नई दिल्ली. कुंडली में ग्रहों की खराब स्थिति के कारण जातक को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर किसी जातक की कुंडली में शनि दोष हो तो उसे उपरोक्त क्षेत्र में हानि का सामना करना पड़ता है. वहीं, पुरुषों की कुंडली में शुक्र को वीर्य का कारक माना गया है. यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत हो तो जातक को जीवन में भौतिक और शारीरिक सुख-सुविधाओं का लाभ प्राप्त होता है.
बुध ग्रह
वैदिक ज्योतिष में बुध को बुद्धि, तर्क, गणित, संचार, चतुरता, मामा और मित्र का कारक माना गया है. बुध एक तटस्थ ग्रह है. इसलिए यह जिस भी ग्रह की संगति में आता है उसी के अनुसार जातक को इसके परिणाम प्राप्त होते हैं. यदि कुण्डली मे बुध की स्थिति कमज़ोर होती है तो जातक को गणित, तर्कशक्ति, बुद्धि और संवाद में समस्या का सामना करना पड़ता है. जबकि स्थिति मजबूत होने पर जातक को उपरोक्त क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं. बुध ग्रह मनुष्य के हृदय में बसता है. ज्योतिष के अनुसार बुध ग्रह का प्रिय रंग हरा है.
बृहस्पति ग्रह
ज्योतिष में बृहस्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है. गुरु को शिक्षा, अध्यापक, धर्म, बड़े भाई, दान, परोपकार, संतान आदि का कारक माना जाता है. जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत हो तो वह व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी होता है.
इसके अलावा उस व्यक्ति का स्वभाव धार्मिक होता है और उसे जीवन में संतान सुख की प्राप्ति होती है. वहीं यदि बृहस्पति कुंडली में कमज़ोर हो तो उपरोक्त चीज़ों में इसका नकारात्मक असर पड़ता है. बृहस्पति ग्रह को पीला रंग प्रिय है.
शुक्र ग्रह
शुक्र एक चमकीला ग्रह है. यह विवाह, प्रेम, सौन्दर्य, रोमांस, काम वासना, विलासिता, भौतिक सुख-सुविधा, पति-पत्नी, संगीत, कला, फ़ैशन, डिज़ाइन आदि का कारक होता है. विशेष रूप से पुरुषों की कुंडली में शुक्र को वीर्य का कारक माना गया है. यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत हो तो जातक को जीवन में भौतिक और शारीरिक सुख-सुविधाओं का लाभ प्राप्त होता है. यदि व्यक्ति विवाहित है तो उसका वैवाहिक जीवन सुखी व्यतीत होता है. वहीं यदि शुक्र कुंडली में कमज़ोर हो तो जातक को उपरोक्त क्षेत्र में अशुभ परिणाम देखने को मिलते हैं. शुक्र के लिए गुलाबी रंग शुभ होता है.
शनि ग्रह
शनि पापी ग्रह है और इसकी चाल सबसे धीमी है. अतः सभी ग्रहों में से इसके गोचर की अवधि बड़ी होती है. शनि गोचर के दौरान एक राशि में क़रीब दो से ढ़ाई वर्ष तक रहता है. इसलिए व्यक्ति को इसके परिणाम देर से प्राप्त होते हैं. ज्योतिष में शनि को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है. यदि किसी जातक की कुंडली शनि दोष हो तो उसे उपरोक्त क्षेत्र में हानि का सामना करना पड़ता है. ज्योतिष में शनि का बहुत बड़ा प्रभाव होता है. व्यक्ति के शरीर में नाभि का स्थान शनि का होता है. शनि के लिए काले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं.
राहु ग्रह
राहु एक छाया ग्रह है. ज्योतिष में राहु कठोर वाणी, जुआ, यात्राएं, चोरी, दुष्टता, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएं आदि का कारक होता है. यदि जिस व्यक्ति की कुंडली राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो तो उसकी कुंडली में राहु दोष पैदा होता है और उसे कई क्षेत्रों समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ता है. अपने स्वभाव के कारण ही राहु को ज्योतिष में एक पापी ग्रह माना गया है. राहु का स्थान मानव मुख में होता है. राहु-केतु दोनों का सूर्य और चंद्रमा से बैर है और इस बैर के कारण ही ये दोनों सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं.
केतु ग्रह
राहु के समान केतु भी पापी ग्रह है. ज्योतिष में इसे किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार केतु को तंत्र-मंत्र, मोक्ष, जादू, टोना, घाव, ज्वर और पीड़ा का कारक माना गया है. यदि व्यक्ति की जन्मपत्रिका में केतु अशुभ स्थान पर बैठा हो तो जातक को विभिन्न क्षेत्रों हानि का सामना करना पड़ता है. जबकि केतु यदि कुंडली प्रबल हो तो यह व्यक्ति को सांसारिक दुनिया से दूर ले जाता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति गूढ़ विज्ञान में अधिक रुचि लेता है. मानव शरीर में केतु का स्थान व्यक्ति के कण्ठ से लेकर हृदय तक होता है. राहु-केतु दोनों के प्रभाव से व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प दोष बनता है.
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)
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