नई दिल्ली: चीन में सेना और राजनेताओं के बीच गहरा मतभेद है. ये इस बात से स्पष्ट होता है कि जहां चीनी सेना यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी(PLA) लद्दाख में फौजी जमावड़ा बढ़ा रही थी. वहीं दिल्ली में बैठे चीनी राजदूत सुन वीडोंग (Sun Weidong) ने बीजिंग के इशारे पर सुलह सफाई की बातें शुरु कर दीं.


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उनका कहना था कि 'हमें कभी अपने मतभेदों को दो देशों के बीच आपसी रिश्तों से ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए और असहमतियों का समाधान बातचीत से करना चाहिए.भारत और चीन एक दूसरे के दुश्मन नहीं, बल्कि एक दूसरे के लिए अवसर हैं'.



चीनी राजदूत की बातें तो बेहद मनभावन हैं. लेकिन वो अपनी फौज को क्यों नहीं समझा पा रहे हैं जो भारतीय सीमा पर अपने सैनिकों और हथियारों का जमावड़ा करने में जुटी है. ये दर्शाता है कि चीन में राजनैतिक और सैन्य नेतृत्व के बीच मतभेद गहरा हो चुका है. हालांकि इन परिस्थितियों में भारत को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरुरत है. क्योंकि चीन की सेना बिना अपने राजनीतिक नेतृत्व की अनुमति के किसी तरह की खुराफात कर सकती है.  
लेकिन चीन की सेना भले ही उछल रही हो. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित वहां का राजनैतिक नेतृत्व अच्छी तरह जानता है कि भारत से सीधे जंग में उलझना उनके भविष्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. यही वजह है कि डोकलाम से भी चीन की फौज को बैरंग वापस लौटना पड़ा था. आखिर क्यों चीन भारत से उलझना नहीं चाहता? क्या है उसकी मजबूरी? इसके पीछे 5 प्रमुख कारण हैं-
1. भारत से लड़कर पूरी दुनिया में अकेला पड़ जाएगा चीन
दुनिया में वर्तमान कोरोना संकट के लिए पूरी दुनिया चीन को जिम्मेदार समझ रही है और उसपर लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं. यूरोपीय देश, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया लगातार चीन के खिलाफ जांच और कार्रवाई की बात कह रहे हैं. 


चीन का नजदीकी माना जाने वाला रूस भी चीन से दूरी बनाए हुए है. डोनाल्ड ट्रंप तो चीन को खुले तौर पर कई बार धमकी दे चुके हैं. चीन के साथ सिर्फ पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे टुटपूंजिए देश ही चीन के साथ हैं. जिनका होना या ना होना कोई खास मायने नहीं रखता. 


वहीं वर्तमान काल में पीएम मोदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया ने भारत की क्षमता का लोहा माना है. भारत ने निस्वार्थ भाव से दुनिया के हर देश की मदद की है. ब्राजील, अमेरिका, यूरोप तो भारत के मुरीद हैं ही. ईरान, तुर्की और मलेशिया जैसे विरोधी भी मदद के लिए भारत की ओर ही देखते हैं. 
वहीं चीन ने कोरोना संकट पैदा करके और उसका फायदा उठाकर दुनिया भर की कंपनियों के शेयर खरीदकर कब्जा जमाने और घटिया मेडिकल सामान सप्लाई करके अपनी छवि और बुरी कर ली है. 


इसके अलावा भारत एक लोकतांत्रिक देश है. अगर चीन भारत पर किसी तरह का हमला करता है तो यह एक तानाशाह मुल्क का एक लोकतांत्रिक देश पर हमला माना जाएगा. चीन एक गैर लोकतांत्रिक और साम्राज्यवादी देश है. वहां लोकतंत्र नहीं है सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी का शासन चलता है. जबकि भारत का एक लंबा लोकतांत्रिक इतिहास है. जिसकी वजह से दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देश चीन के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं और चीन दुनिया भर में पूरी तरह अलग थलग पड़ सकता है. 


ऐसे में चीन अगर भारत के खिलाफ कोई भी गलत हरकत करता है तो चीन के प्रति पूरी दुनिया गुस्सा भारत के प्रति सहानुभूति को और बढ़ा देगा. इन परिस्थितियों में अगर अमेरिका, यूरोप और हमारा सदाबहार दोस्त रूस भारत की मदद के लिए आ गए तो चीन के लिए अपनी जमीन बचानी भी मुश्किल हो जाएगी. चीन का राजनैतिक नेतृत्व इस गंभीर स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ है. इसलिए वह अपनी सेना पर लगाम कसने की कोशिश कर रहा है.     
2. चीन को अपने पड़ोसियों की तरफ से कई मोर्चे खुल जाने का डर 
चीन की विस्तारवादी नीति से उसके सभी पड़ोसी देश अच्छी तरह वाकिफ हैं. यही कारण है कि ड्रैगन को उसके पड़ोसी देश हमेशा शक की निगाह से देखते हैं. इसकी ठोस वजहें भी हैं. चीन की जमीनी सीमा 14 देशों के साथ जुड़ी हुई हैं. ये हैं-  उत्तर कोरिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मलेशिया, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, रुस, मंगोलिया, दक्षिण कोरिया, म्यांमार, नेपाल, भूटान और भारत. 


इसके अलावा चीन की समुद्री सीमा भी जापान, वियतनाम, फिलीपींस, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, ताइवान से भी मिलती हैं.

इसमें से पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के अलावा हर देश की जमीन पर चीन की गंदी निगाह है.  चीन के सभी पड़ोसी उसकी विस्तारवादी नीति से नाराज रहते हैं. दक्षिण चीन सागर में चीन की करतूतें किसी से छिपी नहीं हैं. चीन श्रीलंका और मालदीव तक अपने पैर फैलाने की कोशिश में लगा रहता है. 
खास बात ये है कि चीन के सभी पड़ोसी देशों के भारत से मधुर संबंध हैं.  चीन के बिलकुल बगल के वियतनाम, फिलीपींस जैसे कई देशों ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदकर उसे चीन की तरफ तैनात भी कर रखा है. ये चीन की मुश्किल का बड़ा कारण है. चीन अच्छी तरह जानता है कि अगर उसने भारत को छेड़ने की कोशिश की. तो उसे कूटनीतिक रुप से घेर लिया जाएगा. वियतनाम, जापान, ताइवान, फिलीपींस सहित कई छोटे देश चीन से अपना हिसाब चुकाने उतर आएंगे. ऐसे में चीन की सेना को एक साथ कई मोर्चों पर उलझना पड़ सकता है. 


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चीन ये खतरा मोल नहीं ले सकता है. चीन का राजनैतिक नेतृत्व इतना अपरिपक्व नहीं है कि वो भारत से उलझकर इस बड़े खतरे की अनदेखी कर दे. इसलिए उसने भारत के खिलाफ उठाए अपने कदमों को वापस खींचने का फैसला किया है. 
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चीन अपनी नाजुक हालत से अच्छी तरह वाकिफ है. यही वजह है कि चीन के इशारे पर उछल रहे नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने भी ड्रैगन के इशारे पर अपने पांव पीछे हटा लिए हैं. पूरी खबर आप यहां पढ़ सकते हैं. 
3. भारत से जंग छेड़कर बर्बाद हो सकता है चीन
चीन के राजनेताओं ने बड़ी मुश्किल से अपने देश को गरीबी और भूख से दलदल से निकालकर दुनिया का सिरमौर बनाया है. मुश्किल से 40 साल पहले तक चीन बीमारी और भुखमरी से जूझता हुआ बेहद बुरी परिस्थितियों में फंसा हुआ देश था. लेकिन चीन के राजनेताओं ने अपने देश को इन परिस्थितियों से निकालने के लिए बड़ी मेहनत की है. चीन के विकास की कहानी 1980 के बाद शुरु होती है. जब चीन ने अपने प्रमुख नेता डेंग जियाओ पिंग के नेतृत्व में तरक्की की सीढ़ियां चढ़नी शुरु कीं. ये उनकी दूर दृष्टि का ही कमाल था कि चीन आज आर्थिक और सैनिक रुप से अमेरिका और यूरोप के बाद दुनिया का सबसे मजबूत देश बन चुका है.


चीन के राजनेताओं को मालूम है कि भारत के साथ सैन्य संघर्ष उनकी 40 साल की मेहनत पर पानी फेर देगा. चीन की योजना अमेरिका और यूरोप को पीछे छोड़कर पूरी दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनना है. वो भारत को अपने संसाधन के तौर पर देखता है. ऐसे में चीन की सेना की मूर्खतापूर्ण कार्रवाई चीन को फिर से गरीबी और जहालत में धकेल देगा और चीन का पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने का ख्वाब कभी पूरा नहीं हो पाएगा. 
इसलिए चीन के राजनेताओं ने लद्दाख में अपनी सेना की हरकतों पर लगाम कसकर भारत के साथ सुलह सफाई के संकेत दिए हैं. 
4. भारत की सक्षम सेना
चीन इसलिए भी भारत के खिलाफ जंग में नहीं उलझना चाहता है क्योंकि वह अच्छी तरह जानता है कि भारत की सेना 1962 के नेहरु युग वाली ढीली ढाली फौज नहीं है. भारतीय सेना की गिनती दुनिया की सबसे अत्याधुनिक फौजों में होती है. भारत के राजनैतिक और सैन्य नेतृत्व में किसी तरह का मतभेद नहीं है. भारत की फौज का विषम से विषम परिस्थितियों में जीत हासिल करने शानदार ट्रैक रिकॉर्ड रहा है.



इसके विपरीत चीन की सेना भले ही भारत से बड़ी हो. लेकिन पिछले कई दशकों से उन्होंने कोई युद्ध नहीं लड़ा है. उनके पास युद्ध का प्रैक्टिकल अनुभव मौजूद नहीं है. जबकि भारत की सेना संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन से लेकर कई तरह के जंगी मोर्चों पर हमेशा सक्रिय रही है. अमेरिका, जापान, रूस सहित दुनिया की सर्वोत्तम सेनाओं के साथ भारतीय सेना का युद्भाभ्यास चलता ही रहता है. 


इसके अलावा चीन जानता है कि भारतीय मिसाइलें चीन में किसी भी शहर तक मार करने में सक्षम है. भारत की सबसे अत्याधुनिक सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल चीन के लिए एक बड़ा खतरा है.  क्योंकि यह परमाणु हथियार भी ले जा सकती है और सुपर स्पीड से चीन के किस शहर पर कहर बनकर टूट सकती है. ब्रह्मोस मिसाइल की क्षमताओं से वाकिफ चीन के पड़ोसियों ने इसे भारत से खरीद कर चीन के खिलाफ तैनात कर रखा है. 

भारतीय वायुसेना राफेल जैसे लडा़कू विमानों से लैस है. भारतीय नौसेना को हिंद महासागर में अजेय समझा जाता है. भारतीय नौसेना को इस इलाके में चुनौती देना दुनिया के किसी भी देश के लिए संभव नहीं है. चीन का व्यापारिक मार्ग भारतीय सैन्य अड्डों के बिल्कुल पास से होकर गुजरता है. ऐसे में युद्ध की स्थिति में भारत की नौसेना चीन की सप्लाई लाइन काटकर उसको पंगु बना सकती है.  

इसके अलावा भारत के तरकश में काली जैसे कई गुप्त हथियार मौजूद हैं, जिनके बारे में दुनिया को आधिकारिक रुप से कोई जानकारी ही नहीं है. ये पूरे जंग का पासा अकेले पलटने में सक्षम हैं. 

5. भारतीय बाजार की ताकत
135 करोड़ की आबादी वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है. वहीं चीन दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री और निर्यातक देश है. कोरोना संकट के काल में चीन के माल की सप्लाई अमेरिका और यूरोप में लगभग बंद है. ऐसे में भारत चीन के उत्पादों का बड़ा खरीदार है. चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है.  भारत से व्यापार करके चीन हर साल लाखों करोड़ों युआन का मुनाफा कमाता है.  
चीन अगर भारत के खिलाफ किसी तरह की सैन्य कार्रवाई करता है. तो भारत सबसे पहले उसके यहां से आयात बंद कर देगा. यह ड्रैगन की आर्थिक रीढ़ पर सबसे करारी चोट होगी. क्योंकि चीन लगातार उत्पादन में लगा रहता है. उसके लिए भारत के विशाल बाजार की अनदेखी कर पाना संभव ही नहीं है. 
भारत के खिलाफ किसी तरह के सैन्य संघर्ष की शुरुआत चीन के व्यापारियों को तबाह कर देगा. वहां भारी संख्या में बेरोजगारी फैल जाएगी. जिससे चीन में आंतरिक विद्रोह की स्थिति पैदा हो सकती है. चीन इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकता है.


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