क्या आम आदमी पार्टी में केजरीवाल से बेहतर विकल्प हैं मनीष सिसोदिया?

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए जद्दोजहद का सिलसिला लगातार आगे बढ़ रहा है. आम आदमी पार्टी दोबारा वापसी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में जुट गई है. लेकिन AAP का मतलब अब आम आदमी पार्टी से बदलकर 'अरविंद अकेला पार्टी' होता जा रहा है. अगर ऐसा नहीं है तो अरविंद केजरीवाल की जगह सीएम के चेहरे के रूप में मनीष सिसोदिया को क्यों नहीं आगे किया जा रहा, जब वो केजरीवाल से बेहतर विकल्प हैं. सिसोदिया की काबिलियत उनके मंत्रालय में हुए कामों से आंकी जा सकती है.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jan 17, 2020, 02:55 PM IST
    1. क्या अरविंद केजरीवाल ने AAP पर कर लिया है कब्जा?
    2. ऐसे तो केजरीवाल से बेहतर विकल्प हैं मनीष सिसोदिया
    3. तो सिसोदिया को भी पार्टी से निकाल देंगे केजरीवाल?
    4. सीएम के तौर पर केजरीवाल से बेहतर साबित हो सकते हैं सिसोदिया
क्या आम आदमी पार्टी में केजरीवाल से बेहतर विकल्प हैं मनीष सिसोदिया?

नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में चुनावी दंगल का बिगुल बजते ही सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल सत्ता पर काबिज होंगे या फिर 21 साल से सत्ता का वनवास झेल रही बीजेपी दिल्ली में सरकार बनाएगी. लेकिन इन सबसे बड़ा सवाल यहां ये है कि क्या APP = 'अरविंद अकेला पार्टी'?

आम आदमी पार्टी पर अरविंद केजरीवाल का कब्जा?

अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले रखा है. इसका सबूत एक या दो बार नहीं बल्कि बारंबार सामने आ चुका है. जिन-जिन नेताओं ने AAP को मजबूत करने में अपना खून-पसीना बहाया. जनाब केजरीवाल ने उन सारे नेताओं को दरकिनार कर दिया. चाहें वो योगेद्र यादव हों, आशुतोष, कुमार विश्वास या फिर कपिल मिश्रा जैसे नेता. ऐसे नेताओं की कतार बड़ी लंबी है.

आखिर क्यों केजरीवाल से बेहतर विकल्प हैं सिसोदिया?

अरविंद केजरीवाल ने जिन-जिन बड़े मुद्दों को भुनाकर अपनी सरकार बनाई और सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे वो सारे मुद्दे उन्होंने भुला दिए. मुद्दों की सूची भी बड़ी लंबी है. आपको कुछ मुख्य मुद्दों से रूबरू करवाते हैं. अरविंद केजरीवाल ने अपने विधायकों को टिकट देने से पहले ये दावा किया था कि किसी भी भ्रष्टाचारी या अपराधी को टिकट नहीं बांटा जाएगा. चुनाव हुए, शानदार जीत हुई. लेकिन एक-एक करके केजरीवाल के झूठ की परत खुलती गई. केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंस चुके हैं. साल 2013 में दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में एक रेप का मामला सामने आया था, जिसके बाद सत्येंद्र जैन पर दंगा भड़काने का मामला सामने आया था. वो इसके लिए तिहाड़ जेल भी गए थे. हालांकि उन्हें पटियाला हाउस कोर्ट ने इस मामले में बरी कर दिया. लेकिन, सवाल यही ही कि क्या केजरीवाल झूठे हैं. अगर वो पलटू नहीं हैं तो उन्होंने चुनाव से पहले बड़े बड़े वायदे और दावे क्यों किए थे. ये सिर्फ एक मामला है जिससे हमने आपको रूबरू करवाया लेकिन कतार बड़ी लंबी है. आम आदमी पार्टी के 67 में से 23 विधायक दागी हैं. उनके दो-दो पूर्व कानून मंत्रियों पर न जाने कितने मामले दर्ज हैं. सोमनाथ भारती, जितेंद्र सिंह तोमर, मनोज कुमार, जगदीप सिंह, महेंद्र यादव जैसे कई नाम हैं जिनका अपराध से कोई न कोई नाता रहा ही है. यानी इस मामले में तो केजरीवाल पूरी तरह से झूठे साबित होते हैं.

केजरीवाल ने पूरी दिल्ली को फ्री वाई-फाई देने का वादा किया था. जो साल 2015 में हुए चुनाव का सबसे बड़ा एजेंडा था. लेकिन दिल्ली के लोगों को 5 सालों ब्रॉडबैंड कनेक्शन कटवाने का इंतजार है, क्योंकि केजरीवाल जी इस मसले पर भी पलट गए. एक बड़ा सवाल ये है कि आखिर चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल का महिलाओं के प्रति प्रेम क्यों जागा है? और चुनाव के ठीक बाद मार्च तक ही इस प्रेम को बरसाने का ऐलान क्यों किया गया है? हम DTDC बसों में महिलाओं की फ्री यात्रा से जुड़ा सवाल पूछ रहे हैं. चुनाव के 4 महीने पहले अरविंद केजरीवाल ने मास्टरस्ट्रोक खेला और सिर्फ मार्च तक के लिए. केजरीवाल फ्री वाली पॉलिटिक्स के बादशाह माने जाने लगे हैं. क्योंकि उन्हें फ्री वाला लॉलीपाप थमाने में बड़ा मजा आता है. लेकिन इस फ्री वाली पॉलिटिक्स की असलियल उनके वाई-फाई वाले वादे और महिलाओं को चुनावी सीजन में फ्री यात्रा मुहैया कराने वाली नीति से समझा जा सकता है.

क्या है मनीष सिसोदिया की खासियत?

मनीष सिसोदिया ने अपने करियर की शुरुआत एक पत्रकार के तौर पर की थी. इसके बाद उन्होंने एक NGO में काम किया. इसके अलावा सिसोदिया ने सीएम केजरीवाल के साथ RTI के लिए संघर्ष किया था. सिसोदिया ने अन्ना आंदोलन के दौरान भ्रष्ट मंत्रियों की संपत्ति की जांच के लिए एसआईटी गठित किए जाने की मांग को लेकर उन्होंने 10 दिन का अनशन भी रखा था. अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सिसोदिया प्रमुख सदस्य रहे. लेकिन जब अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन छोड़ राजनीति में आने का फैसला किया तो मनीष ने उनका साथ दिया.

मनीष सिसोदिया दिल्ली की पटपड़गंज विधानसभा सीट से विधायक और दिल्ली राज्य सरकार में मंत्री के साथ-साथ प्रदेश के उप मुख्यमंत्री हैं. उनके पास शिक्षा, उच्च शिक्षा, स्थानीय निकाय, भूमि एवं भवन, जन निर्माण विभाग (पी डब्ल्यू डी), शहरी विकास और रेवेन्यू विभाग हैं. जिसमें उन्होंने अच्छा काम किया है. 

खुद केजरीवाल और उनकी सरकार के मुताबिक मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के शिक्षा मंत्री के रूप में दिल्ली के सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था में काफी शानदार सुधार किया है. हालत ये है कि आम आदमी पार्टी ने ये तक दावा किया है कि मनीष सिसोदिया के बेहतरीन काम का ही ये असर है कि यहां के सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों को पछाड़ रहे हैं. 

तो सिसोदिया को भी पार्टी से निकाल देंगे केजरीवाल?

माना जाता है कि बड़े से बड़े फैसले के लिए मनीष सिसोदिया अरविंद केजरीवाल को सुझाव देते हैं. यानी दिल्ली सरकार के हर अहम और खास कदम के पीछे सिसोदिया की रणनीति होती है. रण में तो अरविंद केजरीवाल फ्रंटफुट पर निकलकर बल्लेबाजी करते हैं और स्कोरकार्ड पर अपना नंबर बढ़ाते हैं. लेकिन मनीष सिसोदिया को अपने बल्ले के तौर पर चलाते हैं. ऐसे में आखिर मनीष सिसोदिया को नेतृत्व के तौर पर क्यों नहीं आगे किया जा रहा है? जब वो इतने काबिल हैं, तो आखिर बल्लेबाजी के लिए सिर्फ केजरीवाल को ही क्यों मैदान पर सेहरा बांधकर भेजा जाता है. क्या आम आदमी पार्टी पूरी तरह से AAP = अरविंद अकेला पार्टी के रूप में परिवर्तित हो चुकी है? सवाल ये है कि अगर मनीष सिसोदिया को सीएम बनाने की चर्चा तेज होने लगेगी तो क्या उन्हें भी बाकी नेताओं की तरह पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा?

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साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही AAP यानी आम आदमी पार्टी (अब की 'अरविंद अकेला पार्टी') का गठन हुआ था. उस चुनाव में दिल्ली में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला था. जिसमें 15 साल से सत्ता के सिंहासन पर काबिज कांग्रेस को 70 में से सिर्फ 8 सीटें मिली थी. जबकि, भाजपा सरकार बनाने से केवल 4 कदम दूर यानी 32 सीटों पर अटक गई थी. बाकि 28 सीटों पर AAP ने जीत हासिल की थी. और फिर कांग्रेस + AAP की समझौते वाली सरकार बनी. जो 49 दिनों तक ही चल पाई. इसले बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में AAP को 67 सीटों पर जीत मिली.

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