नई दिल्ली: कृषि कानूनों को लेकर किसानों के प्रदर्शन (Farmer Protest) का आज नौवां दिन है, जहां एक तरफ किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए है तो दूसरी तरफ किसानों से बातचीत कर इस गतिरोध को खत्म करने की सरकार की कोशिशे भी जारी है, लेकिन फिलहाल कोई समाधान होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि किसानों का ये आंदोलन आम लोगो के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. जिसके लिए अब ये मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल
किसान आंदोलन का मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है. किसान आंदोलन के चलते बंद दिल्ली सीमा (Delhi Border) खोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा कि शाहीन बाग (Shaheen Bagh) फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रदर्शन प्रशासन की तरफ से तय जगह पर होना चाहिए. सड़क बाधित नहीं की जा सकती. इसलिए लोगों को तय जगह पर भेजा जाए. कोविड से जुड़े निर्देशों का पालन भी करवाया जाए.
आंदोलन से राजधानी परेशान
जहां आम दिनों में सड़कों पर गाड़ियों की रफ्तार होती थी आज वहां किसानों का जमावड़ा है. जो रास्ते लोगो की रोजी रोटी की राह खोलते है, जो रास्ते बीमारों को अस्पताल ले जाते है, जो रास्ते किसी के सपने पूरी करने की दिशा दिखाते है. इस आंदोलन ने लोगों की हर जरूरत पर असर डाला है. किसानों को अपनी बात रखने का पूरा हक है उन्हें सरकार से सवाल करने का भी पूरा अधिकार है, लेकिन विरोध का कोई भी तरीका अगर आम लोगों के लिए मुसीबत खड़ी करे तो वो भी जायज नही.
राष्ट्रीय राजमार्ग 24 (NH-24) पर आम हालात में एक दिनों में लाखों गाड़ियां गुजरती हैं, लेकिन सड़कें शांत हैं और ये क्रिकेट का मैदान बना हुआ है. यहां बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं. सड़क के दूसरे हिस्से में किसान धरने पर बैठे हैं. मंच बना हुआ, सभाएं हो रही हैं, ट्रैक्टरों का कब्जा है, पुलिस के बैरिकेट्स लगे हैं.
..तो खेतों में कौन है?
इन सबके बीच जो परेशान है वो आम आदमी है. सुबह का वक्त है और ऑफिस पहुंचने की जल्दी है. लोगों का कहना है कि "हम ऑफिस जाने के लिए खड़े हैं. काफी देर से इंतजार कर रहे हैं, दिक्कत तो बहुत है. ये जाम लग गया इसमें से तो कोई किसान लग नहीं रहा. अभी तो गेहूं की कटाई का वक्त है तो किसान यहां हैं तो खेतों में कौन है? और जनता को परेशान क्यों कर रहे हैं."
लोग परेशान हैं, लेकिन किसानों को उकसाने वाले मानने को तैयार नहीं हैं. किसान कह रहे हैं कि जब तक सरकार मानेगी नहीं, वो वापस जाएंगे नहीं, सड़क छोड़ेंगे नहीं.. किसानों का कहना है कि "6 महीने तक वापस नहीं जाएंगे. सड़क खाली नहीं करेंगे. आंदोलन इतना तेज होगा कि दिल्ली जाम कर दिया जाएगा. हम पीछे हटने वालों में से नहीं हैं, पूरी तैयारी के साथ हैं. वार्ता विफल होती है तो आंदोलन और तेज होगा."
किसानों की चेतावनी
जिस सड़क को किसान जाम करना चाहते हैं. जिस सड़क को अगले 6 महीने तक खाली नहीं करना चाहते हैं वो सड़क देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नहीं है. ये सड़क देश के गृहमंत्री अमित शाह की नहीं है. और ना ही ये सड़क देश के कृषि मंत्री की है. ये आम लोगों की सड़क है. ये देश की आम जनता की सड़क है. ये वो सड़क है, जो किसी की रोजी रोटी का रास्ता है. ये वो सड़क है जो किसी बीमार को अस्पताल पहुंचाती है. ये वो सड़क है जो किसी के सपनों को पूरा करती है.
लेकिन ये सड़कें जाम हैं, रास्ते बंद हैं, लोग परेशान हैं. कुछ सड़क के इस और तो कुछ दूसरी ओर खड़े हैं.. इस उम्मीद के साथ कि सरकार किसान की सुने और किसान दिल्ली की और दिल्ली वालों को परेशानी खत्म हो.
दिल्ली वालों की परेशानी समझिए
अब सिलसिलेवार तरीके से दिल्ली वालों की परेशानी समझिए. दिल्ली के ज्यादातर एंट्री पॉइंट्स पर किसान बैठे हैं. किसान दिल्ली में प्रवेश ना कर पाएं, इसके लिए रास्ते बंद कर दिये गए हैं. लेकिन दिल्ली में लाखों लोग NCR से नौकरी करने आते हैं. हर दिन हज़ारों लोग अस्पताल आते हैं. व्यापारी सामान खरीदने आते हैं. अब समस्या है कि किसानों के प्रदर्शन की वजह से ये सब जाम के चक्रव्यूह में फंस गए हैं.
दिल्ली चंडीगढ़ हाइवे - सिंघु बॉर्डर
दिल्ली-रोहतक हाइवे - टिकरी बॉर्डर
दिल्ली जयपुर हाइवे - रजोकरी बॉर्डर
दिल्ली-आगरा हाइवे - बदरपुर बॉर्डर
दिल्ली-ग़ाज़ियाबाद - सीमापुरी बॉर्डर
दिल्ली-ग़ाज़ियाबाद - लोनी बॉर्डर
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे - गाजीपुर बॉर्डर
दिल्ली में इन सभी जगहों पर किसान धरने पर हैं या किसानों के दिल्ली कूच के डर से इन सड़कों को बंद कर दिया गया है. यूपी गेट पर हज़ारों की संख्या में किसान मौजूद हैं. यूपी से दिल्ली आने वाली सड़क पूरी तरह से बंद है, सड़क पर किसानों का कब्जा है. सभाएं हो रही हैं, भाषण हो रहा है. किसान दावा कर रहे हैं कि जब तक बात नहीं बनेगी, वो ऐसी ही यहां बैठे रहेंगे. चाहे उन्हें 26 जनवरी की परेड दिल्ली में क्यों ना देखनी पड़े.
गाड़ियां धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में एक एंबुलेंस इस ट्रैफिक जाम में फंसी हुई है. एंबुलेंस कभी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है तो कभी रुक जाती है. सोचिये की एंबुलेंस के अंदर जो मरीज होगा, उसकी हालत क्या हो रही होगी. इस जाम में फायर फायटर की एक गाड़ी भी फंसी हुई. ये वो सेवाएं जो इंमरजेंसी की तहत हैं, लेकिन इनके लिए भी दिल्ली लॉक है.
सड़कों पर रैली चल रही है, किसान अपनी मांगों के समर्थन में सभा कर रहे हैं. सरकार को ललकार रहे हैं. मांग कर रहे हैं कि किसानों की मंगों को माना जाए. लेकिन यहां भी दिल्ली वालों की चिंता किसी को नहीं है. सड़क पर किसान धरने पर बैठे हैं, सड़क बंद है और परेशानी में दिल्ली वाले हैं. किसान धरना करने के लिए उचित स्थान पर जाने के लिए तैयार नहीं हैं. इसीलिए अब देश की सर्वोच्च अदालत में ये मामला पहुंच गया है.
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