मदुरैः पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों को लेकर पं. बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में सियासी हलचल जारी है. पूर्व में चुनावी अभियानों के बाद अब BJP का सारा जोर दक्षिण फतह पर है. इसी सिलसिले में पीएम मोदी (PM Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के केरल व तमिलनाडु (Tamilnadu) में दौरे हो रहे हैं. 


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चुनावी दौरों की इन्हीं कड़ियों के बीच पीएम मोदी (PM Modi) गुरुवार को तमिलनाडु (Tamilnadu) पहुंच रहे हैं. यहां वह शुक्रवार को तमिलनाडु (Tamilnadu) के सीएम के पलानीस्वामी, डिप्टी सीएम ओ. पन्नीरसेल्वम और अन्य नेताओं के साथ एक चुनावी रैली को संबोधित करेंगे. 


पीएम मोदी करेंगे पूजा
पीएम मोदी (PM Modi) के इस चुनावी दौरे में जो सबसे खास बात है वह मदुरै शहर में स्थित मीनाक्षी देवी (Meenakshi Mandir) का मंदिर, जिसे स्थानीय भाषा में मीनाक्षी अम्मन मंदिर (Meenakshi Amman temple) या मां मीनाक्षी मंदिर कहते हैं.



पीएम मोदी जब गुरुवार को मदुरै पहुंचेंगे तो वह मीनाक्षी अम्मन मंदिर (Meenakshi Amman temple) में पूजन भी करेंगे. पीएम मोदी (PM Modi) का यह पूजन तमिल संस्कृति के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक जरिया भी होगा, जो भारत को उसकी सांस्कृतिक विविधता की पहचान देता है. 


संस्कृति की धरोहर संजोए है मीनाक्षी मंदिर
इस संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक मदुरै का मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Amman temple) ही है, जिसकी दीवारों पर युगों से लेकर सदियों तक का इतिहास उकेरा गया है.



सिलसिलेवार तरीके से इस इतिहास पर नजर डालें तो एक तरफ जहां यह पौराणिकता की गाथाएं हमारे सामने खोलकर रख देता है तो दूसरी ओर इस बात का भी उदाहरण बनता है कि समाज में मनुष्य भले ही कई खांचों में बंटा हो,


लेकिन बात जब ईश्वर के खुद के घर की आती है तो वहां सब बराबर हैं. एक जैसे हैं. 


80 साल पहले की घटना
इस उदाहरण का सिरा 80 साल पहले की एक घटना से जुड़ा है. जो एक समय में देश की सबसे चर्चित सुर्खियां भी बन गई थी.



तारीख के मुताबिक 8 जुलाई 1939 की सुबह तमिलनाडु हरिजन सेवा संघ के विद्यानाथन अय्यर और एलएन गोपालास्वामी, नादर समुदाय के एक और कथित रूप से छोटी जाति के पांच लोगों के साथ मंदिर के अंदर गए. 


मंदिर प्रवेश की घटना
मंदिर के प्रबंधक अधिकारी रहे आर सेशाचलम और मुख्य पुजारी पोन्नुस्वामी पट्टर ने उनका स्वागत किया. तकरीबन 30 मिनट की पूजा के बाद वे चले गए और अगले 24 घंटे बाद यह बड़ा मुद्दा बन गया. एक पुजारी मुथु पट्टर ने मंदिर (Meenakshi Amman temple) का दरवाजा बंद कर दिया. उन्होंने शुद्धिकरण की बात की.


कुछ और पुजारी भी साथ में आ गए, लेकिन मंदिर प्रबंधक और मुख्य पुजारी ने न सिर्फ उनकी इस मांग को खारिज कर दिया, बल्कि ऐसे सभी लोगों को सेवामुक्त कर दिया गया. ये सभी पुजारी कोर्ट भी गए, लेकिन वहां भी मुंह की खानी पड़ी. इस तरह मीनाक्षी अम्नन मंदिर (Meenakshi Amman temple) जिसे तमिल समाज मां कहता है उनके दर्शन के लिए सभी का प्रवेश मान्य हो गया. 


मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Amman temple) का पौराणिक इतिहास भी खूबसूरत है और इनका जिक्र पुराणों से निकल कर संगम काल में रचे गए साहित्यों की आत्मा भी हैं. संगम पीरियड के दौरान लिखी गई कृतियों में महादेव शिव और मीनाक्षी मां का उल्लेख नायक-नायिका की तरह ही किया गया है. 


राजा मलयध्वजय के घर जन्मीं देवी पार्वती
मान्यता है कि प्राचीन काल में मदुरै शहर के राजा हुए पांड्य मलयध्वजय. उन्होंने घोर तपस्या करके देवी पार्वती को पुत्री रूप में पाने की लालसा जताई. मां ने उन्हें वरदान दे दिया. उधर कैलाश में किसी प्रसंगवश देवी पार्वती को महादेव को भूल जाना था.


उन्होंने मलयध्वज के घर पुत्री रूप में आने का यह समय चुना. मछलियों जैसी बड़ी आंखें देखकर पुत्री को नाम मिला मीनाक्षी. 


शिव और मीनाक्षी का विवाह
मीनाक्षी ने बड़े होते-होते राज्य संचालन भी सीख लिया और उसके समान कोई योद्धा न मिलता था. तब महादेव शिव सुंदरेश्वर रूप में आए और विवाह का प्रस्ताव रखा.


कहते हैं कि यह विवाह इतना भव्य होने वाला था कि सारी पृथ्वी के लोग मदुरै में आए थे. उधर विवाह के संचालन के खुद श्रीहरि को आना था, लेकिन इंद्र के कारण उन्हें देर हो गई. 


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चितिरई तिरुविझा है खास त्योहार
मुहर्त बीतता देखकर पांड्य राज ने स्थानीय देवता कूडल अझघइर के जरिए विवाह करवाना तय किया. जब श्रीहरि आए तो वह क्रोधित हुए और मदुरै शहर में कभी न आने की प्रतिज्ञा ली.


वह पास ही पर्वत अलगार कोइल में बस गये. बाद में उन्हें देवताओं ने मनाया तब उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वर का पाणिग्रहण कराया. 


इस तरह मदुरै की संस्कृति में यह विवाह और भगवान विष्णु को मनाया जाना यह दोनों ही बड़े त्योहार हैं. इसे चितिरई तिरुविझा कहा जाता है. 
माना जाता है कि देवराज इंद्र ने यहां शिव लिंग और देवी के विग्रह की स्थापना की और युगों से मदुरै का शासन उनके संरक्षण में है. 


इस मन्दिर से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है मीनाक्षी तिरुकल्याणम, जिसका आयोजन चैत्र मास (अप्रैल के मध्य) में होता है. यानी वर्तमान में मीनाक्षी मंदिर इस महान उत्सव के लिए तैयार हो रहा है. 


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मलिक कफूर ने की थी लूट
इस मन्दिर का गर्भगृह 3500 वर्ष पुराना है, इसकी बाहरी दीवारें और अन्य बाहरी निर्माण लगभग 1500-2000 साल प्राचीन हैं. इस पूरे मन्दिर का भवन समूह लगभग 45 एकड़ भूमि में बना है.


1310 ईस्वी में मलिक काफूर जो कि खिलजी के बाद शासक बन बैठा था, उसने काफी तोड़-फोड़ की. उस जमाने में वह यहां से बड़ी मात्रा में धनराशि और सोना लूटकर ले गया था. 


देश के अमीर मंदिरों में एक 
कोरोना काल को छोड़ दें तो मीनाक्षी मंदिर के दर्शन करने के लिए हर दिन तकरीबन 20 हजार लोग आते हैं. शुक्रवार के दिन तो ये संख्‍या बढ़कर 30 हजार तक रही है.


पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आने से मंदिर तकरीबन 60 मिलियन रुपये सालाना की कमाई होती है. कहते हैं कि मंदिर में कुल 33 हजार मूर्तियां स्‍थापित हैं. 


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