क्या सचमुच मात खा गई है भाजपा? हारकर जीतने के 4 वाकये
एक डायलॉग बड़ा मशहूर है, `हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं`. तो क्या महाराष्ट्र के सियासी रणभूमि पर सचमुच भाजपा ने हार मान ली है? तस्वीर तो कुछ यही बयां कर रही हैं, लेकिन अगर इतिहास के पन्नों को खंगालें तो वो कुछ और ही गवाही देता है. हर बार भाजपा ने एक लंबी छलांग लगाने से पहले एक कदम पीछे जरूर कदम किया है.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सियासी उठापटक ने हर किसी को उलझाकर रख दिया है. रात की गाड़ी से भाजपा के स्टेशन पर पहुंचे अजित पवार ने तीसरे दिन ही दोपहर की गाड़ी पकड़कर घर को वापस लौट गए. लेकिन ये किसी को नहीं मालूम वो कबतक घर वापस पहुंचेंगे. फडणवीस के इस्तीफे के बाद हर कोई ये चर्चा कर रहा है कि भाजपा को पटखनी देने में एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना की सेना कामयाब हो गई है.
तो क्या इस जंग में सचमुच हार गई भाजपा?
फडणवीस के नेतृत्व में बनी महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने हथियार डालने का ऐलान कर दिया है. लेकिन ये बात पच नहीं रही है. कहा जा रहा है कि बीजेपी की फजीहत कराने वालों की फेहरिस्त में येदियुरप्पा के साथ देवेंद्र फडणवीस का नाम भी शुमार हो गया है. लेकिन इतिहास पर अगर एक नजर डालें तो ये समझना मुश्किल नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी उसमें शुमार होती आई है, जो एक लंबी छलांग लगाने से पहले कुछ कदम पीछे जाती है और फिर जो मास्टरस्ट्रोक लगाती है, उससे हर कोई चौंक जाता है. यकीन नहीं हो रहा है, तो इन चार वाकये को पढ़िए और खुद ही समझिए.
------------इस्तीफे का इतिहास------------
भाजपा के नेतृत्व में केंद्र से लेकर राज्य तक ऐसे कई इतिहास लिखे गए हैं, जिसके पन्ने को उलटकर देखा जाए तो, इस बात पर संकोच हो जाएगा कि इतनी आसानी से भाजपा भला कैसे हार मान सकती है. येदियुरप्पा एक दिन के सीएम बने तो फडणवीस भी इस दफा तीन दिन के मुख्यमंत्री साबित हुए.
वो चार वाकये...
1). फडणवीस ने मान ली हार?
मुंबई में मंगलवार की सुबह फडणवीस के घर पर बीजेपी कोर कमिटी की बैठक हुई. इस बैठक में पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार भी पहुंचे. सभी को अंदेशा था कि जरूर कोई बड़ी खबर आने वाली है और ऐसा ही कुछ हुआ जिसका हर किसी को अंदेशा था. अजित पवार के इस्तीफे की खबर सामने आई, अजित के इस्तीफे के थोड़ी देर बाद फड़णवीस भी मीडिया के सामने आए और अपनी बात रखते हुए उन्होंने भी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का ऐलान कर दिया.
22 नवंबर की रातभर चले खेल के बाद 23 नवंबर की सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए अजित पवार का समर्थन हासिल करके ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला था, जिससे राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज भौचक्के रह गए थे. लेकिन, फडणवीस तीन दिन बाद ही बैकफुट पर चले गए. अब क्या भाजपा सचमुच मात खा गई है. या फिर हर बार की तरह लंबी छलांग लगाने से पहले एक कदम पीछे जाने वाला तिकड़म है? भगवान जानें.
2). कर्नाटक का नाटक क्या कहता है?
महाराष्ट्र में फडणवीस हों, या फिर कर्नाटक में येदियुरप्पा दोनों की कहानी काफी मेल खाती दिखती है. इन दोनों ही राज्यों में भाजपा के पास सरकार बनाने के लिए मुकम्मल संख्याबल नहीं था. लेकिन दोनों ने सत्ता हासिल करने की जल्दबाजी दिखाई. कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा ने 17 मई 2018 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और 19 मई को फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. तो महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस ने 23 नवंबर को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली और इसके तीन बाद 27 नवंबर को होने वाले फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे से पहले विधानसभा में येदियुरप्पा ने कहा था कि 'मैं वापस आऊंगा, 150 से ज्यादा सीटें जीतकर आऊंगा.'
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव 222 सीटों के लिए हुए थे. जिसमें बहुमत के लिए जरूरी संख्या 112 थी, भाजपा ने 104 विधायक जीते थे, जेडीएस के 37 और कांग्रेस के खाते में 78 विधायक गए थे. जबकि 3 अन्य दलों को जीत मिली थी. येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 8 अतिरिक्त विधायकों की जरूरत थी. मामला सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर भी पहुंचा, सरकार गिरी लेकिन महज 14 महीने के बाद एक बार फिर येदियुरप्पा की वापसी हो गई. यानी वो गद्दीशीन हो गए.
ये इतिहास के सिर्फ एक ही पन्ना है. आपको इससे बड़ी राजनीतिक जमीन का एक ऐसा ही अध्याय पढ़ाते हैं.
3). संसद में अटल का वो ऐतिहासिक भाषण
देश के इतिहास में हमेशा के लिए स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज होने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को कोई कभी भी नहीं भुला पाएगा. वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए थे. लेकिन पहली बार जब वो पीएम बने तो उनकी सरकार एक वोट से 13 दिन में ही गिर गई थी. वो 1996 के चुनाव परिणाम के बाद का वक्त था. जब भाजपा को 161 सीटें हासिल हुई थी और कांग्रेस पार्टी के खाते 140 सीटें गई थी. फ्लोर टेस्ट हुआ जिसमें अटल जी की सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई थी.
उस दौरान वाजपेयी के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार के खिलाफ 270 वोट पड़े, जबकि पक्ष में 269 वोट पड़े थे. लेकिन अटल बिहारी वायपेयी का इस्तीफा और उसके बाद संसद में उनका यादगार भाषण कभी ना भुलाया जाने वाला था. संबोधन के बाद 28 मई, 1996 को वाजपेयी ने अपने भाषण में कहा कि था कि 'हम संख्याबल के सामने सिर झुकाते हैं, अध्यक्ष महोदय, मैं अपना इस्तीफा राष्ट्रपति जी को देने जा रहा हूं.' लेकिन इस बात को भी भुलाया नहीं जा सकता है कि इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी दो बार और प्रधानमंत्री बनें. दूसरी बार 13 महीने के लिए और तीसरी बार पूरे पांच साल तक उन्होंने सरकार चलाई.
येदियुरप्पा ने दिया था ऐसा ही भाषण
कर्नाटक चुनाव के दौरान जब भारतीय जनता पार्टी ने बुमत साबित करने से पहले ही एक दिन बार इस्तीफा दे दिया था. अपने इस्तीफे से पहले विधानसभा में भाषण देते हुए येदियुरप्पा की आंखें भर आई थी. उनके भाषण की तुलना भी 1996 में दिए गए अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण से की गई थी.
4). दो सीट से 300 पार
ये जानकर आज किसी को भी इस बात पर भरोसा नहीं हो पाता है, कि आज 300 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाने वाली पार्टी भाजपा ने साल 1984 में पूरे देश में सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी. इतना ही नहीं, खुद अटल बिहारी वाजपेयी हार गए थे और लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव ही नहीं लड़ा. इसका मतलब भाजपा चुनावी परिणाम में औंधे मुंह गिरी थी.
1984 में अटल बिहारी वाजपेयी को मध्यप्रदेश के ग्वालियर से हार का मुंह देखना पड़ा था. उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को मैदान में उतार दिया था. और वायपेयी जी को संसदीय क्षेत्र से चुनकर आने वाले माधवराव ने करीब पौने दो लाख वोटों से शिकस्त दे दिया था.
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उस वक्त इस करारी हार में जो दो सीटें भाजपा के खाते में गई थी, उनमें से एक सीट गुजरात और दूसरी आंध्र प्रदेश की थी. गुजरात के मेहसाणा में भाजपा के एके पटेल ने जीत दर्ज की थी. इसके अलावा आंध्र प्रदेश के हनामकोंडा सीट से भाजपा के चंदूपाटिया जंगा रेड्डी ने जीत का परचम लहराया था.