यूरोप का वो देश जहां 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है भारत जैसी ये परंपरा
Culture Recycling in Germany: वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक जर्मनी में चीजों को रिसाइकल करने की दर दुनिया में सर्वाधिक 56.0 प्रतिशत है. इसके बाद ऑस्ट्रिया आता है. जर्मनी के रिसाइकलिंग सिस्टम के अध्ययन के लिए देश-दुनिया की संस्थाएं आती हैं.
Germany Leads List of World’s Top Recyclers: हिंदुस्तान में चीजों को लंबे समय तक सहेजने और उन्हें रिसाइकिल करके इस्तेमाल करने की पुरानी परंपरा रही है. यूज एंड थ्रो वाले इस जमाने में भी टिपिकल देसी माइंडसेट वाले मिडिल क्लास लोग आज भी किसी भी किसी पुरानी चीज को बेकार समझ कर बाहर नही फेंकते है. हर वस्तु को किसी न किसी तरह से फिर से उपयोग करने लायक बना लिया जाता है. चाहे कपड़े हों या कोई और सामान उसे कबाड़ में बेचने फेंकने या कटवाने के बजाए उसके नए-नए तरीके से इस्तेमाल की जो परंपरा रही है, उसे जर्मनी में जमकर फॉलो किया जाता है.
'रिसाइकिलिंग प्रथा नहीं संस्कार'
जर्मनी आबादी के लिहाज से यूरोपियन युनियन का सबसे बड़ा देश है. जर्मनी में सालाना 30 मिलियन टन कचरा इकट्ठा होता है. यहां का ग्रीन डॉट सिस्टम दुनिया के चुनिंदा सबसे कामयाब रीसाइक्लिंग सिस्टम में से एक है. यहां की परंपराओं में ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड तक की झलक है. यहां लोग घर के अलावा आस-पड़ोस को भी साफ रखने में यकीन करते हैं. जर्मनी में चाहे पूर्वी हिस्सा हो या देश का पश्चिमी हिस्सा चीजों को यथासंभव रिसाइकल करने की परंपरा है. जर्मनी में चीजों का रिसाइकिल किया जाना महज एक प्रथा नहीं बल्कि सीरियस बिजनेस जैसा है. रिसाइकिलिंग के जरिए यहां के धरती को बचाने में अपना योगदान बखूबी निभाते हैं.
यहां लोग ध्यान रखते हैं कि जो चीजें पुनः इस्तेमाल हो सकती हैं, उन्हें न फेंका जाए. अगर पड़ोसियों को पता चल जाता है कि कोई रिसाइकल हो सकने वाली चीज को कूड़े में फेंक रहा है, तो आस-पड़ोस तक में संबंध खराब हो जाते हैं.
सौ साल पुरानी परंपरा
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक जर्मनी में चीजों को रिसाइकल करने की दर दुनिया में सर्वाधिक 56.0 प्रतिशत है. इसके बाद ऑस्ट्रिया आता है. जर्मनी के रिसाइकलिंग सिस्टम के अध्ययन के लिए देश-दुनिया की संस्थाएं आती हैं.
पहले विश्वयुद्ध के समय शुरू हुई प्रथा
जर्मनी में रिसाइकलिंग की शुरुआत प्रथम विश्वयुद्ध के समय हो गई थी, ताकि संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो. नेशनल वुमन सर्विस के तहत वेस्ट कलेक्शन समूह बनाए गए थे. प्रथम विश्वयुद्ध से सबक लेकर नाजियों ने टोटल वेस्ट रिकवरी मॉडल बनाया था.
भारतीयों से मिलती जुलती है जर्मंस की सोंच
जैसे भारत मे पुराने कपड़ों में पैंट या पाजामा है तो उसको फाड़ कर बच्चों के लिए हाफ पैंट या निकर बना लेते है. वो भी फट जाएगी तो घर की महिलाएं उसका पोछा बना लेगी. इसी तरह पुरानी हो चुकी धोती को छोटा करके गमछा बना लिया जाता है. वो गमछा भी फट जाने पर पोछा बना लिया जाता है. छोटे छोटे कपड़े जो पोछा या गमछा बनाने लायक नहीं है उन्हें पुरानी हो चुकी धोती की खोली में डालकर बिस्तर बना लिया जाएगा. इसी तरह से जर्मनी में प्लास्टिक के सामान का रिसाइकिल करना हो या भारी धातु से बना सामान, सभी को रिसाइकिल करके ऐसा रूप दे दिया जाता है कि उसे देखने वाले दांतो तले उंगलिया दबा लेते हैं.
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