों में शामिल हैं जो आतंकवादी हमलों के 20 साल गुजर जाने के बाद भी स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं. बचाव, बरामदगी और सफाई कार्यों के दौरान 91,000 से अधिक कर्मियों और वॉलंटियर्स को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ा था.


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21 मार्च 2021 तक करीब 80,785 बचाव कर्मियों ने विश्व व्यापार केंद्र (World Trade Center) हेल्थ प्रोग्राम में रजिस्ट्रेशन कराया था जिसकी स्थापना हमलों के बाद उनके स्वास्थ्य की निगरानी करने और उनके इलाज के लिए की गई थी. अब एरिन स्मिथ, ब्रिगिड लारकिन और लीजा होम्स, एडिथ कोवन यूनिवर्सिटी ने एक शोध किया है जो इन स्वास्थ्य रिकॉर्डों की जांच पर आधारित है. ये दिखाता है कि बचाव कर्मियों को अब भी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.


कैंसर समेत इन बीमारियों से जूझ रहे लोग


रिसर्चर्स ने पाया कि स्वास्थ्य कार्यक्रम में 45% रेस्पोंडेंट को श्वसन-पाचन बीमारी है. ये एक ऐसी स्थिति होती है जो सांस लेने-छोड़ने के अंगों और ऊपरी पाचन तंत्र को प्रभावित करती है. कुल 16% को कैंसर है, और अन्य 16 प्रतिशत को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारी है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं वाले रेस्पोंडेंट्स में से केवल 40% की उम्र 45 से 64 के बीच है और 83% पुरुष हैं. विश्लेषण से पता चलता है कि स्वास्थ्य कार्यक्रम में नामांकित 3,439 रेस्पोंडेंट अब मर चुके हैं जो हमलों के दिन मारे गए 412 पहले रेस्पोंडेंट की तुलना में कहीं अधिक है.


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मौत के आंकड़े में हुई 6 गुना वृद्धि


श्वसन (respiration) और ऊपरी पाचन तंत्र के डिसऑर्डर मौत का सबसे पहला कारण 34% है. इसके बाद कैंसर 30% और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं 15% हैं. इन तीन कारणों के साथ-साथ मस्कुलोस्केलेटल (मांसपेशियों, जोड़ों, नसों, कोशिकाओं आदि में दर्द) और तीव्र दर्दनाक चोटों के कारण होने वाली मौतों में 2016 की शुरुआत से 6 गुना वृद्धि हुई है.


5 सालों में 185% बढ़ गया कैंसर


उभरती स्वास्थ्य समस्याओं के साथ हेल्थ प्रोग्राम में रजिस्ट्रेशन करने वाले रेस्पोंडेंट की संख्या हर साल बढ़ रही है. पिछले 5 वर्षों में 16,000 से अधिक रेस्पोंडेंट्स ने नामांकन कराया है, जबकि कैंसर 185% बढ़ा है. विशेष रूप से ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) आम समस्या के रूप में उभर रहा है, जो मलाशय एवं मूत्राशय के कैंसर से आगे निकल गया है. प्रोस्टेट कैंसर भी आम है जो 2016 से 181 प्रतिशत बढ़ा है. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर स्थल पर जहरीली धूल को अंदर लेने से कोशिका संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ी हो सकती हैं, जिससे कुछ रेस्पोंडेंट में सूजन करने वाली टी-कोशिकाओं (एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिका) की संख्या बढ़ जाती है. यह बढ़ी हुई सूजन अंततः प्रोस्टेट कैंसर का कारण बन सकती है. इसके अलावा वहां बहुत समय तक मौजूद रहने और क्रॉनिक हार्ट डिजीज के बीच भी अहम संबंध हो सकता है. हमलों की सुबह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पहुंचने वाले दमकलकर्मियों में अगले दिन आने वालों की तुलना में हार्ट डिजीज विकसित होने की संभावना 44% अधिक है.


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20% लोगों को मानसिक बीमारी


लगभग 15-20 प्रतिशत रेस्पोंडेंट्स के पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) लक्षणों के साथ जीने का अनुमान है जो सामान्य आबादी में नजर आने वाली दर से लगभग चार गुना है. बीस साल बीत जाने के बावजूद, उत्तरदाताओं के लिए पीटीएसडी एक बढ़ती हुई समस्या है. सभी रेस्पोंडेंट्स में से लगभग आधे लोगों का कहना है कि उन्हें पीटीएसडी, चिंता, अवसाद और जिंदा बचे रहने के अपराध बोध सहित मानसिक स्वास्थ्य की कई समस्याओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की लगातार आवश्यकता है.


मरीजों के कोविड होने का खतरा


बचाव कर्मियों की अंडरलाइंग हेल्थ कंडीशन, जैसे कैंसर और सांस संबंधी बीमारियों ने भी उन्हें कोविड-19 होने का खतरा बढ़ा दिया है. अगस्त 2020 के अंत तक, कुछ 1,172 बचावकर्मियों में कोविड-19 की पुष्टि हुई थी. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में एस्बेस्टस के संपर्क में आने पर हुए कैंसर से पीड़ित लोगों की संख्या आने वाले वर्षों में बढ़ने की आशंका है. राहत एवं बचाव कर्मियों के स्वास्थ्य की निरंतर निगरानी एक प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए, विशेष रूप से एस्बेस्टस से संबंधित नए कैंसर के बढ़ते खतरे को देखते हुए.


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