Lata Mangeshkar Birthday: जब लता मंगेशकर की आवाज में गाना सुनकर रो पड़े थे पंडित नेहरू
15 अगस्त पर पहली बार लता मंगेशकर ने `ऐ मेरे वतन के लोगों` गाना लाल किले से गाया तो सामने बैठे अधिकांश लोग रो रहे थे.
नई दिल्ली: बॉलीवुड सिंगर लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की आवाज का जादू आज भी उनके फैंस के सिर चढ़कर बोलता है. सुरों की मल्लिका लता का मुकाबला गायन के क्षेत्र में अभी तक कोई भी सिंगर नहीं कर पाया है. आज (28 सितंबर 2021) भारत रत्न मंगेशकर अपना 92वां जन्मदिन(Lata Mangeshkar Birthday) सेलिब्रेट कर रही हैं.
थिएटर कंपनी चलाने वाले मशहूर कलाकार दीनानाथ मंगेशकर के घर में बड़ी बेटी के तौर पर लता का जन्म 1929 में इंदौर में हुआ. कला से संबंध रखने वाले परिवार में पैदा होने और पलने-बढ़ने वाली लता पर इसका असर ऐसा हुआ कि आगे चलकर गायिका बनीं लता ने बीस से अधिक भारतीय भाषाओं में करीब 30 हजार से अधिक गाने गाए. यही वजह है कि गायिका के दीवानों की संख्या लाखों नहीं बल्कि करोड़ों है और आधी सदी के अपने करियर में लता का कोई सानी नहीं है.
लता की आवाज में ऐसा जादू है कि उनकी आवाज लोगों को प्यार का एहसास कराती है, तो कभी आंखों में आंसू लाती है. लता के जीवन से जुड़े कई किस्से हैं.
लता की आवाज सुनकर जब रो पड़े थे पंडित नेहरू
1962 में चीन से हार के बाद पूरा देश निराश था. इस निराशा को तोड़ने के लिए प्रदीप ने एक गीत लिखा जिसके बोल 'ऐ मेरे वतन के लोगों' थे. कवि प्रदीप द्वारा लिखित इस कालजयी गीत को संगीतकार सी. रामचन्द्र आशा भोसले से गवाना चाहते थे, लेकिन किसी वजह से आशा ने गाने से इनकार कर दिया. ऐसे में अंतिम समय में इस गीत पर आवाज देने के लिए लता को मौका दे दिया गया. इसके बाद जब यह गीत 15 अगस्त पर पहली बार लता मंगेशकर ने लाल किले से गाया तो सामने बैठे अधिकांश लोग रो रहे थे. पंडित नेहरू ने बाद में लता से कहा कि बेटी तूने मुझे आज रुला दिया है.
मोहम्मद रफी से लता की नाराजगी
लता मंगेशकर बचपन से तुनकमिजाज थीं. बचपन से ही लता ने अपनी शर्तों के साथ जीवन जीना सीख लिया था. यही वजह है कि एक बार तो ऐसा हुआ कि कभी मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) की आवाज को भगवान की आवाज बताने वाली लता, जब उनसे नाराज हुईं तो काफी समय तक लता ने उनसे बात नहीं की. दरअसल, अरसे से गायक ये मांग कर रहे थे कि हिट हुए गानों से जब प्रोडयूसर या संगीतकार रॉयल्टी आदि का पैसा कमा रहे हैं, तो उनका भी हिस्सा होना चाहिए. उनको भी रॉयल्टी जैसा कुछ मिलना चाहिए.
इधर मोहम्मद रफी को पैसे की इतनी समस्या नहीं थी और उनकी कमाई अच्छी हो जाती थी. ऐसे में रफी ने ये कहकर टाल दिया कि जब फिल्में पिटती हैं, गाने भी नहीं चलते तो क्या प्रोडयूसर को हुए नुकसान में हम कोई सहयोग करते हैं? लताजी का पूरा आंदोलन ही फेल हो गया था, मो. रफी की वजह से. एक दिन दोनों के बीच रिकॉर्डिंग को लेकर कुछ अनबन हुई तो फिर सालों बात ही होना बंद हो गई.
अटल बिहारी लता को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जब अटल बिहार वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने भरसक कोशिश की कि लताजी को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति का पद सौंप दिया जाए, पर बात बनी नहीं. हालांकि, अटलजी के इस प्रयास को लेकर लता मंगेशकर ने कभी भी कुछ खुलकर नहीं कहा. कहते हैं कि अटल जी का निधन हो गया तो लम्बे समय तक गुमसुम लताजी ने किसी का फोन तक नहीं उठाया है. उन्हें अटल जी के निधन से गहरा सदमा पहुंचा था. वह पूर्व प्रधानमंत्री के गुजर जाने से काफी दुखी हो गई थीं.
जब लता का गाना डायरेक्टर के लिए बन गया दवा
लता मंगेशकर की आवाज में गाया गाना 'रसिक बलमा...' एक मशहूर फिल्म डायरेक्टर के लिए एक बार दवा बन गया था. दरअसल, किस्सा यह है कि महबूब खान साहब की तबियत काफी खराब थी और उनका इलाज अमेरिका में चल रहा था, उनको रातों को नींद नहीं आती थी. तब वो अमेरिका से लताजी को फोन करते थे कि मुझे 'चोरी चोरी' का गाना 'रसिक बलमा...' सुना दो, तब लताजी उनको वो गाना सुनातीं थीं, ऐसा कई बार हुआ. धीरे-धीरे महबूब खान की तबियत सुधरने लगी और फिर वो एकदम सही हो गए.
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