नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा (Indian Cinema before freedom) का इतिहास हमेशा से ही गौरवशाली रहा है. जहां सिनेमा की शुरुआत एंटरटेनमेंट के लिए हुई वहीं धीरे-धीरे इसके आयाम बदले. विश्व युद्ध-2 के दौरान हिटलर ने फिल्मों का प्रयोग प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए किया. वहीं भारत ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए. वो दौर था जब भारत को कुछ भी कहने और लिखने की आजादी न थी. ऐसे में फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाना और अंग्रेजी हुकूमत को ललकारना बेहद मुश्किल था. आजादी से पहले आजादी से जुड़ी ऐसी कई फिल्में हैं जिन पर अंग्रेजों का चाबुक चला और फिल्मों के कई सीन काट दिए गए.


वी शांताराम की 'स्वराज्याचे तोरण'


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1931 में दिग्गज डायरेक्टर वी शांताराम एक कमाल की फिल्म लेकर आए 'स्वराज्याचे तोरण'. इससे पहले कि फिल्म रिलीज होती ब्रिटिश इंडियन सेंसर के हेड गुस्से में भड़क उठे. दरअसल फिल्म के पोस्टर में छत्रपति शिवाजी महाराज को तिरंगा लहराते हुए दिखाया था. सेंसर बोर्ड ने कड़े शब्दों में कहा कि ये तस्वीर बैन की जा चुकी है. (ये वीडियो वी शांताराम की 1959 में रिलीज हुई फिल्म 'नवरंग' का है. इस वीडियो में दिखाया गया गाना आज भी काफी पॉपुलर है.)



शांताराम के दोस्त बाबुराव पाइ जो कि फिल्म डिस्ट्रिब्यूटर भी थे उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अधिकारियों से दोबारा बात की. फिल्म के टाइटल में 'स्वराज' शब्द था इसलिए टाइटल को बदला गया, कुछ सीन्स को मोडिफाइ किया गया साथ ही क्लाइमेक्स के सीन में तिरंगा फहराने के पूरे सीन को काट दिया गया. आखिरकार फिल्म को नए नाम 'उदयकाल' के साथ रिलीज किया गया.


1937 की 'दुनिया न माने'


ब्रिटिश सरकार से अकेले लड़ पाना मुश्किल था ऐसे में भारत को संगठित होने की जरूरत थी. भारत की एकता और अखंडता को बढ़ावा देने और भारत को एक प्रोग्रेसिव बनाने की जरूरत थी इसलिए 'दुनिया न माने' में काफी ज्वलंत टॉपिक चुना गया. 'विधवा पुनर्विवाह' और 'बाल विवाह' को टारगेट किया गया. ब्रिटिश सेंसर खामोश नहीं बैठा उन्होंने फिल्म के एक सीन में वल्लभ भाई पटेल के भाषण के सीन हटाने के लिए कहा. उस डॉक्यूमेंटेड फुटेज को रीमूव कर दिया गया.



वेस्टर्न कल्चर पर जब किया वार


1939 में एक बेहद कमाल की फिल्म बनाई गई नाम था 'ब्रांडी की बोतल'. फिल्म शराब पीने को गलत बताती थी. फिल्म में गांधी के मूल्यों को बढ़ावा दिया गया था. 1940 में 'घर की रानी' फिल्म में वेस्टर्न कल्चर को फॉलो करने से हुई हानि के बारे में बताया. देश के राष्ट्रवादी नेता भी इस तरह की फिल्मों को सपोर्ट करने लगे. 'अछूत' फिल्म जिसे चंदुलाल शाह ने डायरेक्ट किया था फिल्म को महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल का भी सहयोग मिला. फिल्म में जातिवाद पर कटाक्ष किया गया था.



वी शांताराम ने जब धर्मात्मा बनाई


डायरेक्टर वी शांताराम हमेशा विवादों में घिरे रहते थे. 1935 में वो एक फिल्म लेकर आए 'धर्मात्मा'. दरअसल पहले इस फिल्म को 'महात्मा' का नाम दिया गया था लेकिन कन्हैयालाल मानेकलाल मुंशी जो बॉम्बें स्टेट के होम मिनिस्टर थे उनका मानना था कि फिल्म मेकर्स महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं. फिर क्या नाम को 'धर्मात्मा' कर दिया गया.



1940 का काला दशक


1940 के बाद देश में आजादी की हवा रफ्तार पकड़ रही थी. ये हवा धीरे-धीरे तूफान बन अंग्रेजों के साम्राज्य की नींव को उखाड़ने के लिए चक्रवात का रूप लेने लगी. धीरे-धीरे अंग्रेजों की सेंसर पर पकड़ ढीली पड़ गई. सिनेमा के पोस्टर अपने आप में बेहद क्रांतिकारी होने लगे. 1944 में आई फिल्म 'चल चल रे नौजवान' की टैगलाइन थी 'Bringing Light To a Vexed Nation' 'एक परेशान देश में रोशनी लाना'.



'Turn East – and Hear India Speak! Is Today’s Tip To The West' 1946 में रिलीज हुई फिल्म 'हम एक हैं' की टैगलाइन थी जो सीधे शब्दों में अंग्रेजी हुकूमत को को कह रही थी कि 'पूर्व की ओर मुड़ो और इंडिया की आवाज सुनो ये वेस्ट को दी जाने वाली टिप है'. 1947, यानी आजादी का वर्ष इस साल आई फिल्म 'एक कदम' के पोस्टर पर नेताजी सुभाष चंद्र की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया था.


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