नई दिल्ली: दिल्ली (Delhi) के दरवाजे पर डटे हुए हैं हमारे अन्नदाताओं ने कृषि सुधार के तीनों नये कानूनों (Krishi Kanoon) को लेकर आवाज इसलिये उठाई है, क्योंकि उनके मन में कई आशंकाएं है.जिनका वो समाधान चाहते हैं.इसके लिये वो शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं. अन्नदाता की आवाज के साथ देश भी है. ज़ी हिन्दुस्तान चाहता है उनकी खून-पसीने की मेहनत की कमाई उन्हे मिले. ज़ी हिन्दुस्तान चाहता है खेती-किसानी के नये कानून पर उनकी आशंकाओं का समाधान हो.


अन्नदाता ने कब किया राष्ट्रविरोध?


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लेकिन अन्नदाता की इन मांगों के बीच कुछ ऐसी भी आवाजें सुनाई दे रही हैं. जिसमें किसान (Farmer) के हक और बेहतरी की बात नहीं है. इनका एजेंडा अलग है. ये देश को तोड़ने के खतरनाक एजेंडे को हवा देने वाली आवाजें हैं. इसमें पाकिस्तान (Pakistan) जिंदाबाद की आवाजें भी सुनाई दी हैं और खालिस्तान के नारे-पोस्टर भी.


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ज़ी हिन्दुस्तान (Zee Hindustan) अन्नदाताओं के आंदोलन को इन्हीं जहरीली आवाजों से सतर्क करना चाहता है, जो किसानों की आवाज में घुल मिलकर देशविरोधी साजिश की रोटियां सेंकना चाहते हैं. ऐसे अराजक तत्वों ने बेहद शातिराना अंदाज में किसान आंदोलन (Farmer Protest) में घुसपैठ की है.


अन्नदाता ने कब चुना, आतंक का रास्ता?


इसकी झलक आंदोलन के शुरुआत में ही पंजाब (Punjab) के बरनाला में दिख गई थी. जहां भिंडरावाले के पोस्टर के साथ रेलवे लाइनों की घेराबंदी की गई थी. और फिर दिल्ली के बाहर डेरा डाले किसानों के बीच कुछ ट्रैक्टरों पर खालिस्तान के स्टिकर दिखने लगे थे.


अन्नदाता ने कब फैलाई अराजकता?


अन्नदाता के आंदोलन को हाईजैक करने की कोशिश उन राजनीतिक दलों ने भी की, जिनके तुष्टिकरण और बंटवारे की सियासत की पोल मोदी सरकार की विकासवादी राजनीति ने खोल कर रख दी है. जिन्हें जनता पिछले कई चुनाव में आईना दिखा चुकी है.


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ऐसी राजनीतिक शख्सियतें, ऐसी पार्टियां सियासत में उखड़ रहे अपने पैरों को जमाने के लिये किसान आंदोलन से चिपक गई हैं. वो किसानों की भलाई का हल्ला मचाकर मोदी विरोध की राजनीति कर रही हैं.


9 दिसंबर को किसानों (Farmers) के साथ सरकार (Government) की बातचीत होनी थी. उसके ठीक एक दिन पहले ऐसी 11 विपक्षी पार्टियों ने भारत बंद (Bharat Bandh) का ऐलान कर दिया. 8 दिसंबर को देश भर से ऐसी तस्वीरें आई थीं. जिसमें सड़कों पर टायर सुलगाए जा रहे थे, पुतले फूंके जा रहे थे और तोड़फोड़ मचाई जा रही थी. केंद्र सरकार को लानत भेजी जा रही थी. ये सब किसान आंदोलन को समर्थन देने के नाम पर हो रहा था.


ज़ी हिन्दुस्तान आप से पूछ रहा है कि उस हंगामे में आपको कहीं किसान दिखा था? वो किसान जो देश का अन्नदाता है.वो अन्नदाता जो पीएम मोदी का जबर्दस्त समर्थन करता रहा है. ज़ी हिन्दुस्तान का सवाल तो ये है कि, उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन को समर्थन देने के नाम पर, देश भर में आग क्यों लगाई जा रही है?


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8 दिसंबर का वो हंगामा बता रहा था कि आंदोलन के चूल्हे पर राजनीति की रोटियां सेकने के लिये हर कोई उतारू है. क्यों.. क्योंकि उनकी असली रणनीति आने वाले चुनावों में कृषि कानूनों की चुनावी फसल काटने की है.


किसान आंदोलन को किसने किया हाईजैक?


अन्नदाता का साथ देने की बात करने वाली हर राजनीतिक पार्टी अंदर से यही चाह रही है कि. शांतिप्रिय प्रदर्शन करने वाले किसान इस कदर उत्पात मचायें कि सरकार उन पर लाठी चलाने के लिये मजबूर हो जाए. आंदोलनकारी किसानों के बीच अराजक चेहरों की एंट्री करवाना इसी साजिश को परवान चढ़ाने की कोशिश है.


ज़ी हिन्दुस्तान आप से पूछ रहा है कि किसानों के बीच घुसकर देशद्रोह के आरोपियों की रिहाई की मांग करने वाला क्या किसानों का भला कर सकते हैं. क्या खालिस्तान-पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले किसान आंदोलन का कुछ भला कर पाएंगे. हम यही चाहते हैं कि किसान भाई ये समझें कि उनके बीच वो नकली और फर्जी किसान कौन हैं जो सिर्फ अपना एजेंडा चमकाने के लिए घुस आए हैं?


मोदी सरकार इस सियासी साजिश को बखूबी समझ रही है. अच्छी बात ये है कि आंदोलनकारी किसान भी अब इसे महसूस करने लगे हैं. यानी अन्नदाताओं की आड़ लेकर अपना एजेंडा चमकाने का शातिर खेल अब ज्यादा चलने वाला नहीं है.


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