नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली बंधक सी है, खेतों पर पसीना बहाने वाला अन्नदाता दिल्ली के बॉर्डर पर डटा है. कड़ाके की ठंड और तमाम दिक्कतों के बावजूद वो अड़ा है क्योंकि सवाल उसके हक का है, बात उसके खून-पसीने की है. कड़ाके की ठंड और तमाम दिक्कतों के बावजूद किसान हिलने को तैयार नहीं है, सरकार से 5 दौर की बातचीत विफल हो गई. गृहमंत्री अमित शाह से बातचीत और कानून में संशोधन का लिखित प्रस्ताव भी किसानों को नाकाफी लगा, अब सवाल ये है कि आखिर विवाद का हल कैसे निकलेगा?
पीएम का भरोसा, मंत्रियों की अपील
किसानों ने बिल में संशोधन का सरकार का प्रस्ताव खारिज कर दिया है, बातचीत का रास्ता बंद होता दिख रहा है लेकिन किसान डटे हैं. संवादहीनता खत्म करने के लिए पीएम मोदी कई बार किसानों से अपील कर चुके है. एक बार फिर उन्होंने किसानों की हर आशंका पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि तीनों कृषि बिलों से किसानों की आय में बढ़ा इजाफा होगा, मंडियों के अलावा फसल बेचने के लिए नए रास्ते खुलेंगे. पीएम ने साफ कहा कि सरकार जो भी कर रही है वो किसान भाइयों की भलाई के लिए ही तो कर रही है, लेकिन लगता नहीं कि पीएम के भरोसे पर किसानों को भरोसा हो रहा है, तभी तो किसान डटे हैं हालांकि किसानों ने एक बार फिर कहा है कि वो बातचीत के लिए तैयार है. लेकिन बातचीत होगी किस मुद्दे पर, किसान तो कानूनों की वापसी पर अड़े हैं.
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सरकार ने अब तक क्या किया?
पीएम मोदी ने साफ कर दिया है कि वो किसानों के साथ है, किसानों का काम सड़कों पर बैठना नहीं खेतों पर अन्न उपजाना है, वो अन्नदाता हैं. केंद्रीय मंत्री भी बार-बार कह रहे हैं कि बातचीत से ही बात बनेगी, कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने ज़ी हिन्दुस्तान से बातचीत में एक बार फिर कहा कि वो किसानों को हर तरह का भरोसा दे रहे हैं और बातचीत के लिए तैयार हैं. आंदोलन के पहले दिन से ही सरकार एक्टिव है और बातचीत से हल निकालने की कोशिश में है. आइए पहले आपको बताते हैं सरकार ने कृषि कानूनों में संसोधन का क्या प्रस्ताव दिया था.
प्रस्ताव में सरकार की तरफ से साफ किया गया है कि-
MSP खत्म नहीं होगा, सरकार MSP पर कानून भी बनाएगी
मंडी कानून APMC में बदलाव होगा,
प्राइवेट प्लेयर्स को रजिस्ट्रेशन कराना होगा
सरकार कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार देगी
अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन को भी मंजूरी मिलेगी
प्राइवेट प्लेयर्स पर टैक्स लगाने को मंजूरी दी जाएगी
फिलहाल सरकार इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल पेश नहीं करेगी
इसमें बदलाव के बाद ही सदन में पेश किया जाएगा.
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गृहमंत्री अमित शाह ने बीते मंगलवार को किसान संगठनों के नेताओं से कानूनों में क्या संशोधन हो सकते हैं इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की थी, इसके बाद लिखित में ये प्रस्ताव दिया गया लेकिन किसान नेताओं ने संशोधन के प्रस्ताव को भी सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि इसमें कुछ नया नहीं है. सरकार ने फिर साफ कहा है कि वो जायज मांगों पर बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन बातचीत के बैरिकेट्स हट नहीं रहे.
सरकार के भरोसे पर भरोसा क्यों नहीं?
बड़ा सवाल ये है कि सरकार के भरोसे पर किसान संगठनों को भरोसा क्यों नहीं हो रहा, क्या उन्हें लग रहा है कि सरकार छल कर रही है. दरअसल, किसानों की नीयत भी साफ है और सरकार भी किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिए गंभीर है. दिक्कत उनकी है जो किसानों के जरिए सरकार को और देश को अस्थिर करने का एजेंडा चला रहे हैं तो क्या ये माना जाए कि किसानों को कोई भड़का रहा है, अन्नदाता की आड़ में सियासी रोटी सेंकी जा रही है.
सरकार की कोशिश हर हाल में आंदोलन खत्म करने का है, तभी बार-बार बातचीत की जा रही है, किसानों की बातें सुनी जा रही हैं. आंदोलन से पहले भी सरकार बात कर रही थी लेकिन किसान सड़क पर उतर गए. किसान जब दिल्ली पहुंचे थे तभी गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कहा था कि वो हर मुद्दे पर चर्चा को तैयार हैं कई दौर की बात हुई लेकिन आशंकाएं खत्म नहीं हुईं. आइए देखते हैं कि आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार ने अब तक क्या-क्या किया है.
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की अगुवाई में मंत्रियों ने किसानों से 5 दौर की बातचीत की लेकिन हल नहीं निकला
पीएम आवास में मंत्रियों के बीच कई दौर की बातचीत हुई, पीएम और गृहमंत्री से कृषि मंत्री तोमर ने किसानों से चर्चा के बाद वार्ता की
8 दिसंबर को गृहमंत्री ने 13 किसान नेताओं से तीनों कानूनों में संशोधन पर विस्तार से चर्चा की
9 दिसंबर को सरकार की तरफ से संशोधन प्रस्ताव किसानों को सौंपा गया
10 दिसंबर को किसानों ने आपस में चर्चा के बाद सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया
12 दिसंबर को पीएम मोदी ने एक बार फिर कृषि कानूनों पर विस्तार से बात की और किसानों की हर आशंका को दूर करने की कोशिश की
संवाद से ही बनेगी बात?
पीएम से लेकर सरकार के मंत्री तक लगातार किसानों के साथ संवाद कर रहे हैं. सरकार साफ कह रही है कि किसान जिस तरह का संशोधन चाहेंगे सरकार करेगी, यानी किसानों की मांग से सरकार को इंकार नहीं है. ऐसे में क्या माना जाए कि आखिर किसानों को कौन भड़का रहा है? कौन लोग हैं जो नहीं चाहते कि बातचीत सफल हो? हालांकि कुछ किसान संगठनों ने 14 दिसंबर को सरकार से बातचीत का प्रस्ताव दिया है उम्मीद कायम है. रास्ता जरूर निकलेगा और अन्नदाता फिर से खेतों में होगा.
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