नई दिल्ली: देश में एक ऐसा वर्ग जो हर बात पर आंदोलन करने को उतावला हो जाता है. पीएम मोदी ने ऐसे लोगों को आंदोलनजीवी बताया है. इन आंदोलनजीवियों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से भी फटकार लगी है.
देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ‘‘प्रदर्शन करने का अधिकार कहीं भी और कभी भी’’ नहीं हो सकता. कुछ अचानक प्रदर्शन हो सकते हैं लेकिन लंबे समय तक असहमति या प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है जिससे दूसरे लोगों के अधिकार प्रभावित हों.
दूसरों की परेशानी न बनें आंदोलन- सुप्रीम कोर्ट
आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि प्रदर्शन करने का अधिकार कहीं भी और कभी भी नहीं हो सकता. शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष पारित अपने आदेश की समीक्षा की मांग वाली याचिका खारिज कर दी. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि हमने समीक्षा याचिका और सिविल अपील पर गौर किया है और आश्वस्त हैं कि जिस आदेश की समीक्षा करने की मांग की गई है उसमें पुनर्विचार किए जाने की जरूरत नहीं है.
सार्वजनिक रास्ते का कब्जा करना गलत- सुप्रीम कोर्ट
गौरतलब है कि पिछले वर्ष फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि शाहीन बाग में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक रास्ते पर कब्जा जमाना स्वीकार्य नहीं है. शीर्ष न्यायालय के अनुसार कुछ अचानक प्रदर्शन हो सकते हैं लेकिन लंबे समय तक असहमति या प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है जिससे दूसरे लोगों के अधिकार प्रभावित हों.
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सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाए कर्तव्य
अदालत की पीठ ने हाल में फैसला पारित करते हुए कहा कि इसने पहले के न्यायिक फैसलों पर विचार किया और कहा कि प्रदर्शन करने और असहमति व्यक्त करने का संवैधानिक अधिकार है लेकिन उसमें कुछ कर्तव्य भी हैं. पीठ ने शाहीन बाग निवासी कनीज फातिमा और अन्य की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्रदर्शन करने का अधिकार कहीं भी और कभी भी नहीं हो सकता है.
शाहीन बाग प्रदर्शन को कोर्ट ने बताया था अवैध
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष अक्टूबर में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ शाहीन बाग में विरोध-प्रदर्शन को "अवैध" बताया था. इसके बाद कुछ कार्यकर्ताओं ने कोर्ट से इस फैसले की समीक्षा करने की गुहार लगाई थी लेकिन शनिवार को उनकी उम्मीदों को उस समय झटका लगा जब कोर्ट ने यह कहते हुए उनकी समीक्षा याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया कि विरोध करने का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता है. जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की तीन जजों वाली पीठ ने अपने पूर्व के फैसले पर कायम रहते हुए समीक्षा-याचिका खारिज कर दी.
कोर्ट ने कहा कि हमने पहले के न्यायिक घोषणाओं पर विचार किया है और अपनी राय भी दर्ज की है कि संविधान हमें विरोध-प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने का अधिकार तो प्रदत्त करता है, लेकिन साथ ही यह कुछ कर्तव्यों के प्रति दायित्वों का भी बोध कराता है.
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