सचिन पायलट क्यों दिखा रहे हैं बगावती तेवर? जो कांग्रेस की चेतावनी को कर दिया नजरअंदाज
राजस्थान की सियासत किस ओर करवट लेगी ये कह पाना फिलहाल बेहद मुश्किल है, लेकिन फिलहाल सचिन पायलट के बागी तेवर कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. चुनाव से पहले कांग्रेस में फूट के संकेत फिर सामने आ गए हैं. दरअसल, ये चर्चा इसलिए तेज हो गई है क्योंकि कांग्रेस की चेतावनी को दरकिनार कर पायलट ने अनशन किया.
नई दिल्ली: राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कांग्रेस पार्टी द्वारा दी गई चेतावनी को दरकिनार करते हुए मंगलवार को पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की मांग को लेकर यहां एक दिवसीय ‘अनशन’ किया. पायलट ने यहां शहीद स्मारक पर पूर्वाह्न 11 बजे से शाम चार बजे तक पांच घंटे का मौन अनशन किया. इसके बाद पायलट ने संवाददाताओं से कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा.
सचिन पायलट ने किस मांग के लिए किया अनशन?
उन्होंने उम्मीद जताई कि पूर्ववर्ती भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई होगी. इस अनशन के साथ ही पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ नए सिरे से मोर्चा खोल दिया है. दिसंबर 2018 में राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही इन दोनों नेताओं में खींचतान जारी है. कांग्रेस के सत्ता में आने के समय पायलट राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे.
कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा द्वारा दी गई चेतावनी से विचलित हुए बिना पायलट मंगलवार पूर्वाह्न 11 बजे यहां शहीद स्मारक पर धरने पर बैठे. धरना स्थल पर बड़ी संख्या में पायलट समर्थक मौजूद रहे, हालांकि पार्टी का कोई बड़ा चेहरा या मौजूदा विधायक वहां नजर नहीं आया. पायलट ने मौजूदा विधायकों से इस कार्यक्रम में नहीं आने को कहा था. पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह के बेटे अनिरुद्ध, जिन्होंने हाल ही में ब्रिटेन में टिप्पणी के लिए राहुल गांधी को निशाना बनाया, वह भी अनशन स्थल पर मौजूद थे. पायलट के विधानसभा क्षेत्र टोंक के अलावा अजमेर और पूर्वी राजस्थान से आए कई अन्य नेता और कार्यकर्ता भी शहीद स्मारक में मौजूद थे.
इस अनशन के लिए शहीद स्मारक के पास एक तंबू लगाया गया. वहां बनाए गए छोटे से मंच पर केवल पायलट बैठे. उनके समर्थक व अन्य कार्यकर्ता आसपास नीचे बैठे. मंच के पास महात्मा गांधी एवं ज्योतिबा फुले की तस्वीरें रखी गईं. मंच के पीछे केवल महात्मा गांधी की फोटो के साथ ‘वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध अनशन’ लिखा है. लाउडस्पीकर पर अलग अलग देशभक्ति गाने बजाए गए. शहीद स्मारक पर पहुंचने से पहले पायलट अपने आवास से 22 गोदाम सर्किल पहुंचे और वहां समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की. अनशन शाम चार बजे समाप्त हुआ.
'भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी रहेगा यह संघर्ष'
अनशन स्थल से रवाना होने से पहले पायलट ने मीडिया से कहा,'भ्रष्टाचार के खिलाफ यह संघर्ष जारी रहेगा.' उन्होंने कहा कि 2018 के आखिर में सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर किया था और लोगों को आश्वस्त किया था कि अगर कांग्रेस सरकार में आई तो इन मामलों में कार्रवाई करेगी. पायलट के अनुसार हालांकि मौजूदा कांग्रेस सरकार का चार साल से अधिक का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई.
पायलट ने कहा,' मैं चाहता था कि उक्त मामलों में कार्रवाई हो लेकिन पत्र लिखने के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई. मैंने कई पत्र लिखे मुख्यमंत्री जी को. आज इसी लिए अनशन रखा कि वसुंधरा (राजे) जी के कार्यकाल में जो तमाम गड़बड़ घोटाले हुए, जिन घोटालों व भ्रष्टाचार का उजागर करने के लिए हम लोग सड़कों पर उतरे, जेलों में गए थे हमने आंदोलन किए ... हमें सरकार में आए चार से अधिक का समय बीत गया मैं उम्मीद करता था कि कार्रवाई होगी लेकिन कार्रवाई हुई नहीं. इसलिए आज मैंने उस सरकार के भ्रष्टाचार के जो मामले थे उस पर कार्रवाई हो इसको लेकर अनशन रखा.'
पायलट ने कहा,' मैं उम्मीद करता हूं कि कार्रवाई होगी.' उल्लेखनीय है कि पायलट ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के मामलों में राज्य की मौजूदा अशोक गहलोत नीत सरकार द्वारा कार्रवाई किए जाने की मांग को लेकर एक दिवसीय अनशन करने की घोषणा की थी. वहीं, कांग्रेस ने पायलट के इस कदम को ‘पार्टी विरोधी’ करार दिया है. पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा का एक बयान सोमवार देर रात जारी किया गया था जिसके अनुसार, 'पायलट का अनशन पार्टी के हितों के खिलाफ है और पार्टी विरोधी गतिविधि है.'
बीजेपी प्रदेश प्रभारी ने कांग्रेस से पूछे तीखे सवाल
रंधावा ने कहा, 'अगर अपनी ही पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के साथ उन्हें कोई समस्या है तो मीडिया और जनता के बजाय पार्टी के मंच पर चर्चा की जा सकती है.' इसके साथ ही रंधावा ने कहा कि पायलट ने कभी उनसे ऐसे मुद्दे पर चर्चा नहीं की. वहीं भाजपा के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने मंगलवार को ट्वीट किया, 'राजस्थान कांग्रेस में घमासान सड़कों पर आया. गहलोत सरकार में महिलाओं पर अत्याचार, दलित शोषण, खान घोटालों और पेपर लीक घोटाले में कांग्रेस जन मौन क्यों हैं? पुजारी और संतों की मौत का जिम्मेदार कौन, तुष्टिकरण के मामलों से बहुसंख्यकों की विरोधी सरकार की दुर्गति निश्चित है.'
कांग्रेस में गुटबाजी के बीच पायलट के इस कदम को विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में नेतृत्व के मुद्दे को हल करने के लिए पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. उल्लेखनीय है कि गहलोत और पायलट में यह खींचतान दिसंबर 2018 में सरकार गठन के दौरान मुख्यमंत्री पद को लेकर शुरू हुई थी. तब पार्टी आलाकमान ने गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद दिया जबकि पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया. जुलाई 2020 में पायलट ने कुछ और विधायकों के साथ गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इसके बाद राज्य में लगभग एक महीने तक राजनीतिक संकट रहा जो पार्टी आलाकमान की ओर से पायलट द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर करने के आश्वासन के बाद समाप्त हो गया था. पायलट मांग करते रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कार्रवाई करे.
(इनपुट- भाषा)
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