अपने आराध्य महादेव पर क्यों क्रोधित हो गए श्रीराम और चला दिया पाशुपतास्त्र, पढ़िए रामायण की रोचक कथा
श्रीराम ने जब अश्वमेध यज्ञ किया तो यज्ञ का घोड़ा कई राज्यों से होकर गुजरा. यह सारे राज्य राम राज्य के अधीन हो गए, लेकिन एक राज्य देवपुर ने विद्रोह किया तो युद्ध करने खुद महादेव को आना पड़ा.
नई दिल्लीः रामायण और महाभारत मुख्य तौर पर धर्म की स्थापना करने वाले महाकाव्य के तौर पर जाने जाते हैं. इनकी कहानी क्रमशः राम-रावण युद्ध और कौरव-पांडव युद्ध की है. लेकिन अपने-अपने युग में हुई ये दोनों ही घटनाएं कई और प्रसंगों को साथ लेकर आगे बढ़ती हैं. इनमें से कई कथाएं दंतकथाओं के तौर पर हमारे समाज में लोगों द्वारा सुनी जाती रही हैं.
श्रीराम ने किया अश्वमेध यज्ञ
ऐसी ही एक कथा रामायण से जुड़ी हुई है. अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक होने के कुछ दिनों बाद वह अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया गया. यज्ञ का घोड़ा लेकर श्रीराम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न राज्यों-राज्यों में लेकर चलने लगे.
जिस राज्य में घोड़ा पहुंचता जाता और उसे सकुशल पार कर लेता वह राज्य श्रीराम के आधीन होता जाता.
घोड़ा पहुंचा देवपुर
इसी तरह कई राज्यों को जीतते हुए घोड़ा देवपुर पहुंचा. यहां राजा वीरमणि का राज्य था. राजा वीरमणि अति धर्मनिष्ठ तथा श्रीराम एवं महादेव के अनन्य भक्त थे. उनके दो पुत्र रुक्मांगद और शुभंगद बड़ी वीर थे और धर्मपरायण भी थे.
राजा वीरमणि और उनके भाई वीरसिंह महादेव शंकर की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था और महादेव ने उन्हें उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान दिया था. महादेव के द्वारा रक्षित होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था.
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राजा के पुत्र ने बांध लिया यज्ञ का घोड़ा
जब अश्व उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया और शत्रुघ्न के पास श्रीराम के नाम से चुनौती भी भेज दी. रुक्मांगद ने ये सूचना अपने पिता को दी तो वो चिंतित हुए और अपने पुत्र से कहा की अनजाने में तुमने श्रीराम के यज्ञ का घोडा पकड़ लिया है.
श्रीराम हमारे मित्र हैं और उनसे शत्रुता करने का कोई औचित्य नहीं है इसलिए तुम यज्ञ का घोडा वापस लौटा आओ. लेकिन रुक्मांगद ने तो चुनौती भी दे दी थी.
दोनों सेनाओं के बीच छिड़ गया युद्ध
पुत्र की बात सुनकर वीरमणि ने उसे सेना सुसज्जित करने की आज्ञा दे दी. राजा वीरमणि अपने भाई वीरसिंह और अपने दोनों पुत्र रुक्मांगद और शुभांगद के साथ विशाल सेना ले कर युद्ध क्षेत्र में आ गए. इधर शत्रुघ्न भी घोड़े को बंदी बनाए जाने से क्रोधित थे.
लेकिन, इसी बीच पवनसुत हनुमान ने कहा कि राजा वीरमणि के राज्य पर आक्रमण करना स्वयं परमपिता ब्रम्हा के लिए भी कठिन है क्योंकि ये नगरी महाकाल द्वारा रक्षित है. उचित होगा कि पहले हम बातचीत के जरिए कोई मार्ग निकालें. हल न निकले तो श्रीराम को सूचित करें.
राजा वीरमणि ने महादेव को किया याद
लेकिन, शत्रुघ्न ने हनुमान को चुनौती भरा पत्र दिखाया और कहा कि हमारे रहते अगर श्रीराम को युद्ध भूमि में आना पड़े, ये हमारे लिए अत्यंत लज्जा की बात है. अब जो भी हो हमें युद्ध तो करना ही पड़ेगा. ये कहकर वे सेना सहित युद्धभूमि में पहुच गए. दोनों सेनाओं में अतुलनीय वीर थे.
बहुत लंबा युद्ध चला, लेकिन कोई हल न निकलता देख शत्रुघ्न ने वीरमणि की सेना को मोहिनी शक्ति में बांध दिया और ब्रह्मपाश में राजा उनके भाई और उनके पुत्र को बांध लिया. खुद को संकट में घिरा देख, राजा वीरमणि ने महादेव को याद किया.
शिवगणों ने मचाया भयंकर उत्पात
महादेव ने महाकाल स्वरूप में आकर दोबारा युद्ध छेड़ दिया और पल भर में पासा ही पलट दिया. वह शत्रुघ्न पर मूर्छा प्रहार करने ही वाले थे कि अब हनुमान ने अपने प्रभु श्रीराम को याद किया और स्थिति संभालने की प्रार्थना की. श्रीराम उनकी प्रार्थना सुनकर सेना सहित प्रकट हो गए.
श्रीराम को भी आना पड़ा युद्ध में
उधर भृंगी आदि महादेव गणों ने शत्रुघ्न सेना पर भयानक आक्रमण कर दिया. अपने प्रभु को आया देख सभी हर्षित हो गए एवं सबको ये विश्वास हो गया कि अब हमारी विजय निश्चित है. श्रीराम ने देखा के शिवगणों ने अयोध्या की सेना और राजकुल के वीरों-पुत्रों का वध कर दिया है.
श्रीराम ने क्रोध में आकर वीरभद्र से कहा कि तुमने जिस प्रकार मेरे कुल का वध किया है उसी प्रकार अब अपने जीवन का भी अंत समझो. ऐसा कहते हुए श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिवगणों पर धावा बोल दिया. अब श्रीराम को क्रोधित देख शिवगणों ने महादेव को याद किया. महादेव भी युद्ध में पधारे.
वीरमणि की रक्षा करने महादेव भी आए
जब श्रीराम ने देखा कि स्वयं महादेव रणक्षेत्र में आये हैं तो उन्होंने शस्त्र का त्याग कर भगवान रूद्र को दंडवत प्रणाम किया एवं उनकी स्तुति की. उन्होंने कहा कि यह अश्वमेध यज्ञ और युद्ध आपकी ही इच्छा से हो रहा है, इसलिए जैसी आज्ञा दें.
ये सुन कर भगवान रुद्र बोले की हे राम, आप स्वयं विष्णु हैं. मेरी आपसे युद्ध करने की कोई इच्छा नहीं है फिर भी मैंने अपने भक्त वीरमणि को उसकी रक्षा का वरदान दिया है इसलिए मैं इस युद्ध से पीछे नहीं हट सकता अतः संकोच छोड़ कर आप युद्ध करें.
महादेव-राम में हुआ भयंकर युद्ध
श्रीराम ने इसे महाकाल की आज्ञा मान कर युद्ध करना शुरू किया. दोनों में महान युद्ध छिड़ गया. श्रीराम ने अपने सारे दिव्यास्त्रों का प्रयोग महाकाल पर कर दिया पर उन्हें संतुष्ट नहीं कर सके. अंत में उन्होंने पाशुपतास्त्र का संधान किया और भगवान शिव से बोले की हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता, इसलिए हे महादेव आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूँ.
ये हुआ युद्ध का परिणाम
ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया. वो अस्त्र सीधा महादेव के हृदयस्थल में समा गया और भगवान शिव इससे संतुष्ट हो गए. उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें.
इसपर श्रीराम ने युद्ध समाप्ति सहित दोनों ओर के योद्धाओं के जीवन का वरदान मांगा. महादेव की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का घोड़ा श्रीराम को लौटा दिया और अपना राज्य रुक्मांगद को सौंप कर वे भी शत्रुघ्न के साथ आगे चल दिए.
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