नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में देशभर के निजी मेडिकल कॉलेजों में अनियमित फीस निर्धारण पर निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के तत्वावधान में वेब-पोर्टल स्थापित करने के निर्देश दिये हैं. इस वेब पोर्टल पर छात्रों द्वारा कैपिटेशन फीस वसूलने वाले निजी मेडिकल कॉलेजों के बारे में कोई भी शिकायत की जा सकेगी.
वेबपोर्टल को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र यानि की एनआईसी द्वारा तैयार किया जायेगा और वही इसका संचालन भी करेगा. फीस निर्धारण के लिए बनी निजी प्रोफेशन कॉलेजों की समिति व अन्य के खिलाफ राष्ट्रीय शिक्षण समिति की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को वेब-पोर्टल के बारे में संपूर्ण जानकारी अंग्रेजी के साथ-साथ स्थानीय भाषा के सभी समाचार पत्रों में भी प्रकाशित करने के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा काउंसलिग के समय ही वेब-पोर्टल की उपलब्धता के बारे में सूचित करने वाले पेम्पलेट छात्रों और उनके माता-पिता को अनिवार्य रूप से दिये जाने की के निर्देश भी दिये गये हैं.
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया के लिए कार्यक्रम तय करते समय, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और भारतीय दंत चिकित्सा परिषद को यह सुनिश्चित करना होगा कि अतिरिक्त रिक्तियों सहित सभी दौर की काउंसलिंग प्रवेश की अंतिम तिथि से कम से कम दो सप्ताह पहले पूर्ण करनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही अतिरिक्त राउंड या स्टे वेकेंसी राउंड में प्रवेश के लिए ऑथेरिटी द्वारा अनुसंशा किये गये छात्रों के नाम की सूची NEET Exam में उनको आवंटित की गयी रैंक के साथ सार्वजनिक करने के आदेश दिये हैं. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि कॉलेज में प्रवेश सख्ती के साथ छात्रों की योग्यता के अनुसार ही किया जायेगा, इसके विपरित किसी भी गलत प्रवेश के लिए उचित कार्रवाई करनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिये हैं कि निजी मेडिकल कॉलेज के लिए शुल्क निर्धारण करते समय, राज्यों की शुल्क निर्धारण समितियों को उन सभी बिंदुओं पर ध्यान रखना होगा जिससे कॉलेजों को कोई अतिरिक्त शुल्क चार्ज करने का स्कोप न रहे. जिससे कि फीस निर्धारण समिति द्वारा समय-समय पर निर्धारित की गई राशि के अलावा मैनेजमेंट द्वारा कोई अतिरिक्त राशि वसूलने की कोई गुंजाइश नहीं रह सके.
नकद में फीस का भुगतान पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने कैपिटेशन फीस वसूलने से रोकने के लिए देशभर के निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन को नकद में फीस का भुगतान स्वीकार करने पर सख्त मनाही की है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज द्वारा नकद में फीस का भुगतान के लिए बाध्य करने या नकद में फीस लेने पर छात्र या पीड़ित व्यक्ति वेब पोर्टल पर रिपोर्ट कर सकेगा.
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य निदेशक और देश की राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि राष्ट्रीय स्तरीय कोटे की काउंसलिंग और स्टेट कोटे के लिए काउसंलिग को निर्धारित समय सारिणी के अनुसार सख्ती से पूरा किया जाना चाहिए.
क्या है मामला
गौरतलब है कि शैक्षणिक वर्ष 2004-2005, 2005-2006 और 2006-2007 के लिए स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क निर्धारण समिति द्वारा पारित आदेशों को छात्रों और निजी मेडिकल कॉलेजों द्वारा अलग-अलग हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने इन रिट याचिकाओं को अनुमति देते हुए छात्रों और निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन द्वारा दायर रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए 16 अगस्त 2010 को हाईकोर्ट के आदेशों पर रोक लगाते हुए निजी कॉलेजों को आदेश दिया था कि कॉलेज छात्रों को फीस वापस कर दें.
2014 में सुप्रीम कोर्ट मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद को न्यायमित्र नियुक्त किया था. इसके साथ ही कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों को आवश्यक जानकारी न्यायमित्र को प्रदान करने के आदेश दिये गये.
वेबसाइट के लिए मांगे गए सुझाव
20 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने लूबना नाज और मोहित कुमार शाह को इस मामले में वेबसाइट बनाने के लिए सुझाव मांगे. इसके साथ ही 28 अप्रैल को एनआईसी और Ministry of Electronics and Information Technology को पक्षकार बनाने के लिए नोटिस जारी किया गया.
5 मई को देशभर के राज्यों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र ने निजी कॉलेजों द्वारा वसूली जा रही कैपिटेशन फीस को लेकर विस्तृत रिपोर्ट दी गयी. इसके साथ ही मेडीकल कॉउंसिल और राज्य सरकारों द्वारा मिले सुझाव शामिल कर सुप्रीम कोर्ट में पेश किये गए. सुप्रीम कोर्ट ने मेडीकल काउंसिल, राज्य सरकारों और न्यायमित्र की ओर से मिले सुझावों के आधार पर ये दिशानिर्देश जारी किये हैं.
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