Toy Fair: आइए आपको ले चलें खिलौनों के जहां में...
पीएम मोदी ने 27 फरवरी को पहले वर्चुअल खिलौना मेला का उद्घाटन किया. कोरोना के कारण यह मेला Online आयोजित हो रहा है. यहां आपको अलग-अलग प्रदेशों की संस्कृति के खिलौने देखने को मिलेंगे.
नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (27 फरवरी) को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पहले खिलौना मेला की शुरुआत करने जा रहे हैं. खेल-खिलौनों का नाम लेते ही अगर आपको बॉर्बी, बैनटेन या डोरेमन याद आते हैं तो So Sorry! आप भारतीय खिलौनों को जानते ही नहीं हैं. अगर भारतीय खिलौनों के नाम पर आपको बस कठपुतली या फिर कपड़ों के गुच्छे से बने खिलौने याद आते हैं तो Sorry again, आप भारतीय खिलौनों की समृद्ध परंपरा से बिल्कुल ही अंजान हैं.
जितने प्रदेश, उतने रंग और उतने ही रंगीन खिलौने
27 फरवरी से 2 मार्च 2021 तक चलने वाला यह खेल मेला आपको भारतीय खिलौनों की इसी रंग-बिरंगी दुनिया में ले चलेगा. यहां कश्मीर से कन्याकुमारी तक की सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखने वाले खिलौने, अलग-अलग पारंपरिक परिधानों में सजे गुड्डे-गुड़ियां, पालतू-जंगली जानवर और पक्षी मिलेंगे. जितने प्रदेश, उतने रंग और उतने ही रंगीन खिलौने.
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खिलौनों के इस छोटे से देश में आपको कराते हैं छोटा सा सफर, जहां आप जान पाएंगे इस इस वर्चुअल खिलौना मेला में आपको क्या-क्या देखने को मिल सकता है. खिलौना मेला (Toy Fair) में इस फेयर में सिर्फ भारत में बनी हैडिक्रॉफ्ट (हस्तशिल्प) से बने खिलौने ही मिलेंगे.
1. कोंडापल्ली खिलौने, जिनमें जी उठती हैं भारतीय पुराण कथाएं
रामायण-महाभारत की कहानियां तो आपने पढ़ी ही होंगी और इन्हें टीवी पर देखा भी है. जैसे टीवी पर आने वाला डोरेमन बाजार में खिलौना बनके बिकता है. ठीक वैसे ही आंध्र प्रदेश के कोंडापल्ली में सदियों से इन पौराणिक किरदारों पर खिलौने गढ़े जा रहे हैं. इसी स्थान विशेष के कारण इन्हें कोंडापल्ली खिलौना कहते हैं.
इन खिलौनों का इतिहास तकरीबन 400 साल पुराना बताया जाता है, लेकिन खिलौना बनाने की यह संस्कृति पौराणिक काल से ही है, जिसका जिक्र ब्रह्मांड पुराण में भी मिलता है. कलाकार इनको बनाते और खासकर इनमें रंग भरते हुए बारीक कारीगरी का प्रयोग करते हैं. आंखों को खुशी देने वाले ये खिलौने 500 से 4000 रुपये तक में बिकते हैं. तेल्ला पोनिकी पेड़ की लकड़ी से बनने वाले इस खिलौने को GI टैग भी मिला है.
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2. बनारसी लकड़ी के खिलौने
मुक्ति का मार्ग बताने वाला जिंदा शहर बनारस में खिलौने भी ऐसे बनते हैं कि लगता है अब बोले कि तब बोले. वाराणसी में खोजवां के कश्मीरीगंज का इलाका लकड़ी के खिलौने बनाने का मुख्य केंद्र है. लकड़ी के बने इन खिलौनों की सबसे बड़ी खासियत होती है कि इनमें कोई जोड़ नहीं होता.
घर की सजावट के लिए, बच्चों के खेल के लिए बनने वाले इन खिलौनों में जानवर, पक्षी, देवी-देवताओं का बनाया जाना खास होता है. दिवाली सहित कई त्योहारों पर यहां के बने लकड़ी के देवी-देवताओं की पूजा के लिए भी खास मांग होती है. वहीं विदेशियों को तो ये खासतौर पर लुभाते हैं. इस खिलौने को भी भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग मिल चुका है.
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3. खूब लुभाती है नातुनग्राम की गुड़िया
पं. बंगाल के बर्धमान में है नातुनग्राम. यहां कि खासियत लकड़ी के बनने वाले खिलौने हैं. नातुनग्राम गांव में बनने की वजह से ही इसका नाम नातुनग्राम की गुड़िया है. लोग इसे वैसे नातुनग्राम का उल्लू भी कहते हैं. क्योंकि यहां के ज्यादातर खिलौने उल्लू के आकार के होते है. ये खिलौने लकड़ी को बहुत खास तरीके से काट कर बनाए जाते हैं. बेहतरीन और पक्के रंगो का इस्तेमाल इन्हें खास बना देता है.
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ऐसा नहीं है कि नातुनग्राम में सिर्फ उल्लू ही बनता है. असल में ये खिलौने बंगाल के भक्ति आंदोलन से जुड़े हैं. 15-16 वीं शताब्दी में खिलौने कि शक्ल में राधा-कृष्ण और गौर-निताई की डॉल बनाई गईं. तब इनका एक धार्मिक महत्व होता था. इस खिलौने की कीमत 30 रुपये से शुरू होकर 30 हजार भी जाती है.
4. बत्तो बाई की आदिवासी गुड़िया
मध्य प्रदेश की खास पहचान है यहां की बत्तोबाई की आदिवासी गुड़िया. ये गुड़िया झबुआ,भोपाल और ग्वालियर में खास तौर पर बनाई जाती है. ये यहां आदिवासी इलाकों में बनती हैं. इसका नाम बत्तो बाई की आदिवासी गुड़िया इसलिए है क्योंकि इस गुड़िया को पहचान दिलाने वाली महिला का नाम बत्तो बाई था.
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इसको बनाने में कॉटन और चटख रंगों का इस्तेमाल होता है. इसको बहुत ही खूबसूरत जूलरी और पहनावे पहनाए जाते हैं. इसकी कीमत 150 से 200 रुपये होती है. इसकी ये मान्यता भी है की अगर गुड़िया के जोड़े को खरीद कर किसी कुंवारी लड़की को तोहफे में दिया जाए तो उसकी जल्दी ही शादी हो जाती है.
5.तंजावुर डॉलः जिसकी गरदन हिलती रहती है
तंजावुर डॉल आपने कई टीवी ऐड में तो जरूर ही देखी होगी. वही जिसकी गरदन और कमर हिलती रहती है. ये गुड़िया अपने आप में ही बड़ी अनोखी है. तमिलनाडु के तंजावुर में बनाई जाने वाली इस डॉल को भारत सरकार की तरफ से खास जीआई टैग दिया जा चुका है. यह मिट्टी से बनाई जाती है और इसकी गर्दन और कमर का हिस्सा कुछ इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि जरा सी हरकत से ही यह हिलना शुरू हो जाती है.
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बेहतरीन क्वॉलिटी की तंजावुर डॉल तो फूक मारने से भी डांस करना शुरू कर देती है. इसे एक साउथ इंडियन डांसर के तौर पर डिजाइन किया जाता है. इसका अनोखा डिजाइन और खूबसूरत रंग इसकी खासियत हैं. इसकी कीमत 500 से शुरू होकर 5000 तक जाती है.
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