नई दिल्ली: Haryana Congress Mistakes: हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सबको चौंका दिया है. भाजपा एक बार फिर सूबे में सरकार बनाती हुई नजर आ रही है. 10 साल से वनवास झेल रही कांग्रेस एक बार फिर सत्ता के करीब आते-आते रह गई. लगभग एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती हुई दिख रही थी, लेकिन साइलेंट वोटर की चोट ने कांग्रेस को धराशायी कर दिया.


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कांग्रेस का एग्रेसिव प्रचार, फिर भी ये स्थिति
हरियाणा में कांग्रेस का एग्रेसिव चुनाव प्रचार रहा. पार्टी ने जवान, पहलवान, किसान और संविधान के मुद्दे पर भाजपा को घेरा. इस दौरान भाजपा का चुनाव प्रचार एग्रेसिव न होकर डिफेंसिव था. PM मोदी से लेकर शाह तक ये गारंटी देते रहे कि संविधान से आरक्षण का प्रावधान खत्म नहीं किया जाएगा. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब कांग्रेस के पास इतने बड़े मुद्दे थे, तो पार्टी कैसे चुनाव हार गई.


कांग्रेस की हार के 5 बड़े कारण (Why Congress Lose Election)


1. हुड्डा बने पॉवर सेंटर: हरियाणा कांग्रेस में पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा का एकाधिकार था. बीते डेढ़-दो साल से हरियाणा कांग्रेस के बड़े फैसले हुड्डा ही ले रहे थे. फिर चाहे प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की नियुक्ति हो या लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारा हो, इन सबमें हुड्डा ही अकेले पॉवर सेंटर बनकर उभरे. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी 90 में से 70 से अधिक सीटें हुड्डा के कहने पर बंटे. इससे ये संदेश भी गया कि सूबे में पहले से प्रभावशाली जाति जाट अधिक प्रभावी हो सकती है है.


2. दिग्गज नेताओं की नाराजगी: कांग्रेस के दिग्गज नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला टिकट बंटवारे से खुश नहीं थे. दोनों नेताओं ने अपने करीबियों और समर्थकों के लिए प्रचार किया. सूबे की बाकी सीटों पर चुनाव प्रचार करने नहीं गए. कुमारी सैलजा ने लंबे समय तक चुनाव प्रचार से दूरी रखी, इसके बाद वे लौटीं. हालांकि, तब भी कई इंटरव्यूज में सैलजा ने इशारों-इशारों में बताया कि उनकी हुड्डा से बातचीत नहीं है. प्रदेश में 17 आरक्षित सीटें हैं, इन पर सैलजा का इस्तेमाल हो सकता था. लेकिन वे चुनाव प्रचार में अलग-थलग पड़ गई थीं.


3. सुनील कोणुगोलू की रिपोर्ट: कांग्रेस के रणनीतिकार सुनील  कोणुगोलू  ने हरियाणा में इंटरनल सर्वे करवाया. इसी सर्वे के आधार पर टिकट बंटवारा हुआ, प्रचार की रणनीति बनाई, चुनाव के मुद्दे तय हुए. लेकिन ये रिपोर्ट कांग्रेस को जीत नहीं दिला सकी. इससे पहले कोणुगोलू ने कर्नाटक में चुनावी बाजी जीतकर दिखाई थी, तब वे लाइमलाइट में आए. हालांकि, इसके बाद उनका स्ट्राइक रेट अच्छा नहीं रहा.


4. छोटी पार्टियों की अनदेखी: कांग्रेस ने स्थानीय पार्टियों और छोटे दलों की अनदेखी की. चुनाव नतीजों में करीब 11% वोट अन्य को मिला है. कई सीटों पर AAP को भी अच्छे-खासे वोट मिले हैं. चुनाव से पहले AAP ने कांग्रेस के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के कहने पर कांग्रेस ने हाथ नहीं मिलाया. इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव के परिणाम में देखने को मिल रहा है.


5. पार्टी का संगठन कमजोर: कांग्रेस का संगठन जमीनी स्तर पर बहुत कमजोर है. बीते कई सालों से जिलों में पार्टी जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष तक नहीं बनाए गए हैं. कुमारी सैलजा अध्यक्ष थीं, तब हुड्डा गुट ने नियुक्तियां नहीं होने दीं. जब उदयभान अध्यक्ष बने तो सैलजा-सुरजेवाला गुट ने रोड़ा अटकाया. जबकि भाजपा का वर्कर ग्राउंड लेवल पर एक्टिव रहा. कांग्रेस ओवर कॉन्फिडेंस में रही, जमीनी स्तर पर पार्टी की कमजोरी को दूर नहीं किया.



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