29 अप्रैल का दिन कोई आम दिन नहीं है. बात अगर रासायनिक हथियारों और मानव जाति की सुरक्षा की हो तो ये दिन एक महत्वपूर्ण दिन है. 29 अप्रैल, 1997 को रासायनिक हथियार निषेध संगठन (Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons—OPCW) अस्तित्व में आया.


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रासायनिक हथियार निषेध संगठन (OPCW)-


रासायनिक हथियार निषेध संगठन यानी ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर प्रोहिबिशन ऑफ़ केमिकल वेपंस(OPCW) एक स्वतंत्र संस्था है, जो संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करता है. ये संगठन Chemical Weapons Convention(CWC) यानी रासायनिक हथियार संधि के प्रावधानों को क्रियान्वित करती है. यह संस्था दुनिया भर में रासायनिक हथियारों को नष्ट करने और उनकी रोकथाम के लिये काम करती है. यह रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल, उत्पादन एवं भंडारण को निषेध करती है. इसका मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में स्थित है. आज 192 देश इसके सदस्य है, जिनमें सीरिया भी शामिल है.


CWC का उद्देश्य 


CWC में चार मुख्य प्रावधान हैं. सभी रासायनिक हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय निगरानी में नष्ट किया जाए. रासायनिक उद्योग पर नजर रखना जिससे दोबारा रासायनिक हथियार न बनने लगें. रासायनिक हथियार के खतरों से देशों को सहायता और सुरक्षा प्रदान करना और संधि के प्रावधानों को लागू करने में सभी देशों का सहयोग लेना व रसायनों के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना.


CWC में किये गये निषेध


रासायनिक हथियारों का निर्माण, उत्पादन, अधिग्रहण और भंडारण करना.


रासायनिक हथियारों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से स्थानांतरित करना.


रासायनिक हथियारों का सैन्य प्रयोग करना.


संधि द्वारा निषिद्ध गतिविधियों में अन्य देशों को लिप्त करना या सहायता पहुंचाना या प्रोत्साहित करना.


दंगा नियंत्रण में रासायनिक हथियारों का उपयोग करना.


क्या होते हैं रासायनिक हथियार


जब किसी घातक रसायन को इस्तेमल हथियार के रूप में किया जाता है तो वो रासायनिक हथियार कहलाता है. यानी कैमिकल वेपन, जिनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर जीवन खत्म करने के लिए किया जाता है. इन्हें वेपन्स ऑफ मास डिस्क्ट्रक्शन की श्रेणी में रखा जाता है. इसमें जहरीली गैस या अन्य जहरीले पदार्थ का हमला किया जाता है. वास्तव में इससे डरने की जरूरत है क्योंकि ये पल भर में ही हजारों-लाखों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं. 


इन रासायनिक हथियारों का प्रभाव तब तक बना रहता है जब तक कि हवा को साफ नहीं कर दिया जाता. ठोस, तरल और गैसीय रूप में रासायनिक हथियार व्यापक रूप में फैल सकते हैं. रासायनिक हथियार के कुछ उदाहरण हैं- मस्टर्ड गैस, सरीन, क्लोरीन, हाइड्रोजन साइनाइड और टीयर गैस.


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कितने खतरनाक होते हैं रासायनिक हथियार


जब रसायनिक हथियारों को विषैली गैस, ठोस या तरल पदार्थ के रूप में पर्यावरण में छोड़ा जाता है तो हमारा शरीर सबसे पहले प्रभावित होता है. जैसे आंखों से पानी आना, नाक से पानी बहना और दम घुटना, सांस लेने में दिक्कत और फिर इन्हीं कारणों से मौत हो जाती है. रासायनिक हमले कितने खतरनाक हैं ये इस बात से समझा जा सकता है कि इससे लोग घुट-घुट कर मरते हैं. और सबसे खतरनाक तो ये कि ये हमला कब हो जाता है, पता भी नहीं चलता. जब तक किसी को पता चलता है कि ऐसा कोई हमला हुआ है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और हजारों-लाखों लोग मौत के मुंह में समा चुके होते हैं. 


रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल सबसे पहले प्रथम विश्वयुद्ध (1914–18) में किया गया था, जिसमें क्लोरीन और फॉसजेन गैसों का इस्तेमाल किया गया. तब 90,000 लोग इससे मारे गए थे. 1980 के दशक के युद्ध के दौरान इराक द्वारा ईरान में रासायनिक हथियारों तथा 1988 में कुर्द निवासियों के खिलाफ मस्टर्ड गैस और नर्व गैस का इस्तेमाल किया गया था. 1994 में जापान में सरीन गैस के इस्तेमाल से 8 लोग मारे गए थे और करीब 500 लोग प्रभावित हुए थे. 1995 में टोक्यो मेट्रो में हुए एक सरीन हमले में 12 लोग मारे गए थे, जबकि 50 लोग घायल हुए थे.


रासायनिक हथियारों के प्रकार


रासायनिक हथियार असल में रासायनिक एजेंट होते हैं, चाहे गैसीय, तरल या ठोस किसी भी रूप में हों वो मानव, जानवरों और पौधों को प्रभावित करते हैं. जब ये सांस के जरिए, त्वचा के माध्यम से शरीर में अवशोषित होते हैं या फिर खाने-पीने की चीजों में घुल भी जाते हैं. 


प्रथम विश्व युद्ध के बाद से कई तरह के रासायनिक एजेंटों को हथियारों के रूप में विकसित किया गया है. इनमें चोकिंग एजेंट्स, ब्लिस्टर एजेंट्स, ब्लड एजेंट्स, नर्व एजेंट्स, इन्कैपेसिटेंट्स, रायट कंट्रोल एजेंट्स, और हर्बीसाइड्स शामिल हैं.


चोकिंग एजेंट- चोकिंग एजेंट यानी दम घोंटने वाले एजेंट को गैस के बादल के रूप में टारगेट एरिया तक पहुंचाया जाता है, जहां व्यक्ति सांस लेते ही इसका शिकार हो जाता है. इसमें व्याप्त विषाक्त एजेंट प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करते हैं, जिससे फेफड़ों में पानी भर जाता है और फेफड़े बुरी तरह बुरी तरह खराब हो जाते हैं. ऐसे में सांस न ले पाने की वजह से या कहें कि ऑक्सीजन की कमी से मौत हो जाती है. ये इतने खतरनाक होते हैं कि संपर्क में आने के तुरंत बाद से लेकर तीन घंटे के अंदर अंदर व्यक्ति की मौत हो जाती है. 


इसमें फॉस्जीन और क्लोरीन जैसी गैस शामिल हैं. फॉस्जीन का इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध में हुआ था. जब जर्मनी ने ब्रिटिश सेना पर करीब 88 टन फॉस्जीन का इस्तेमाल किया था. प्रथम विश्व युद्ध में जितने भी लोगों की रासायनिक हथियारों से मौत हुई थी, उनमें से 80 फीसदी फॉस्जीन गैस की वजह से ही मरे थे. चोकिंग एजेंटों के खिलाफ सुरक्षात्मक गैस मास्क ही सबसे अच्छा बचाव है.


ब्लिस्टर एजेंट- प्रथम विश्व युद्ध में ही ब्लिस्टर एजेंट भी विकसित किए गए थे. उस संघर्ष में सल्फर मस्टर्ड यानी mustard gas को ब्लिस्टर एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया गया था. इसके संपर्क में आते ही कई लोग हताहत हुए. ये हथियार तरल या वाष्प किसी भी रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ये हथियार त्वचा, आंखों, सांस की नली और फेफड़ों को जला डालते हैं. इसके प्रभाव तुरंत या कई घंटों के बाद दिखाई दे सकते हैं. आधुनिक ब्लिस्टर एजेंटों में sulfur mustard, nitrogen mustard, phosgene oxime, phenyldichlorarsine और lewisite शामिल हैं. इनसे बचने के लिए भी प्रभावी गैस मास्क और सुरक्षात्मक पोशाक की जरूरत होती है.


ब्लड एजेंट- हाइड्रोजन साइनाइड या सायनोजेन क्लोराइड जैसे ब्लड एजेंट को वाष्प के रूप में छोड़ा जाता है. जब सांस ली जाती है, तो ये एजेंट ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक पहुंचने से रोक देते हैं. जिससे दम घुटने लगता है. ये रसायन एंजाइम को ब्लॉक करते हैं जो एरोबिक मेटाबॉलिज्म के लिए जरूरी होते हैं, इससे लाल रक्त कोशिकाओं को ऑक्सीजन नहीं मिलती. जिसका प्रभाव कार्बन मोनोऑक्साइड की तरह ही होता है. ब्लड एजेंटों के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव प्रभावी गैस मास्क है.


नर्व एजेंट- सबसे घातक रासायनिक हथियारों में नर्व एजेंट होते हैं, जो सीधे नर्वस सिस्टम को प्रभावित करते हैं. त्वचा पर इसकी एक बूंद भी इतनी घातक है कि श्वसन और हृदय को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क केद्रों को प्रभावित करती है जिससे लकवा हो सकता है. नर्व एजेंटों के जहर से खू पसीना आता है, गले में म्यूकस भर जाता है, दिखाई देना कम हो जाता है, उल्टियां उल्टी और दस्त, दौरे और अंत में पैरालाइसिस और सांस रुक जाती है. अगर जहर सांस के जरिए शरीर में गया तो कुछ ही मिनटों में और अगर त्वचा के जरिए गया तो कछ ही घंटों में मौत हो जाती है. tabun, sarin और VX आदि नर्व एजेंट समय समय पर इस्तेमाल किए जाते रहे हैं.


इनकैपेसिटेंट(incapacitants)- ये रसायन विरोधियों को अक्षम और पंगु बना सकते हैं. इन्हें लोगों को मारने के लिए नहीं बनाया गया है. हालांकि अगर ज्यादा मात्रा में दिया जाए तो इससे जान भी जा सकती है. ये भी तंत्रिका तंत्र पर हमला कर सकते हैं और पीड़ित व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं को रोक सकते हैं, जैसे- व्यक्ति की अजीब चीजें दिखाई देने लगती हैं जिसे hallucinations कहा जाता है, उसका दिमाग खराब हो जाता है, उसे खूब नींद आ सकती है.


दंगा-नियंत्रण एजेंट(riot control agents)- दंगों और अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस और ऐसे एजेंट बनाए गए जिससे उल्टी होती है. ये मुख्य रूप से आंखों को प्रभावित करते हैं. इसका इस्तेमाल सिर्फ पुलिस करती है. 


हर्बिसाइड्स- इससे इंसान नहीं पेड़ पौधों पर इस्तेमाल किए जाते हैं. जब तक कि हर्बिसाइड्स युद्ध की एक तकीक के रूप में उपयोग नहीं किए जाते, तब तक सीडब्ल्यूसी उसपर प्रतिबंध नहीं लगा सकता. सीडब्ल्यूसी के सभी राज्य पक्ष हर्बिसाइड्स को रासायनिक हथियार नहीं मानते हैं.


रासायनिक हथियारों के मामले में क्या है दुनिया की स्थिति 


सीडब्ल्यूसी के हस्ताक्षरकर्त्ता 192 देशों में से अल्बानिया, भारत, इराक, लीबिया, रूस, सीरिया और अमेरिका रासायनिक हथियार धारक देश हैं. इनमें से अल्बानिया, भारत, लीबिया, रूस और सीरिया द्वारा रासायनिक हथियारों को नष्ट करने की घोषणा की गई है. ओपीसीडब्ल्यू के मुताबिक, दुनिया के कुल 72,304 रासायनिक हथियारों में से लगभग 96.27% यानी 69,610 को सच में नष्ट किया जा चुका है.