नई दिल्लीः भारत की सरजमीं पर एक-एक डग बढ़ाते जाइए और उस पग के नीचे आने वाली जमीन का धार्मिक महत्व समझते चलिए. कंकड़-कंकड़ शिव और हर घर मंदिर वाले देश को अवतारों का देश कहा जाता है.
हालांकि यह भी विडंबना है कि कई बार इन्हें या तो महज कोरी गप्प समझा जाता है या फिर सिर्फ एक मनोरंजक मिथक कहकर टाल दिया जाता है.
पुराण पुरुष और अवतार की अवधारणा
फिर भी अगर किसी में देखने-समझने की ललक हो तो यहां के हजारों सालों से खड़े और कीर्तिगाथा कह रहे मंदिरों को ध्यान से देखें. इनकी दीवारों में चिनीं गईं हर एक ईंट ऐतिहासिक-पौराणिक सच्चाई बताने को आतुर दिखेंगीं.
कई सवालों और जिज्ञासाओं से होते हुए यह बात अवतार वाद की ओर बढ़ती है और फिर ईश्वर या जगदीश्वर के अलग-अलग स्वरूपों पर जाकर ठहर जाती है. जगदीश्वर यानी कि भगवान विष्णु.
पुराणों में जिन्हें पुराण पुरुष कहा गया है और वह भुवन मोहिनी मुस्कान के साथ सारे संसार का पालन कर रहे हैं. यही उनका काम और कर्तव्य भी बताया जाता है.
दशावतार में से एक मोहिनी अवतार
मोहिनी मुस्कान में सिर्फ मोहिनी पर ध्यान देते हैं. 24 अवतार और उनमें भी 10 मुख्य अवतार लेकर श्रीहरि विष्णु ने धरती की रक्षा की. इनमें से ही एक है मोहिनी अवतार. कभी महादेव को भस्मासुर से बचाने के लिए तो कभी असुरों से अमृत लेकर देवताओं को पिलाने के लिए श्रीहरि ही मोहिनी अवतार लेते हैं.
क्यों लेना पड़ा मोहिनी अवतार
यह सवाल भी उठता है कि आखिर, पुरुष को स्त्री का अवतार क्यों लेना पड़ा? अवतार शब्द को थोड़ा आसान कर दें तो इसे ऐसे कहीं कि पुरुष को रूप बदलकर स्त्री क्यों बनना पड़ा? जबकि कई सुंदर स्त्रियों के नाम मौजूद थे.
इंद्र की सभा में रंभा, मेनका जैसी अप्सराएं अपार सुंदर थीं. वह नृत्य और गान की भी महारथी थीं. लेकिन एक तर्क ऐसा हो सकता है कि यह अप्सराएं देव-दानवों दोनों की परिचित थीं.
मोहिनी की माया का असर
अमृत वाली कथा में एक ऐसा खूबसूरत स्त्री किरदार चाहिए था, जिसे कोई जानता न हो. हुआ भी यही, असुर उसकी सुंदरता से इतने मोहित हुए कि नाम-गांव तो पूछना भूल गए उल्टा अमृत कलश सौंप दिया. इस प्रसंग को पौराणिक जासूसी गतिविधि का एक उदाहरण माना जा सकता है.
महर्षि शुकदेव ने बताया मोहिनी का रहस्य
वर्तमान में भागवत कथा में इस प्रसंग को सुनाते हुए आधुनिक संत-महात्मा भी इस प्रसंग का संकेत समझने की ओर इशारा करते हैं. ठीक उसी तरह जैसे राजा जन्मेजय को भागवत और पुराण की कथा सुनाते हुए ऋषि शुकदेव जी मोहिनी अवतार की बात पर रुक गए.
क्या है मोहिनी का संकेत
यहां वह इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि राजन. यह सिर्फ इतनी सी बात नहीं है कि जगदीश ने मोहिनी अवतार लिया, बल्कि इसके जरिए वह संकेत करते हैं कि इस संसार में स्त्री ही शक्ति है. प्रकृति का जो भी रूप है वह स्त्री रूप है.
यानी हर पुरुष में लालन-पालन, प्रेम, दया, करुणा और क्रोध का जो आंतरिक भाव होता है, जिसके ऊपर वह अपनी कठोरता का आवरण चढ़ाता है, वह स्त्री का ही दिया हुआ है.
हर पुरुष की शक्ति है स्त्री
तुम राजा हो और सद् विचारों से अपनी प्रजा का ध्यान रखते हो, तो यह तुम्हारे अंदर छिपी हुई वत्सला और ममता है. इससे कोई अछूता नहीं रह सकता.
यह अवतार महज शिव को भस्मासुर से बचाने के लिए नहीं है, और न ही केवल देवताओं को अमृत पिलाने के लिए है, बल्कि यह अवतार बताता है कि पुरुष को जब अपने बाहुबल और वर्चस्व पर घमंड हो जाए तो बस एक बार वह खुद को कई परतों के नीचे झांक कर देख ले.
कई असुरों का अंत स्त्री शक्ति ने किया
यही वजह है कि आगे चलकर कामी और पाप के पर्याय हो चले कई असुरों का अंत स्त्री शक्ति ने किया, जिन्होंने खुद को प्रकृति से अलग ही मान लिया. ऋषि शुकदेव के इस कथन पर छद्म नारीवादी सवालों के सिर उठाएं इससे पहले ही साफ कर देना जरूरी है कि अनुशासन हीनता और अपराध करने वाला न पुरुष रह जाता है न ही स्त्री. उसे इन सबसे परे सिर्फ अपराधी ही समझना चाहिए.
देवताओं के स्त्री अवतार
एक तथ्य यह भी है कि सिर्फ विष्णु की ही स्त्री शक्ति मोहिनी नहीं हैं, बल्कि शिव खुद अर्धनारीश्वर रूप में अपनी शक्ति के साथ हैं.
इंद्र की शक्ति इंद्राणी उनकी पत्नी हैं. ठीक ऐसे ही एक बार गणेश जी ने स्त्री रूप में विनायकी अवतार लिया. यह अवतार भी मोहिनी से ही प्रेरित है.
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18 पुराणों में अलग-अलग है वर्णन
18 पुराणों में भी अलग-अलग तरीके से मोहिनी की व्याख्या की गई है. बह्म वैवर्त पुराण ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना का वर्णन करता है. उस दौरान सबसे पहले एक स्त्री का अवतरण हुआ. इसी स्त्री की मुस्कान से प्रेरित होकर ब्रह्नांड की रचना की गई.
ब्रह्माण्ड और पद्म पुराण भी यह बताते हैं कि विष्णु के आज्ञाचक्र में निवास करने वाली देवी ही विश्व मोहिनी हैं, जिनके कारण प्राणि की बुद्धि, स्मृति और मेधा शक्ति होती है. यही देवी नींद, भूख, प्यास को भी जगाती हैं और नियंत्रण में रखती हैं. शाक्त परंपरा में इसे ही स्वतंत्र रूप में त्रिपुर सुंदरी कहा गया है.
सृ्ष्टि में सबसे पहले हुआ मोहिनी का जन्म
गरुड़ पुराण मोहिनी को शिव की 13 कलाओं में से एक मानता है. वहीं नारद पुराण ऋषियों की निरंजनी शक्ति भी मोहिनी को ही बताता है. ब्रह्मवैवर्त्त पुराण मोहिनी को ब्राह्मी शक्ति कहता है, जो ज्ञान की भी स्त्रोत है. इसी ने रंभा का गर्व तोड़ा और उसे ब्रह्म तत्व का ज्ञान दिया. वायु पुराण में मधु - कैटभ राक्षसों के वध से पहले मोहिनी ही प्रकट होकर विष्णु की सहायता करती हैं. मोहिनी की ही माया के प्रभाव में राक्षसों ने विष्णु से खुद की ही मृत्यु का वर मांग लिया.
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विश्व की हर सभ्यता में है मोहिनी
यह तो थी भारतीय मिथकों में मोहिनी की बात. लेकिन संसार भर की सभ्यताओं को देखें पढ़ें तो वहां भी मोहिनी की माया ऐसी ही बिखरी हुई है. हालांकि उसका स्वरूप या पहचान का तरीका भिन्न है. कई जगहों पर उसे छल की देवी भी कहा गया है को कई स्थानों पर भ्रम पैदा करने वाली स्त्री की पहचान मिली है.
मिस्त्र की देवी हेकेटी
मिस्त्र की संस्कृति के प्राचीन मूल के अंश कहीं-कहीं ही मिलते हैं, लेकिन इसकी देवी हेकेटी को कई कहानियों में अब भी याद किया जाता है. कहते हैं कि वह हेकेट से संबधित थी,
लेकिन किस रूप में यह अब ज्ञात नहीं है. इस देवी को रक्षिका मानकर पूजा जाता रहा है. किवंदति है कि हेकेटी ने युद्ध में अचानक सामने आकर हेकेट की रक्षा की थी और दुश्मन भ्रमित रह गया था.
ग्रीक-यूनानी कथाओं में सेयरानेस
ग्रीक पौराणिक कथाओं में एक स्त्री चरित्र है सेयरानेस. यह देवी कई अलग-अलग हॉर्मनिका की आवाज निकाल कर भ्रम पैदा किया करती थी और देखने में बला सी खूबसूरती की मालिक.
इसकी आवाज पल भर में कभी इतनी तीक्ष्ण और कभी इतनी मधुर हुआ करती थी, दुश्मन भ्रमित हो जाता था. सेयरानेस देवी के ही नाम से आज इंग्लिश का सायरन शब्द बना है, जो तेज आवाज के रूप में जाना जाता है.
देवताओं का राजा ज्यूस युद्ध में कमजोर पड़ने पर इसी सेयरानेस देवी को आवाज निकालने के लिए कहता था.
जलपरियां भी हैं मोहिनी जैसी
सेयरानेस को महिलाओं और पक्षियों का संयोजन माना गया. बाद में, उन्हें पक्षियों के पैरों के साथ, बिना पंखों के साथ और वाद्ययंत्र बजाते हुए दिखाया गया. लियोनार्डो दा विंची अपने एक में नोट इन्हें जलपरियों जैसा बताते हैं. यही जलपरियां कई यूनानी समुद्री कथानकों में कभी नायिका तो कभी विलेन बनकर उभरी हैं.
कुल मिलाकर मोहिनी की माया प्राचीन काल से वर्तमान तक फैली है. इसी माया में रहकर इसी माया से परे होना जीवन बताया जाता है. बाकी सच क्या है, कैसा है सबके अपने अनुभव, सबकी अपनी सोच.
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