Bangladesh is rewriting textbooks on 1971 Liberation War: बांग्लादेश में शेख हसीना ने जबसे देश छोड़ा, देश में हाहाकार मचा हुआ है. यूनुस सरकार में शेख हसीना से जुड़े हर इतिहास को बदलने की कवायद है. हद तो तब हो गई जब बांग्लादेश में 1971 का इतिहास भी बदला जा रहा है. जानें पूरा मामला.
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Bangladesh new textbooks: बांग्लादेश में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से ही हिंदुओं पर अत्याचार की खबरें तो आप सबने खूब सुनी होगी. अब जो खबर सामने आई है वह बहुत हैरान करने वाली है. अब 'बांग्लादेश के राष्ट्रपिता' कहे जाने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान को लेकर मोहम्मद यूनुस ने वो चाल चली है, जिसको सुनने और पढ़ने के बाद शेख हसीना के समर्थक बहुत दुखित होंगे. जिस इंसान ने बांग्लादेश बनाने में योगदान दिया, अब उसी का वजूद मिटाने पर तुले हैं कट्टरपंथी यूनुस.
बांग्लादेश में बदलेगा 1971 का इतिहास
बांग्लादेश 1971 के युद्ध पर पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिख रहा है. कई बदलावों के साथ नई पाठ्यपुस्तकें 1 जनवरी से प्राथमिक और माध्यमिक छात्रों के बीच वितरित की जा रही हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 1971 के मुक्ति युद्ध पर पाठ्यपुस्तकों को संशोधित किया है, जिसमें कहा गया है कि जियाउर रहमान ने देश की स्वतंत्रता की घोषणा की, पिछले पाठ को बदल दिया गया जिसमें घोषणा का श्रेय बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को दिया गया था. डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, कई बदलावों के साथ नई पाठ्यपुस्तकें 1 जनवरी से प्राथमिक और माध्यमिक छात्रों के बीच वितरित की जा रही हैं.
सरकार क्या कहती है
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर एकेएम रेजुल हसन ने कहा कि 2025 शैक्षणिक वर्ष के लिए नई पाठ्यपुस्तकों में लिखा होगा कि "26 मार्च, 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की, और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की". उन्होंने कहा कि यह जानकारी उन निःशुल्क पाठ्यपुस्तकों में शामिल कर ली गई है, जहाँ पहले स्वतंत्रता की घोषणा का उल्लेख किया गया था.
क्या तर्क देकर हटाया जा रहा इतिहास?
पाठ्यपुस्तकों के संशोधन में योगदान देने वाले लेखक और शोधकर्ता राखल राहा ने बताया कि उनका उद्देश्य सामग्री से "अतिरंजित, थोपे गए इतिहास" को हटाना था. "पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करने वालों ने पाया कि शेख मुजीबुर रहमान द्वारा पाकिस्तानी सेना द्वारा गिरफ्तार किए जाने के दौरान स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला वायरलेस संदेश भेजने का दावा तथ्यात्मक जानकारी पर आधारित नहीं था, इसलिए उन्होंने इसे हटाने का फैसला किया."
शेख हसीना की पार्टी कर रही विरोध
उधर अवामी लीग के समर्थकों का व्यापक रूप से मानना है कि शेख मुजीबुर रहमान ने घोषणा की थी, जियाउर रहमान जो मुक्ति संग्राम के दौरान एक सेना प्रमुख और बाद में एक सेक्टर कमांडर थे. उन्होंने मुजीबुर के निर्देश पर इसे पढ़ा था. इसके विपरीत, बीएनपी के समर्थकों का तर्क है कि उनकी पार्टी के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने घोषणा की थी।
बांग्लादेश में अब टेक्सटबुक में बताया जाएगा कि ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान ने नहीं जियाउर रहमान ने 1971 में आजादी की घोषणा की थी. नई पाठ्यपुस्तकों से मुजीब की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा दी गई है. 2025 शैक्षणिक वर्ष के लिए नई पाठ्यपुस्तकों में कहा जाएगा कि 26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की.
किस क्लास में होंगे ये बदलाव
मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार में प्राइमरी और मिडिल शैक्षणिक संस्थानों के लिए बांग्ला और अंग्रेजी टेक्स्टबुक में बड़े बदलाव होने जा रहे हैं, जिनमें बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान से संबंधित कुछ कंटेंट को हटाना शामिल है. नेशनल करीकुलम और टेक्स्टबुक बोर्ड (एनसीबीटी) के सूत्रों के अनुसार, कक्षा पांच से नौ तक की बांग्ला और अंग्रेजी टेक्स्टबुक में छात्र-नेतृत्व वाले जन आंदोलन की सामग्री शामिल की जा सकती है. कक्षा छह से नौ की अंग्रेजी टेक्स्टबुक से शेख मुजीबुर रहमान पर आधारित छह लेख और गद्य हटाए जाएंगे, जबकि जुलाई आंदोलन पर चार लेख जोड़े जाएंगे.
मुजीब और जियाउर की विरासत को लेकर क्या है विवाद?
जियाउर रहमान बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी के संस्थापक और मौजूदा बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया के पति थे. वहीं हाल ही में सत्ता छोड़ने को मजबूर हुईं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता मुजीब ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था. मुजीब और जियाउर की विरासत को लेकर बांग्लादेश में हमेशा से ही राजनीतिक विवाद रहा है. यह सवाल उठते आए हैं कि बांग्लादेश की आजादी की घोषणा किसने की. जहां मुजीब के नेतृत्व में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व करने वाली पार्टी अवामी लीग का दावा है कि यह घोषणा 'बंगबंधु' ने की थी, वहीं बीएनपी अपने संस्थापक जियाउर को इसका श्रेय देती है.
जिसकी सत्ता, उसी के हिसाब से नाम?
यह पहली बार नहीं हुआ है जब बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में इस तरह के बदलाव किए गए हैं. इससे पहले भी बांग्लादेश में सत्ता के हिसाब से इतिहास को बदल दिया गया है. 1978 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति के रूप में जियाउर के शासनकाल के दौरान पहली बार इतिहास को आधिकारिक तौर पर बदल दिया गया था और जियाउर को आजादी की घोषणा करने वाला शख्स बताया गया था. तब से आधिकारिक इतिहास को कई बार लिखा जा चुका है। 2009 में सत्ता में आने के बाद हसीना ने भी इतिहास बदल दिया था.