राजनीति की एंग्री वुमेन Mamata Banerjee: दीदी का गुस्सा, दिलाता है फायदा

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राजनीति की एंग्री वुमेन के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन एक बात जरूर गौर करने वाली है कि जब-जब दीदी को गुस्सा आता है, उनको सियासी तौर पर जबरदस्त फायदा मिला है.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : May 3, 2021, 07:29 PM IST
  • दीदी को गुस्सा बहुत आता है!
  • गुस्से से मिलता है दीदी को लाभ
राजनीति की एंग्री वुमेन Mamata Banerjee: दीदी का गुस्सा, दिलाता है फायदा

ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं, जो अपने राजनीतिक विरोधियों पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ती. यहां तक कि ममता बनर्जी ने तो एक बार केंद्र सरकार में रहते हुए अपनी ही सरकार का विरोध कर दिया था. इसी साल 23 जनवरी को जब कोलकाता में पीएम मोदी (PM Modi) के सामने जय श्रीराम के नारे लगे तो मंच से ही ममता ने नारे लगाने के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर कर दी.

दीदी को कब क्या बुरा लगता है?

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को लोग राजनीति की एंग्री वुमन मानते हैं, लेकिन उनकी छवि इससे अलग भी है. दीदी की राजनीति का अलग ही चरित्र हैं. वो उन्हें कब क्या चीज बुरी लग जाए, कोई नहीं कह सकता.

वैसे तो ममता बनर्जी के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1970 में हुई थी, उन्होंने कांग्रेस का दामन बतौर कार्यकर्ता थामा था. ममता बनर्जी 1976 से 1980 तक महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं. इसके बाद उन्होंने 1984 में देश की सबसे युवा सांसद बनने का खिताब हासिल किया. CPM के दिग्गज नेता माने जाने वाले सोमनाथ चटर्जी (Somnath Chatterjee) को जादवपुर लोकसभा सीट से मात दी थी.

ममता का कद दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था, वर्ष 1991 में जब नरसिम्हा राव की सरकार बनी तो दीदी को कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गई, कुछ दिनों बाद विवाद बढ़ा और दीदी को 1993 में दरकिनार कर दिया गया. फिर क्या था दीदी को गुस्सा आ गया, इसका नतीजा ये हुआ कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार कर लिया.

कांग्रेस में रहकर कांग्रेस का किया विरोध

ममता बनर्जी लगातार अपने गुस्से को खुलेआम जगजाहिर करती रहीं, दीदी ने 1997 में कांग्रेस को ये कहकर अलविदा कह दिया कि Congress पार्टी बंगाल में CPM की कठपुतली बन गई है.

जब-जब दीदी को आया गुस्सा

- जुलाई 1996 में महंगे पेट्रोल के खिलाफ सरकार का हिस्सा रहते हुए भी उन्होंने  विरोध किया. विरोध में ही लोकसभा के अंदर जमीन पर बैठ गई.
- फरवरी 1997 में रेल बजट के दौरान बंगाल की अनदेखी पर तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान की ओर शॉल फेंक दिया.
- साल 1998 में एसपी सांसद दारोगा प्रसाद सरोज को कॉलर से खींच लिया था, वो महिला आरक्षण बिल का विरोध कर रहे थे.

कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलकर 1 जनवरी 1998 को दीदी ने अपनी पार्टी अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (AIMC) का गठन कर दिया. उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही और इसी साल हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों में दीदी का काम दिखने लगा, उनकी पार्टी ने 8 सीटों पर जीत का परचम फहरा दिया. मतलब साफ है दीदी को उनके गुस्से का जबरदस्त फायदा मिला.

गुस्से से मिली सत्ता की चाबी

साल 2006 के दिसंबर माह में नंदीग्राम के लोगों को हल्दिया विकास प्राधिकरण (HDA) की तरफ से नोटिस थमा दिया गया था कि नंदीग्राम का बड़ा हिस्सा जब्त किया जाएगा. इसके तहत 70 हजार लोगों को उनके घर से निकालने का प्लान था. उस वक्त जब दीदी को गुस्सा आया तो उन्होंने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की और बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

14 मार्च 2007 को 14 ग्रामीणों पर गोलियां बरसा दी गईं और कई सारे लोग गायब हो गए. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस आंदोलन में डटी रही. दीदी को राजनीतिक तौर पर इस आंदोलन का सबसे बड़ा फायदा मिला.

फायदे के तौर पर ममता की पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में 19 सीटों पर जीत का परचम फहराया. इसके बाद 2010 में हुए कोलकाता नगरपालिका चुनाव में भी ममता बनर्जी ने जलवा दिखाया. अपने गुस्से को जीत में तब्दील करते हुए उन्होंने वर्ष 2011 में लेफ्ट को बंगाल से उखाड़ फेंका और सत्ता के सिंहासत पर काबिज हो गईं.

जब 2021 के चुनाव में दीदी को आया गुस्सा

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान भी ममता बनर्जी की एंग्री वुमन वाली छवि देखने को मिली.

23 जनवरी को जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के दौरान प्रधानमंत्री विक्टोरिया मेमोरियल आए थे. तब भीड़ में कुछ लोगों ने ममता बनर्जी के संबोधन से ठीक पहले जय श्रीराम के नारे लगाए. इन नारों से दीदी इतना गुस्सा गई किं उन्होंने पीएम के सामने पूरा भाषण ही नहीं दिया.

ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) सिर्फ गुस्सा करती हैं, ममता बनर्जी हंसती भी हैं और हंसाती भी हैं. कभी-कभी अपने भाषणों के जरिए ममता बनर्जी ने लोगों को हंसाया भी है.

चुनाव प्रचार के दौरान जब चुनाव आयोग ने उनके प्रचार पर 24 घंटे का बैन लगा दिया था, तो दीदी चुनाव आयोग के खिलाफ ही धरने पर बैठ गई थीं.

ममता बनर्जी राजनीतिक मंच पर जैसी दिखती हैं. व्यक्तिगत जीवन में वो बिल्कुल उससे अलग हैं. दीदी को पेटिंग बनाने का शौक है.

साथ-साथ वो खान बनाने का भी शौक रखती है. चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी कभी चाय बनाते हुए दिख थीं. तो कभी कलछी चलाकर सब्जी पकाते हुए भी नजर आईं.

पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने अपने विरोधियों के हर हमले का बखूबी जवाब दिया. बिना थके, बिना रूके.. जख्मी होने के बाद भी चुनाव प्रचार में जुटी रहीं. उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि अब ममता बनर्जी ने जीत की हैट्रिक का स्वाद चखा है.

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