नई दिल्लीः महाभारत का युद्ध जारी था. लगातार छह दिन तक भीषण युद्ध के बाद भी जब कोई परिणाम नहीं निकला तो गुस्से में आकर दुर्योधन ने पितामह भीष्म को कठोर वचन कहे और कहा कि युद्ध भूमि में भी आप लगातार संबंधों को निभा रहे हैं.
पितामह ने लिया अर्जुन वध का प्रण
इससे क्रोधित पितामह ने पांडव पुत्र अर्जुन के वध का प्रण कर लिया. गुप्तचर ने यह सूचना दी तो पांडव शिविर में मौन छा गया. पांचों भाई एक-दूसरे को देखते और फिर इधर-उधर चहल कदमी करने लग जाते थे. इस लंबे मौन को तोड़ते हुए पांचाली सीधे केशव की ओर मुड़ कर बोली, तो क्या मधु सूदन कोई उपाय नहीं है?
कृष्ण ने भुवन मोहिनी मुस्कान के साथ कहा, मैंने कब कहा कृष्णे, कि कोई उपाय नहीं है?
यह सुनकर अर्जुन और अन्य चारों भाई कृष्ण को घेर कर खड़े गए. अर्जुन बोले, उपाय है तो बताइए न केशव, मौन क्यों साध रखा है? जल्दी बताइए.
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श्रीकृष्ण ने बताया उपाय
कृष्ण बोले, तुमने पूछा ही कहां है पार्थ. तुम सब तो सूचना सुनकर ही उलझ गए हो. फिर कृष्ण द्रौपदी की ओर घूमे और बोले- कृष्णे, मैं तुम्हारे ही मौन भंग की प्रतीक्षा कर रहा था. क्योंकि जो उपाय है वह तुम हो, स्वयं तुम. यह सुनते ही भीमसेन गरज पड़े, यह क्या कह रहे हैं माधव? पांचाली युद्ध भूमि में नहीं जाएगी.
माधव बोले, नहीं भीम भैया, मैं युद्ध भूमि में जाने की बात नहीं कर रहा हूं. यह तो युद्ध का नियम भी नहीं है. लेकिन एक वधु अपने पितामह के आशीर्वाद के लिए तो जा ही सकती है.
क्यों पांचाली, पितामह का आशीष कब से नहीं लिया. यह सुनकर पांचाली सजल नेत्रों से बोली, द्यूत सभा के बाद इस पुण्य का अवसर ही नहीं आया. अभिमन्यु के विवाह में ऐसा सुखद क्षण आया भी था तो पितामह मुझे देखकर अपमानित न महसूस करें तो उनकी ओर गई ही नहीं.
पितामह के शिविर की ओर चली द्रौपदी
अच्छा.. कृष्ण ने एक लंबी हुंकार भरते हुए कहा, तो चलो द्रौपदी, पितामह से आशीर्वाद लेने चलो. बुजुर्गों के आशीष से ही तो जीवन में हर विजय मिलती है. तो उठो, जल्दी चलो.
नकुल रथ लाने बढ़े तो केशव ने रोक दिया, बोले बुजुर्गों का निवास तीर्थ से कम नहीं होता, वहां रथ पर चढ़कर नहीं श्रद्धा भाव से पैदल ही चलो.
द्रौपदी, पैदल ही कौरव शिविर की ओर बढ़ चली. मार्ग में कृष्ण ने कहा कि तुम नव विवाहिता की तरह घूंघट कर के पितामह के पास जाना और अपने पति के लिए अभय मांग लेना. परिचय मत देना.
जब कृष्ण यह बता रहे थे द्रौपदी की खड़ाऊं रात के सुनसान में शोर कर रही थी. गुप्तचरों को आहट का खतरा था, इसलिए कृष्ण ने द्रौपदी की खड़ाऊं उतरवा ली और उन्हें हाथ में पकड़कर चलने लगे.
द्रौपदी ने पितामह से लिया सौभाग्य का वरदान
द्रौपदी पितामह के शिविर के पास जाकर लम्बा घूंघट निकाल कर वहीं बैठ गईं और सुबकने लगीं. प्रहरी ने पूछा तो कुछ नहीं बताया, थोड़ी देर में पितामह आचमन के लिए बाहर आ गए.
कर्ण की तरह उनका भी नियम था कि आचमन पूजा के समय द्वार पर कोई मांगने के लिए आए तो उसे लौटाते नहीं थे.
एक स्त्री को सुबकते देखकर उन्होंने पूछा क्यों रो रही हो पुत्री, कहो, क्या कष्ट है. द्रौपदी ने कहा क्या आप सच मे कष्ट दूर कर सकेंगे. द्रौपदी के बार-बार ऐसा कहने पर पितामह ने आचमन करते हुए अवश्य कह दिया.
द्रौपदी ने कहना शुरू किया, मेरे पति इस युद्ध में आपकी विरोधी सेना में हैं. 6 दिन से मैं उस सेना के सैनिकों की स्त्रियों का विलाप सुन रही हूं.
नगर में चर्चा है कि आज आप और भयंकर युद्ध करेंगे. ऐसे में आज मुझे अपने पति के प्राणों के बचने का संदेह है.
आप उन्हें अभय दें. इतना कहकर द्रौपदी ने उनके चरण छू लिए. द्रौपदी ने सौभाग्यवती बने रहने का आशीष मांग लिया. पितामह ने वचन दिया था, इसलिए आशीष तो दे दिया, लेकिन उन्होंने उस स्त्री से उसके पति का परिचय पूछा.
उत्तर में द्रौपदी ने घूंघट उठा दिया. पितामह सकपका गए. फिर हंसते हुए बोलो, पुत्री, अकेले आई हो? या मेरे प्रिय पुत्र भी आए हैं?
द्रौपदी ने कहा नहीं पितामह, केशव साथ आए हैं. बाहर द्वार पर खड़े हैं. यह सुनते ही पितामह द्वार की ओर भागे और कृष्ण की ओर जा लपके.
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भगवान की शरण में थे पांडव
अरे देवकीनंद, यहां खड़े हो. अचानक पितामह को देख कृष्ण भी सकपका गए. उनके दोनों हाथ जुड़ने के लिए उठे तो द्रौपदी के दोनों खड़ाऊं उनके हाथ में बज गए. पितामह ने उनका हाथ पकड़ लिया और द्रौपदी को नंगे पांव देख सारा माजरा समझ गए.
पितामह भीष्म ने कहा- जिसकी रक्षा के लिए त्रिलोक के नाथ खुद उसकी खड़ाऊं हाथ में उठा लें तो फिर कौन उसका वध कर सकता है. वह तो ईश्वर के हाथ पर खेल रहा है. कौन उसका सौभाग्य मिटा सकता है. द्रौपदी अपने सौभाग्य का वरदान लेकर लौट आई.
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