नई दिल्लीः महाराष्ट्र राज्य धार्मिक दृष्टिकोण भी संपन्न राज्य है. यहां प्रमुख ज्योतिर्लिंग, श्रीगणेश के प्रसिद्ध मंदिर, देवी लक्ष्मी और पार्वती के स्वरूप मंदिर भगवान विष्णु (lord vishnu) के भी प्राचीन मंदिर हैं.


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इन मंदिरों की खास बात है कि यह अपने वैदिक काल की प्रसिद्ध के अलावा समय के साथ घटे लोक प्रसंगों के लिए भी जाने जाते हैं जो कि हमें समय-समय पर प्रेरणा भी देते हैं.  


महाराष्ट्र में स्थित है पंढरपुर
इन्हीं में से महाराष्ट्र में एक धार्मिक स्थल है पंढरपुर (Pandharpur). कहा जाता है कि यह प्राचीन काल में पुंडलिकपुर था. जो बिगड़ते-बिगड़ते अपभ्रंश में पंढरपुर हो गया. 6वीं शताब्दी में यहां रहने वाले भक्त पुंडलिक (Pundlik story) के कारण इसका नाम पुंडलिकपुर पड़ा. भक्त पुंडलिक का नाम कृष्णभक्तों में शुमार है, लेकिन एक बार की घटना ने उन्हें भगवान भक्त के साथ-साथ माता-पिता का भक्त भी बना दिया. 


पुंडलिक थे माता-पिता के भक्त
बताते हैं कि भक्त पुंडलिक हर दिन अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करते थे. इस दौरान वह हरे कृष्ण-हरे कृष्ण का जाप करते रहते थे.



वृद्ध और रोगी माता-पिता की सेवा उन्हें नहलाना-धुलाना और भोजन कराना इसके बाद पैर दबाकर उन्हें सुलाना उनकी रोज की दिनचर्या थी. यह सब करने के बाद वह बाकी समय कृष्ण भक्ति में लगाते थे. 


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रुक्मिणी ने कृष्ण से परीक्षा लेने को कहा
रुक्मिणी ने उनकी यह कृष्णभक्ति देखकर कृष्ण (lord krishna) से उन्हें दर्शन देने और परीक्षा लेने के लिए कहा. रुक्मिणी के बार-बार कहने पर कृष्ण मान गए. एक दिन पुंडलिक (Pundlik) जब अपने माता-पिता के चरण दबा रहे थे तो द्वार पर दस्तक हुई. 


भक्त-भगवान में हुई बातचीत
पुंडलिक ने आवाज लगाई कौन है?
रुक्मिणी को लगा यह कैसा भक्त जो प्रभु को न पहचाने. 
इस पर कृष्ण ने कहा- तुमने ही मुझे बुलाया.
पुंडलिक ने कहा- अच्छी बात है, आपका स्वागत है. 
कृष्ण ने कहा- आओ मुझे प्रवेश कराओ.
पुंडलिक ने पैर दबाते हुए कहा- जिसे मैंने बुलाया वह तो किसी द्वार से परे है, आ जाओ. 
तब कृष्ण बोले- ठीक है, लो मैं अब तुम्हारे सामने. 


पुंडलिक ने श्रीकृष्ण को बैठने के लिए दी ईंट
कृष्ण को सामने खड़ा देखकर भी पुंडलिक ने पिता का पैर दबाना नहीं छोड़ा. उन्होंने बैठे-बैठे ही कृष्ण को प्रणाम किया और कहा- आइए प्रभु. बस कुछ देर रुकिए मैं पिता की सेवा कर लूं. फिर आपकी पूजा करता हूं. तब तक आप लीजिए यहां बैठ जाइए. ऐसा कहते हुए पुंडलिक ने श्रीकृष्ण की तरफ एक ईंट सरका दी. 


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भगवान बन गए विट्ठल
भक्त की इस निष्ठा को देखकर भगवान विभोर हो गए. वह इंट पर ही खड़े हो गए. इंतजार करते-करते कमर में दर्द हुआ तो वह कमर पर हाथ रखकर खड़े हो गए और कुछ टेढ़े हो गए. भगवान का यही रूप विट्ठल (vitthal) रूप विग्रह बनकर स्थापित हो गया. 


माता-पिता का रखें ध्यान
भक्त का प्रभाव ऐसा कि भगवान को भी इंतजार करना पड़ा और वह विट्ठल विठोबा कहलाए. पंढरपुर में आज भी श्रीकृष्ण के विठोबा स्वरूप की पूजा की जाती है. जो कि याद दिलाती है कि भगवान से भी अधिक धरती पर भगवान के रूप माता-पिता की सेवा अधिक बड़ी है. 



आज जिस तरह महामारी का समय चल रहा है. जिसमें हर कोई परेशान है. हर किसी के लिए जरूरी है कि वह अपने घर में बड़े-बुजुर्ग और माता-पिता की मन से सेवा करे. विश्वास बनाए रखें. यही सबसे बड़ी पूजा है. 


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