नई दिल्ली: कांग्रेस के 70 सालों के शासनकाल में विदेशी मोर्चों पर जिस तरह की मूर्खता का परिचय दिया गया था. उसी का एक उदाहरण है नेपाल की समस्या. जहां भारत विरोधी वामपंथी सरकार सत्ता में आ गई है. जो कि अपने बड़े भाई रुपी भारत को आंखे दिखाने की जुर्रत कर रही है. हालांकि नेपाल की आम जनता के दिल में भारत के प्रति किसी तरह का मैल नहीं है. वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भारत का महत्व जानती है, इसलिए वह खुद ही अपनी सरकार की मुखालफत पर उतर आई है. जिसके बाद नेपाल से चीन परस्त कम्युनिस्ट सरकार का खूंटा उखड़ना तय है.
 
नेपाल की वामपंथी सरकार की हठधर्मी
भारत नेपाल की सीमाओं का निर्धारण 1814-16 की सुगौली संधि के तहत होता है. जिसमें नेपाल की सीमा का निर्धारण पश्चिम में काली नदी और पूर्व दिशा में मेची नदी तक किया गया. नेपाल और भारत इसी संधि को मानने का दावा करते हैं. लेकिन विवाद का विषय ये है कि जिस काली या महाकाली नदी को उत्तर की सीमा मानी गई. उस काली नदी को तीन जलधाराएं लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख मिलकर तैयार करती हैं. 


लेकिन नेपाल अब कहने लगा है कि वह काली नदी की शुरुआत सबसे पश्चिम की धारा लिम्पियाधुरा से मानता है. लेकिन भारत का कहना है कि काली नदी लिपुलेख की धारा से मानी जाती है. 

भारत का दावा इसलिए सही है. क्योंकि इन सभी धाराओं के बीच में लगभग 80 किलोमीटर का इलाका है जो लगभग 200 सालों से भारत के ही कब्जे में है. अब नेपाल नया नक्शा पास करके भारत से झगड़ा मोल ले रहा है. 
नेपाल को अपनी सीमा रेखा के निर्धारण की बात तब ध्यान में आई. जब भारत ने इस इलाके में मानसरोवर यात्रा के लिए एक सड़क तैयार की. इस सड़क के तैयार होने में कई महीनों का समय लगा. लेकिन नेपाल की कोई आपत्ति नहीं आई. लेकिन जैसे ही सड़क तैयार हुई तो नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने चीन के इशारे पर हंगामा शुरु कर दिया. क्योंकि इस सड़क की वजह से चीन की सीमा तक भारतीय सेना की सीधी पहुंच बन गई थी.


अपनी ही कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ है नेपाली जनता
नेपाल में प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली भले ही चीन की गोदी में बैठकर भारत को आंखें दिखा रहे हों. लेकिन नेपाल की जनता सच जानती है. यही वजह है कि नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार के भारत विरोधी रवैये के खिलाफ खुद वहां की जनता उतर आई है.  
ओली नेपाल के संविधान में संशोधन करके भारत विरोधी नक्शे को पास कराना चाहते हैं. लेकिन नेपाल की जनता सच जानती है. इसलिए वह अपनी सरकार के इस आत्मघाती रवैये का समर्थन नहीं कर रही है. वहां कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ प्रदर्शन चलते ही रहते हैं.


नेपाल की राजधानी काठमांडू में वहां के नागरिक अपनी सरकार के भारत विरोधी रवैये के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.
नेपाल की जनता अच्छी तरह जानती है कि भारत से दुश्मनी मोल लेकर उनकी जिंदगी मुश्किल हो जाएगी. अगर भारत ने अपनी सीमाएं बंद कर दीं तो चीन का समर्थन भी नेपाल को बचा नहीं पाएगा. क्योंकि नेपाल चारो तरफ से भारत से घिरा हुआ है. और पीछे की तरफ हिमालय पर्वत है. 
नेपाल में वामपंथियों के अलावा बाकी के राजनीतिक दल भी भारत का समर्थन कर रहे हैं. हालांकि नेपाल की हिंसक कम्युनिस्ट सरकार भारत समर्थक नेताओं पर हमले करवा रही है.


कांग्रेस की मूर्खता की देन है नेपाल समस्या
नेपाल की पीठ पर चीन खड़ा है. जो कि भारत से झगड़े का फायदा उठाना चाहता है. लेकिन चीन को लाभ पहुंचाने के लिए नेपाल को भारत से दूर करने की मूर्खता कांग्रेस सरकार के दौरान हुई.
नेपाल दुनिया का इकलौता हिंदू देश है. वह सांस्कृतिक और धार्मिक रुप से भारत के बेहद करीब है. ये बात चीन को भी खटकती थी और सनातन विरोधी कांग्रेस की सरकार को भी.
नेपाल के राजाओं के मिलिट्री सेक्रेटरी रह चुके जनरल बिवेक शाह ने अपनी किताब 'माइले देखेको दरबार' (राजमहल, जैसा मैंने देखा) में साफ तौर पर आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार के शासनकाल में नेपाल के माओवादियों को भारत की जमीन पर ट्रेनिंग दी गई थी. ठीक उसी तरह जिस तरह राजीव गांधी ने तमिल आतंकवादियों को भारतीय जमीन पर ट्रेनिंग देने की मूर्खता की थी. 
 
 
ऐसी खबर है कि साल 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ नेपाल की यात्रा की थी.


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इस यात्रा के दौरान विश्वप्रसिद्ध हिंदू मंदिर पशुपतिनाथ में सोनिया गांधी को ईसाई होने की वजह से घुसने नहीं दिया गया था. जिसे राजीव गांधी ने अपनी निजी बेइज्जती के तौर पर लिया और नेपाल के खिलाफ साजिशें शुरु कर दी.


 



इसका नतीजा ये रहा कि भारत का सच्चा दोस्त नेपाल धीरे धीरे भारत से दूर होता चला गया. कांग्रेस सरकार के षड्यंत्र और राजीव गांधी की मूर्खता को भारतीय खुफिया संस्था रॉ के पूर्व मुखिया अमर भूषण ने अपनी किताब 'इनसाइड नेपाल' में विस्तार से लिखा है.



चीन ने कांग्रेस सरकार की मूर्खता का केवल लाभ उठाया है. भारत के वास्तविक दोस्त नेपाल को खुद से दूर करने का काम कांग्रेस शासन काल में ही शुरु हो चुका था. अब जरुरत है नेपाल से वामपंथी सरकार के जहरीले पेड़ को हमेशा के लिए खत्म कर देने की. नेपाल की जनता इसके लिए तैयार है. भारत को बस मदद करने की जरुरत है.