नई दिल्लीः Indian Navy Day, story of unsung warrior mahendra nath mulla: समंदर में उठते बवंडर से भी मजबूत होते हैं उस जवान के हौसले जो उसके सीने और डरावनी लहरों पर खड़े होकर चुनौती देते हैं उन दुश्मनों को जो देश के लिए मुसीबत बनते हैं. देश की सरहदों कि निगाह बने हमारे जवानों के ऐसे अनगिनत बहादुरी के किस्से आपने सुने होंगे. लेकिन आज यानी कि 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस के दिन हम आपको उस हीरो के बारे में बताएंगे, जो न सिर्फ मिसाल बना बल्कि उसने सिखाया की मरकर जीना किसे कहते हैं.उस शख्स का नाम है महेंद्र नाथ मुल्ला.


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ये कहानी 1971 की है...
वो साल था 1971 देश की पीएम थी इंदिरा गांधी. भारत और पाकिस्तान में युद्ध शुरू हो गया था. दोनों देशों की सेनाएं मुस्तैद थी. इसी बीच 6 दिसंबर को नेवी को एक खबर मिली की कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास मंडरा रही है.



नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को लगाया गया. इसी खुखरी पर सवार थे कैप्टन मुल्ला.


रात का समाचार और बेटी को लेटर
पाकिस्तान की जिस पनडुब्बी की खोज खुखरी और कृपाण कर रहे थे उसका नाम था हंगोर, जो बहुत आधुनिक मानी जाती थी. मुल्ला उस समय अपनी बेटी को एक पत्र लिख रहे थे और उसपर खफा थे. वो इस बात को लेकर चिंतित थे कि आखिर उनकी 14 साल की बेटी के 90 प्रतिशत से ज्यादा नंबर क्यों नहीं आते. वो बेटी को समझाते हुए लिखते हैं कि तुम मेस के खराब खाने पर सवाल उठाती हो लेकिन तुम ये नहीं सोचती की तुम कितनी खुशनसीब हो जिसे दो वक्त की रोटी मिल रही है. मुल्ला बेटी को ताकतवर बनाने की सीख दे रहे थे बिल्कुल अपने जैसा.



इसी बीच खुखरी पर एक धमाके की आवाज ने सभी को हिलाकर रख दिया. मुल्ला अपनी कुर्सी से नीचे गिर गए. दरअसल पाकिस्तानी पनडुब्बी को खुखरी का पता चल गया था. धमका इतनी तेज था कि खुखरी में आग लग गई और पानी भरने लगा. जवानों में अफरातफरी मच गई. वो संभल ही पाते की एक और धमाका हुआ.


मुल्ला ने सिग्नल भेजा की हमपर अटैक हुआ है. मुल्ला ने अपने साथियों को आदेश दिया की अपने जान बचाओ.


मुल्ला ने लात मारकर नीचे गिराया
इसी बीच एक लेफ्टिनेंट मुल्ला के पास पहुंचे और उन्होंने कहा- अपनी जान बचाइए कैप्टन. मुल्ला बोले आप अपनी फिक्र करिए. लेफ्टिनेंट ने बर्फ से भी ठंडे अरब सागर में छलांग लगा दी. लेकिन मुल्ला अपनी खुखरी से हिले भी नहीं. मुल्ला लगातार लोगों को पनडुब्बी से बाहर निकालते रहे. दो अफसर साथी मुल्ला को भी अपने साथ लेकर पानी में कूदना चाहते थे, लेकिन मुल्ला ने उन्हें फटाफट नीचे धकेल दिया.


अपनी लाइफ जैकेट दे दी
मुल्ला ने आखिरी वक्त तक लोगों को बचाने की कोशिश की, लेकिन जब पानी नाव को डुबाने लगा तो मुल्ला ने अपनी लाइफ जैकेट अपने एक साथी की ओर बढ़ा दी. ये देखकर सभी हैरान रह गए. किसी ने कहा- कैप्टन आप तो मुल्ला ने बिल्कुल सधी और निडर आवाज में कहा- कैप्टन अपनी पोत नहीं छोड़ेगा. आप अपनी फिक्र करो.


मुल्ला ने जलाई सिगरेट
इसके बाद मुल्ला पोत के सबसे ऊपरी हिस्से पर चढ़े और अरब सागर को घूरकर देखा. जेब से एक सिगरेट निकाली और कश खींचने लगे. पानी मुल्ला को डूबो रहा था, समंदर उसे अपने गर्त में खींच रहा था लेकिन मुल्ला का हौसला बढ़ रहा था. मुल्ला को मौत का डर नहीं था बल्कि उन्हें फक्र था कि उन्होंने मरते दम तक अपनी पोत का साथ नहीं छोड़ा.



दुनिया के कई नेवी ऑपरेशन में जब जहाज डूबे तो ये देखा गया कि कैप्टन अपनी जान बचाकर भाग निकले लेकिन मुल्ला किसी दूसरी मिट्टी के बने थे. उनका ये जज्बा देखकर हर कोई हैरान रह गया था. मुल्ला ने सिखाया की वो भले ही शहीद हो गए हों लेकिन उनकी बहादुरी की यादें आज भी जिंदा हैं. उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.


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