नई दिल्ली: यह सिर्फ एक ओछी हरकत हो तो भी उतनी घातक नहीं जितना घातक वार भारत और अमेरिका के मैत्री सूत्र पर करने की कोशिश की गई है भारत में 7 अप्रेल 2020 के दिन. भारत के इस मोदी विरोधी मीडिया की गैंग का यह अफसोसनाक कारनामा है लेकिन उन्हें इस शर्मनाक हरकत का कोई अफ़सोस नहीं होगा. किन्तु जिनको अफ़सोस है उन बहुसंख्यक भारतवासियों के कहर से आने वाले दिनों में किसी भी राष्ट्रविरोधी गतिविधि को कोई बचा भी नहीं पायेगा, शायद इस तथ्य का इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को ज़रा भी इल्म नहीं है.


अमरीका में कोरोना का कोहराम


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यह तथ्य किसी से नहीं छुपा है कि आज की तारीख में कोरोना वायरस का एपिसेन्टर अमेरिका है, जहां दुनिया में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा लगभग 14 लाख पहुंच चुका है जबकि अमेरिका में ही इस संक्रमण की गिरफ्त में 4 लाख लोग आ चुके हैं और साढ़े बारह हज़ार के लगभग कोरोना मौतें भी हो चुकी हैं.


अमेरिका में कोरोना के कोहराम के बीच दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति कहलाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव और तनाव को शायद स्वयं डोनाल्ड ट्रम्प के कोई और नहीं समझ सकता.


अमरीकी राष्ट्रपति पर चौतरफा दबाव


कोरोना-कहर के दबाव को झेल रहे दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने आसमानी तनाव के इस अभूतपूर्व दौर में भी अपना आपा नहीं खोया है. एक तरफ राष्ट्रपति ट्रम्प हैं तो एक तरफ अमरीका पर खूनी हमला कर रहा कोरोना है तीसरी तरफ विपक्ष है तो चौथी तरफ हमेशा की तरह अमरीका को बुरी नज़र से देखने वाला चीन है. अमरीका की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है. आने वाले महीनों में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों से पहले कोरोना की चुनौती पेश आ गई.


अमरीकी विपक्ष भारत के विपक्ष का मौसेरा भाई


कोरोना की मार से घायल इस सबसे ताकतवर देश का विपक्ष भी भारत के विपक्ष की भूमिका अदा करता नज़र आ रहा है और अपने एकमेव राष्ट्रीय मुखिया के साथ खड़े होने की जगह उनका छिद्रान्वेषण करता दिखाई दे रहा है. गलती निकालने में माहिर विपक्षी नेता डोनाल्‍ड ट्रंप पर कुप्रबंधन का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्होंने कोरोना संकट को कम करके आंका है और इसके समाधान की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाये हैं. इन सब तनावों से घिरे हुए डोनाल्ड ट्रम्प दबाव में लड़खड़ा तो रहे हैं लेकिन गिरे नहीं हैं.


क्या है सारा मामला


ये सारा मामला है व्हाइट हॉउस प्रेस ब्रीफिंग से जुड़ा हुआ है. इस प्रेसमीट में डोनाल्ड ट्रंप के शब्दों और उनके इरादों को भारत के मोदी विरोधी मीडिया ने ऐसे प्रस्तुत किया जो कि भारत-अमेरिका संबन्धों पर दोनो तरफ से नुकसानदेह सिद्ध हो सकता है.


7 अप्रैल 2020 को रूटीन प्रेस ब्रीफिंग में व्हाइट हाउस ने अमरीकन मीडिया से बात की. इस दौरान हुए तमाम सवालों का जवाब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हमेशा की तरह पूरी तरह संयत हो कर दिए. इस दौरान जब उनसे पूछा गया कि यदि भारत ने अमेरिका द्वारा मांगी गई फिलहाल की कोरोना की उपलब्ध दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने से इंकार किया तो आपका अगला कदम क्या होगा?, डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि अगर भारत दवाई देने से इंकार करता है तो हम उन पर कार्रवाई करेंगे.  


इरादतन देश-विरोधी हरकत है ये


इस बात का साफ़ अर्थ है कि ट्रम्प ने अपरोक्ष रूप से भारत पर कार्रवाई की धमकी दी है. लेकिन सच तो ये है कि दरअसल जो हुआ है वो ये नहीं है जो एक ख़ास मीडिया वर्ग की तरफ से दिखाया जा रहा है - चाहे ये मीडिया वर्ग वेबसाइट और वेब चैनल्स के माध्यम से ऑपरेट कर रहा हो चाहे टेलीविज़न और अखबारों के मंच से. इनके विषैले इरादे राष्ट्रहित के प्रतिकूल हैं और इस तरह इनकी ये हरकत गैरजिम्मेदाराना नहीं बल्कि राष्ट्रद्रोही गतिविधियों में आती है क्योंकि ऐसी हरकत भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध खराब कर सकती जो भारत के लिए नुकसानदेह भी हो सकती है.


ये बयान नहीं एक प्रश्न का उत्तर था


इसमें सबसे पहली बात तो ये है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को लेकर ऐसा कोई बयान नहीं दिया है बल्कि वे पत्रकार वार्ता में एक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे. प्रश्न के उत्तर के हाव-भाव दूसरे होते हैं और इरादतन दिया गया बयान दूसरा होता है. इन दोनों ही स्थितियों में कही गई बातों का संकेत अलग अलग होता है और उनका अर्थ भी. नीचे दी गई लिंक को देख-सुन कर आप स्वयं भी इस तथ्य की सत्यता का अनुमान लगा सकते हैं- 



जवाबी कार्रवाई और धमकी में फर्क होता है


कुछ मीडिया मंचों पर कहा गया कि डोनाल्ड ट्रम्प ने हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन पर निर्यात प्रतिबंध को लेकर स्पष्ट संकेतों से भारत को धमकी दी है. कुछ मीडिया मंचों ने कहा कि ट्रम्प ने कहा है कि अगर भारत दवाई का एक्सपोर्ट करने से इंकार करता है तो उसे परिणाम भुगतने होंगे.


कुछ मीडिया संस्थानों ने कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को ताव दिखाया तो कुछ ने कहा कि ट्रम्प ने भारत को धमकाया. धमकाने और जवाबी कार्रवाई में फर्क होता है. जवाबी कार्रवाई में भी इस तरह के ही प्रतिबन्धात्मक कदम उठाये जा सकते हैं, हमला करने या डराने जैसी कोई धमकी वाला अर्थ इसमें सन्निहित नहीं होता है.


शब्दों का हेरफेर नहीं, इरादतन साजिश है ये


लेकिन इन बड़े मीडिया संस्थानों ने शब्दों का हेरफेर किया -ऐसा कहने से इनकी साजिशाना नीयत साफ़ नहीं होती. इन्होने जानबूझ कर दिन भर यह प्रोपोगैंडा चलाया है और इसके पीछे इनके गहरे स्वार्थ छुपे हुए हैं. ये स्वार्थ न केवल मोदी विरोधी हैं बल्कि देशविरोध भी हैं क्योंकि मोदी ने जब जब देश हित का कोई कदम उठाया है तो परोक्ष और अपरोक्ष रूप से इन्होने हमेशा मोदी का विरोध ही किया है. अब तक भारत का अंग्रेजी पत्रकार ही अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे को देश में चला रहा था अब बहुत से हिंदी पत्रकारिता मंच भी इस अदीबी 'जमात' में शामिल हो चुके हैं.


चलाई चौ-तरफ़ा तलवार


इस तरह से चौ-तरफ़ा तलवार चलाई गई अर्थात एंटी-मोदी मीडिया द्वारा एक तीर से दो नहीं बल्कि चार चार शिकार करने की कोशिश की गई. एक तरफ तो इस तरह का संदेशा दे कर देश की जनता को भ्रमित किया गया कि मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक असफल नेता हैं और उनको दूसरे देश धमकाते हैं.


इस तरह ये कोशिश भी की गई कि मान लो मोदी अमेरिका को दवाई देने के लिए सहमत हो जाते हैं तो इस मोदी विरोधी मीडिया की हेडलाइंस से ज़ाहिर होगा कि मोदी ने ट्रम्प से भयभीत हो कर अमेरिका के आगे आत्मसमर्पण कर दिया अर्थात पीएम मोदी की छवि धूमिल करने का प्रयत्न किया गया.


नुकसान नंबर दो और तीन


प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर असफलता न केवल उनकी छवि को धूमिल करती है बल्कि इसका मनोवैज्ञानिक नुकसान भारत की जनता पर ये पड़ता है कि देश का आत्मविश्वास टूटता है और राष्ट्रवाद और राष्ट्र-गौरव का जनभाव पराजित हो जाता है.


तीसरा नुकसान मोदी विरोधी मीडिया ने इस तरह करने की कोशिश की कि डोनाल्ड ट्रम्प पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़े. भारत की मीडिया द्वारा डोनाल्ड ट्रम्प को एक विलेन के रूप में प्रस्तुत करने से अमरीकी राष्ट्रपति के प्रसन्न होने का कोई कारण नहीं बनता.


नुकसान नंबर चार


चौथा नुकसान नौकरशाही में नज़र आता. चाणक्य ने कहा था कि कमज़ोर हाथों में राजदंड नहीं थमता. इस नीतिगत संदेश के दो अर्थ हैं - पहला ये कि राजसिंहासन पर कठोर निर्णय भी लेने पड़ते हैं और इसका दूसरा अभिप्राय यह है कि कमज़ोर निर्णय लेने से राजशाही का वजन कम होता है अर्थात मंत्रिमंडल पर तथा अधिकारियों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि राजा की छवि कमज़ोर होते ही धूमिल हो जाती है.


जनता के लिए बनाईं हेडलाइंस


जनता लम्बी चौड़ी बात नहीं समझती, उस पर हेडलाइंस का असर होता है. इसलिए इस मोदी विरोधी मीडिया ने मोटी-मोटी हेडलाइंस के ज़रिये ये ज़ाहिर करने की कोशिश की कि भारत पर अमेरिका का दबाव है. इस तरह ये भी जाहिर किया गया कि मोदी का छप्पन इंची सीना दिखावा है और इस तरह ये भी जताने की कोशिश हुई कि भारत और अमेरिका की मैत्री नहीं बल्कि दबाव की दोस्ती है जिसमे भारत छोटे भाई की भूमिका में अमेरिका का यस मैन है.


भारत के लोग कभी इस बात की गहराई में नहीं जाएंगे कि नमस्ते मोदी और नमस्ते ट्रम्प जैसे बड़े आयोजन दोनों देशों में दोनों देशों के नेताओं की बराबर की मैत्री के द्योतक हैं. इसमें दोनों बड़े नेताओं अर्थात मोदी और ट्रम्प के अपने अपने मंतव्य अंतर्निहित तो हैं ही किन्तु इस तरह दोनों ही महाशक्तियों की मैत्री का एक सफल और सशक्त अध्याय भी लिखा जा रहा है जो दोनों देशों के ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय  हितों की रक्षा करने वाला है. 


भारत विरोधी बयान नहीं दे सकते ट्रम्प


अमेरिकी राष्ट्रपति कभी भी भारत विरोधी ऐसा बयान इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि उनको भारत की भी आवश्यकता है और भारत के मोदी की भी. जिस मोदी ने नमस्ते ट्रम्प जैसा महंगा आयोजन ट्रम्प के चुनावी हित के लिए किया था, वही मोदी अमरिकी चुनावों के दौरान अपने सिर्फ एक इशारे से अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों को डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ भी कर सकते हैं. और इस बात से ट्रम्प अपरिचित होंगे, इसकी संभावना बिलकुल नहीं है. 


क्या है ये एजेंडा और क्यों है ये एजेंडा?


ज़ाहिर है कि मोदी विरोध इस विशेष मीडिया वर्ग का एजेंडा है. इस एजेंडे से इनको क्या हासिल हो सकता है यह विचारणीय विषय है. ऐसे लोगों को पत्रकार नहीं बल्कि दलाल कहा जा सकता है और यदि इनको अंतर्राष्ट्रीय दलाल कहा जाये तो यस बिलकुल सही सम्बोधन होगा क्योंकि तब इस सम्बोधन में इनके इरादे और नीयत दोनों ही साफ़ दिखाई देती है.


इन अंतर्राष्ट्रीय दलालों को विदेशी और शत्रु शक्तियों का भारत में प्रतिनिधि भी कहा जा सकता है और उनका जासूस भी. अब इसके बाद इनके एजेंडे के बारे में समझना मुश्किल नहीं रह जाता. देश को कमज़ोर करना इनका प्रथम ध्येय होता है और इसके लिए देश के मुखिया को कमज़ोर करना इनका प्रथम कार्य होता है. इसके बदले में मिलने वाले पुरस्कार कैश और काइंड दोनों में होते हैं और यदि इस तरह के राष्ट्रविरोधी तत्वों की पूरी पड़ताल की जाए तो इनकी सम्पत्तियां भारत में ही नहीं विदेशों में भी पकड़ में आ जाएंगी.


पहले से चल रही है ये मीडियाना साजिश


पीएम मोदी और उनकी राष्टवादी सरकार शुरू से ही इस राष्ट्रविरोधी मीडिया के हमलों का शिकार होती रही है. हाल ही में सरकार ने अपने ऊपर होने वाले वार प्रतिवार को हमेशा की तरह नज़रअंदाज़ करते हुए भी राष्ट्रहित में कोरोना-काल के दौर में की जा रही नकारात्मक पत्रकारिता पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.


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ये एजेंडा वाली मीडिया कोरोना पर भ्रामक रिपोर्टिंग में लगी हुई थी. सरकार ने ऐसे मीडिया मंचों पर आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोरोना वायरस जैसे गंभीर मुद्दे पर भी कई ऐसे निकृष्ट चैनल हैं जो अपने व्यक्तिगत वैचारिक दृष्टिकोण के कारण लोगों में झूठ और भ्रम फैलाने में जुटे हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ऐसे मीडिया समूहों पर नियंत्रण करने की मांग की है.


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