Gangaur Pooja: कब से शुरू हो रहा है गणगौर का पर्व, जानें घट स्थापना मुहूर्त और महत्व

Gangaur Pooja: पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती है. ये तिथि चैत्र मास की नवरात्र में आती है. इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं.

Written by - Dr. Anish Vyas | Last Updated : Mar 27, 2024, 11:14 AM IST
Gangaur Pooja: कब से शुरू हो रहा है गणगौर का पर्व, जानें घट स्थापना मुहूर्त और महत्व

नई दिल्ली: Gangaur Pooja: गणगौर का पर्व राजस्थान और भारत की भूमि के लिए बड़ा ही पवित्र और सुखद त्यौहार माना जाता है. इस पर्व को भारत में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. यह पर्व मां पार्वती को समर्पित है और इस पर्व में उन्हीं की पूजा की जाती है. खास तौर से राजस्थान में गणगौर का बेहद ही महत्व है. गणगौर का पर्व हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह तिथि 11 अप्रैल को है. गणगौर की पूजा चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है. इस दौरान सुहागन और कुंवारी कन्याएं माता पार्वती और शिवजी की पूजा करती हैं और पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं. इस पर्व की खास रौनक राजस्थान में देखने को मिलती है. राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात के कुछ इलाकों में भी यह पर्व मनाया जाता है. ये पर्व करवा चौथ जैसे ही मान्यता रखता है. इसके अनुसार कुंवारी कन्याएं और महिलाएं अच्छा पति पाने और पति के साथ सुखद जीवन व्यतीत करने के लिए इस व्रत का अनुसरण करती है. माना जाता है कि ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच भगवान शिव और मां पार्वती जैसा ही सुखद दाम्पत्य संबंध बनता है.

 11 अप्रैल को गणगौर पर्व मनेगा.ये त्योहार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है. इसमें कन्याएं और शादीशुदा महिलाएं मिट्टी के शिवजी यानी गण और माता पार्वती यानी की गौर बनाकर पूजन करती हैं. गणगौर के समाप्ति पर त्योहार धूम धाम से मनाया जाता है और झांकियां भी निकलती हैं. सोलह दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठकर बगीचे में जाती हैं, दूब और फूल चुन कर लाती हैं. दूब लेकर घर आती है उस दूब से मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता दूध के छीटें देती हैं. वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं. दूसरे दिन शाम को उनका विसर्जन कर देती हैं. जहां पूजा की जाती है उस जगह को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जन होता है उस जगह को ससुराल माना जाता है.

17 दिन तक मनाया जाता है यह पर्व
राजस्थान में गणगौर का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा (होली) के दिन से शुरू होता है, जो अगले 17 दिनों तक चलता है. 17 दिनों में हर रोज भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है और पूजा व गीत गाए जाते हैं. इसके बाद चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके व्रत और पूजा करती हैं और शाम के समय गणगौर की कथा सुनते हैं. मान्यता है कि बड़ी गणगौर के दिन जितने गहने यानी गुने माता पार्वती को अर्पित किए जाते हैं, उतना ही घर में धन-वैभव बढ़ता है. पूजा के बाद महिलाएं ये गुने सास, ननद, देवरानी या जेठानी को दे देते हैं. गुने को पहले गहना कहा जाता था लेकिन अब इसका अपभ्रंश नाम गुना हो गया है.

अविवाहित कन्या करती हैं अच्छे वर की कामना
 गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर महिला करती है. इसमें कुवारी कन्या से लेकर, शादीशुदा तक सब भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं. ऐसी मान्यता है कि शादी के बाद पहला गणगौर पूजन मायके में किया जाता है. इस पूजन का महत्व अविवाहि त कन्या के लिए, अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि, शादीशुदा महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए ये व्रत करती है. इसमें अविवाहित कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और शादीशुदा सोलह श्रृंगार करके पूरे सोलह दिन विधि-विधान से पूजन करती हैं.

देवी पार्वती की विशेष पूजा
गणगौर पर देवी पार्वती की भी विशेष पूजा करने का विधान है. तीज यानी तृतीया तिथि की स्वामी गौरी हैं. इसलिए देवी पार्वती की पूजा सौभाग्य सामग्री से करें. सौलह श्रृंगार चढ़ाएं. देवी पार्वती को कुमकुम, हल्दी और मेंहदी खासतौर से चढ़ानी चाहिए. इसके साथ ही अन्य सुगंधित सामग्री भी चढ़ाएं.

गणगौर 
गणगौर पर्व - 11 अप्रैल, 2024 
तृतीया तिथि प्रारम्भ – 10 अप्रैल, 2024 को शाम 05:32 बजे
तृतीया तिथि समाप्त – 11 अप्रैल, 2024 को अपराह्न 03:03 बजे
उदया तिथि को मानते हुए गणगौर का पर्व 11 अप्रैल को मनाया जाएगा और इसी दिन चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है.

गणगौर पर्व का महत्व
 गणगौर शब्द गण और गौर दो शब्दों से मिलकर बना है. जहां ‘गण का अर्थ शिव और गौर का मतलब माता पार्वती से है. दरअसल, गणगौर पूजा शिव-पार्वती को समर्पित है. इसलिए इस दिन महिलाओं द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की जाती है. इसे गौरी तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. भगवान शिव जैसा पति प्राप्त करने के लिए अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव के साथ सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए भ्रमण करती हैं. महिलाएं परिवार में सुख-समृद्धि और सुहाग की रक्षा की कामना करते हुए पूजा करती हैं.

गणगौर पूजने का गीत
गौर-गौर गोमनी, ईसर पूजे पार्वती, पार्वती का आला-गीला,
गौर का सोना का टीका, टीका दे टमका दे रानी, व्रत करियो गौरा दे रानी।
करता-करता आस आयो, वास आयो।
खेरे-खाण्डे लाड़ू ल्यायो, लाड़ू ले वीरा न दियो,
वीरो ले मने चूंदड़ दीनी, चूंदड़ ले मने सुहाग दियो.

(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.)

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