Indian Student Numbers Drop in UK Universities: आजादी के 77 साल बाद भी देश का एजुकेशन सिस्टम आबादी की जरूरतों के हिसाब से नाकाफी है. आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब साढ़े चार करोड़ छात्र हैं लेकिन उनमें केवल 29% ही यूनिवर्सिटी का मुंह देख पाते हैं. यानी दाखिला लेते हैं. नीति आयोग के सीईओ BVR सुब्रमण्यम ने कहा, 'भारत के 50% छात्रों के दाखिले के लिए वर्तमान यूनिवर्सिटीज की संख्या 1200 से दोगुनी यानी करीब 2500 करने की जरूरत है. बीते 10 साल में हर महीने एक यूनिवर्सिटी और दो कॉलेज खुलते हैं. फिर भी उपयुक्त आयु वर्ग के केवल 29% छात्र ही ग्रेजुएशन में दाखिला लेते हैं. तमाम चुनौतियों के बावजूद गिरी से गिरी हालत में 50 प्रतिशत से ज्यादा छात्रों को कॉलेजों में होना चाहिए.’


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इन्हीं कारणों की वजह से आर्थिक रूप से सक्षम पैरेंट्स बच्चों को बेहतर शिक्षा (हायर एजुकेशन) के लिए विदेश भेजना पसंद करते हैं. भारतीय छात्र रूस से लेकर मिडिल ईस्ट और अमेरिका-कनाडा से लेकर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तक पढ़ने जाते हैं. इस बीच एक रिपोर्ट में सामने आया है कि ब्रिटेन में पढ़ने के लिए भारतीय छात्र-छात्राओं का रुझान कम हुआ है. और क्या कुछ कहती है ये रिपोर्ट आइए बताते हैं.


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रिपोर्ट के मुताबिक करीब 21 फीसदी गिरावट आई है. सीमित नौकरी की संभावनाओं, सुरक्षा चिंताओं और आश्रितों पर प्रतिबंधों के कारण ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों का नामांकन 20.4% कम हो गया है.


ये गिरावट, नाइजीरियाई छात्रों की संख्या में गिरावट के साथ मिलकर, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों पर अत्यधिक निर्भर ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों के लिए वित्तीय जोखिम पैदा करती है. इंग्लैंड में उच्च शिक्षा क्षेत्र की स्थिरता पर एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय छात्र ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में आवेदन करना टाल रहे हैं, जिससे वहां की वित्तीय परेशानियां कुछ बढ़ गई हैं.


गौरतलब है कि वहां के शिक्षण संस्थान पहले से ही सीमित बजट की चुनौती का सामना कर रहे हैं. साल 2022-23 से 2023-24 तक यूके प्रदाताओं द्वारा विदेशी छात्रों के लिए स्वीकृति (CAS) की पुष्टि पर यूके होम ऑफिस के आंकड़ों के आधार पर किए गए एक विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय छात्र संख्या में 20.4 प्रतिशत की गिरावट आई है. अब भारतीय छात्रों की संख्या वहां 1,39,914 से घटकर 111,329 तक पहुंच गई है.


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कमी की वजह क्या है?


इस सवाल के जवाब में ब्रिटेन में मौजूद भारतीय छात्र समूहों का कहना है कि बीते कुछ सालों में ब्रिटेन की नीतियों में बदलाव हुआ है. प्रवासियों को दी जाने वाली सुविधाएं कम हुई हैं. छात्रों के लिए मौके और नौकरी की संभावनाएं कम हुई हैं. असुरक्षा की भावना और हाल ही में कुछ शहरों में प्रवासी लोगों के खिलाफ हुए प्रदर्शनों और कुछ दंगों के बाद सुरक्षा संबंधी चिंताओं को भारतीय छात्रों की संख्या में गिरावट की वजह माना जा रहा है.


सरकारी शिक्षा विभाग से संबद्ध निकाय की रिपोर्ट में कहा गया है, 'कुछ प्रमुख सोर्स देशों के छात्र वीजा आवेदनों में काफी गिरावट आई है. भारतीय और नाइजीरियाई छात्रों को जारी किए गए CAS की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. नाइजीरिया के आवेदन की संख्या में करीब 45 फीसदी की कमी आई है.


एजेंसी की रिपोर्ट में एक चेतावनी जारी की गई है, जिसमें लिखा है कि सेल्फ फाइनेंस मॉडल समेत तमाम यूनिवर्सिटी और कॉलेज जो भारतीय, नाइजीरियाई और बांग्लादेश के छात्रों पर बहुत हद तक अधिक निर्भर हैं, अगर विदेशी छात्रों की समस्याओं/चिंताओं पर ध्यान न दिया गया तो हालात बिगड़ सकते हैं.