कौन कहता है कि दिल्ली का रण एकतरफा जीत रही है AAP? गलतफहमी दूर करने के लिए पढ़ें ये Facts
कहा जाता है कि मैदान-ए-जंग पर शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए. लेकिन आम आदमी पार्टी ये भूल करती दिखाई दे रही है. AAP इस चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस में दिखाई दे रही है. कहीं उसकी ये भूल उसे भारी ना पड़ जाए.
नई दिल्ली: दिल्ली के दंगल के लिए सभी सियासतदान अपनी-अपनी ताकत झोंकने में जुटे हुए हैं. हर कोई अपना दम-खम दिखाने में जुटा हुआ है. लेकिन, इस बीच एक चर्चा ने जोर पकड़ रखा है कि दिल्ली के सियासी रण पर आम आदमी पार्टी एकतरफा चुनाव जीत रही है. लेकिन ये किसी बड़ी गलतफहमी से कम नहीं है.
अबकी बार, दिल्ली में किसकी सरकार?
इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसकी सरकार बनेगी इस सवाल के जवाब के लिए हर कोई टक-टकी लगाए बैठा हुआ है. 8 फरवरी को होने वाली वोटिंग और 11 फरवरी को आने वाले नतीजों में कौन बाजी मारेगा इसका हर किसी को इंतजार है. लेकिन दिल्ली का गणित जाने बगैर ही हर कोई ये हल्ला करने लगा है कि दिल्ली में केजरीवाल की एकतरफा वापसी हो रही है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि दिल्ली का सियासी गणित साल 2015 से बिल्कुल ही अलग है. भाजपा इस बार AAP के लिए काफी घातक साबित हो सकती है. आपको एक-एक करके सभी बड़ी वजहों से रूबरू करवाते हैं.
दिल्ली चुनाव में किसका कितना प्रभाव?
पूर्वांचली वोटर्स 25-30%
25 सीटों पर प्रभाव
पंजाबी वोटर्स 35%
28 से 30 सीटों पर प्रभाव
मुस्लिम वोटर्स 12-13%
10 सीटों पर प्रभाव
इन आंकड़ों के बारे में आपको विस्तार से जानकारी दे देते हैं. इस बार दिल्ली भाजपा का नेतृत्व मनोज तिवारी के कंधे पर है. इन आंकड़ों से ये समझा जा सकता है कि मनोज तिवारी का चेहरा पूर्वांचली वोटर्स को साधने में काफी हद तक कारगर साबित हो सकता है. ऐसे में पूर्वांचली वोटरों का प्रभाव सीधे-सीधे 25 सीटों पर है. ऐसे में भाजपा को कमजोर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए.
यहां एक बात और गौर करने वाली है कि बिहार में भाजपा की सहयोगी दल JD(U) और LJP ने दिल्ली के रण में ताल ठोकने का ऐलान किया तो ऐसा लगने लगा कि भाजपा से कुछ पूर्वांचली वोटर्स छटक सकते हैं. इसके लिए भी भाजपा ने मास्टर प्लान तैयार किया और इन दोनों पार्टियों के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया.
अब आपको दिल्ली के धार्मिक समीकरण से रूबरू करवाते हैं.
दिल्ली का 'धार्मिक समीकरण'
हिंदू- 81.68%
मुस्लिम- 12.86%
सिख- 3.40%
जैन- 0.99%
ईसाई- 0.87%
बौद्ध- 0.11%
भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी पहचान हिंदुओं की पार्टी के तौर पर है. हाल ही में राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला आया है. जिसके बाद काफी हद तक भाजपा को इसका फायदा मिलने की उम्मीद है. भाजपा सावरकर और अन्य मुद्दों को लेकर काफी मजबूत राजनीति करती रही है. इधर बीच कांग्रेस की सावरकर विरोधी नीति का भी लाभ मिलने की बात कही जा रही है. इसके अलावा CAA को लेकर देशभर में काफी हो-हल्ला देखने को मिल रहा है. एक ये भी फैक्टर भाजपा के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. यहां आपको दिल्ली में भाजपा के उम्मीदवारों का नंबर गेम भी समझना चाहिए.
दिल्ली में भाजपा के उम्मीदवारों का 'नंबर गेम'
57 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान
41 उम्मीदवार एक बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं
16 उम्मीदवार 2013 में चुनाव जीत चुके हैं
12 पूर्व म्युनिसिपल काउंसिलर चुनाव मैदान में हैं
7 मौजूदा म्युनिसिपल काउंसिलर चुनाव मैदान में हैं
4 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है
0 किसी भी मुस्लिम चेहरे को टिकट नहीं दिया
इन आंकड़ों से ये समझना आसान हो जाता है कि भाजपा ने 41 ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है जिसने एक बार विधानसभा चुनाव लड़ा है. इनमें 16 उम्मीदवार साल 2013 में चुनाव भी जीत चुके हैं. अगर इन उम्मीदवारों ने चुनाव हारने के बार जनता के बीच मौजूद रहने का काम किया है तो निश्चित तौर पर इनको इसका फायदा मिल सकता है.
केजरीवाल की टीम पहले से काफी हुई कमजोर
दिल्ली में जब केजरी'युग' की शुरुआत हुई थी, तो उनके साथ कई दिग्गजों का 'जखीरा' मौजूद था. लेकिन एक-एक करके कई पुराने साथी केजरीवाल से रूठते चले गए. कईयों को उन्होंने खुद पार्टी से बाहर खदेड़ दिया. जो उनके लिए इस चुनाव में काफी हानिकारक साबित होने वाला है.
इन नामों में सबसे पहला नाम योगेंद्र यादव का आता है, जिन्हें पहले पार्टी से दरकिनार किया गया और उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो उनकी जुबान को बंद करने के लिए उनको निकाल फेंका गया. कुछ ऐसा ही हाल कपिल मिश्रा का हुआ. कपिल मिश्रा ने केजरीवाल सरकार में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की तो जनाब केजरीवाल को मिर्ची लग गई. उन्हें ऐसा लगने लगा कि उनकी सारी पोल खुलने वाली है. मिश्रा ने कई गंभीर आरोप लगाए. अरविंद केजरीवाल ने सामने आकर जवाब देने के बजाय उन्हें भी पार्टी से रवाना कर दिया. लेकिन इस बार कपिल मिश्रा मॉडल टाउन सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं. माना जा रहा है कि कपिल मिश्रा काफी मजबूत स्थिति में हैं. हालांकि इसका सही अंदाजा तो आगामी 11 फरवरी को ही लग पाएगा. इसके अलावा गांधी नगर से विधायक अनिल वाजपेई ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है.
दिग्गजों की बात करें तो आशुतोष जैसे नेता की कद्र भी अरविंद केजरीवाल ने नहीं की. सत्ता के नशे में चूर होकर उन्होंने कुमार विश्वास जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व को भी गंवा दिया. एक-एक करके कई बड़े साथियों को केजरीवाल ने खो दिया. जिसका खामियाजा उन्हें इस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है.
अवैध कालोनी के मुद्दे पर भाजपा का 'मास्टर स्ट्रोक'
अगर दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार ने अवैध कालोनी के मुद्दे पर 'दिल्ली आवास अधिकार योजना' के तहत बहुत बड़ा फैसला लिया. पीएम मोदी ने इस योजना के तहत अपने घर का सपना पूरा करने का वादा निभाने की कोशिश की. इस योजना के तहत दिल्ली के 40 लाख लोगों को फायदा पहुंचेगा. भाजपा ये लगातार आरोप लगाती रही है कि इस बड़े कदम के बीच में अरविंद केजरीवाल आते रहे हैं. निश्चित तौर पर भाजपा का ये दांव चुनाव में अलग तरीके की भूमिका अदा कर सकता है.
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इसके अलावा भाजपा ने डोर-टू-डोर कैंपेन पर भी काफी जोर दिया है. भाजपा ये अपील कर रही है कि दिल्ली के विकास के लिए केंद्र और राज्य में एक धारा बहेगी तो काफी लाभ पहुंचेगा. इन सबके इतर देखा जाए तो कुछ लोग ये माहौल बनाने में जुटे हुए हैं कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल एकतरफा चुनाव जीत रहे हैं. इस गलतफहमी में कतई ना रहें कि दिल्ली में भाजपा कमजोर है. अगर ये सारे फैक्टर काम करते हैं तो दिल्ली के सियासी सरजमीं पर कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी.
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