नई दिल्ली: भारत और चीन एशिया के दो बड़े और जिम्मेदार देश हैं. दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद तो है, लेकिन यह इतना ज्यादा गहरा कभी नहीं होता कि बंदूकें चल जाएं. 15-16 जून की रात को गलवान घाटी के पेट्रोल प्वाइंट-14 पर यही हुआ.


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अनिर्णित सीमा फिर बनी तकरार की वजह 
भारत चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद है. भारत अंग्रेजों के जमाने की मैकमोहन लाइन को सीमा रेखा मानता है. लेकिन चीन को ये स्वीकार नहीं है. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच सीमा रेखा कई जगहों पर अनिर्णित है. दोनों देशों की फौजें बढ़ चढ़कर सीमा पर अपनी जमीन होने का दावा करती हैं. हालांकि ये विवाद स्थायी नहीं होता.
इसी तरह पूर्वी लद्दाख इलाके में चीन की फौज आगे आकर कैंप लगाकर बैठ गई थी. जिसके बाद भारत चीन के बीच अधिकारी स्तर की बातचीत शुरु हुई. जिसमें यह तय किया गया कि दोनो देशों की फौजें अप्रैल में जहां थीं. अपनी अपनी उसी पोजिशन पर लौट जाएंगी.


   
चीनी सैनिकों ने खोया जोश में होश
चीन का राजनीतिक और वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व वैश्विक परिस्थितियों और भारत से आपसी अंडरस्टैंडिंग की वजह से पुरानी पोजिशन पर लौटने के लिए तैयार था. लेकिन सीमा पर तैनात चीनी फौज खुद को यह भ्रम है कि वह भारतीय सेना से ज्यादा ताकतवर है. इसकी वजह ये है कि चीनी सिपाहियों को ट्रेनिंग के समय 1962 के युद्ध का इतिहास पढ़ाया जाता है. जिसकी वजह से वो खुद को ज्यादा सक्षम मानने की गलतफहमी में रहते हैं. 
15 जून की रात भी पेट्रोल प्वाइंट-14 पर यही हुआ. चीन की सेना को अपने वरिष्ठ अधिकारियों का फैसला बेहद नागवार गुजरा. क्योंकि उन्हें लग रहा था कि सीमा पर उनकी संख्या ज्यादा है. इसलिए वह क्यों अपनी पोस्ट से पीछे हटें?
लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि भारतीय फौजियों का आत्मबल उनके संख्याबल पर कितना भारी पड़ने वाला है.


 
इस बार भारत चीन झगड़े की पृष्ठभूमि ऐसे तैयार हुई
भारतीय पक्ष से कमांडिंग ऑफिसर संतोष बाबू अपनी पेट्रोलिंग पार्टी के 20 फौजियों के साथ चीन के कमांडिंग ऑफिसर से बात करने पहुंचे थे. वह उन्हें समझाने गए थे कि चूंकि वरिष्ठ अधिकारियों ने अप्रैल की स्थिति बहाल करने का फैसला किया है. इसलिए वह अपनी पुरानी पोस्ट पर कब लौट रहे हैं?
चीन की जिस सैन्य टुकड़ी से संतोष बाबू बात करने गए थे उसने एक कच्ची पहाड़ी पर अपना कैंप लगा रखा था. जिसके एक तरफ गहरी खाई में पानी भरा हुआ था. यहां पर लगभग 300 से 325 चीनी फौजी मौजूद थे.  
संतोष बाबू और चीन के कमांडिंग ऑफिसर के बीच अभी बात चल ही रही थी कि चीनी फौजी उग्र होने लगे. उन्हें लग रहा था कि भारतीय गश्ती दल मात्र 20 की संख्या में है और वह 300 हैं. ऐसे में वह उनपर हावी हो सकते हैं. लेकिन ये गलतफहमी उन्हें भारी पड़ी.


 
शुरु हो गई हाथापाई और मारपीट
चीन के 300 फौजियों ने भारतीय गश्ती दल के 20 सिपाहियों को घेर लिया और उन्हें उकसाने के साथ साथ पत्थरों, लोहे की रॉड से हमला कर दिया. चीनी फौजी हाथों में कीलों वाले दस्ताने पहने हुए थे. उनका इरादा भारतीय फौजियों को बुरी तरह जख्मी करके भगा देने का था. 
क्योंकि इसके पहले चीनी सिपाही कई बार भारतीय फौजियों से मार खा चुके थे. इस बार वह अपना सारा गुस्सा इन 20 भारतीय फौजियों पर निकाल लेना चाहते थे. लेकिन ये गलती उन्हें भारी पड़ी. 
20 भारतीय फौजियों के गश्ती दल के पीछे ही भारतीय सेना के 35 और सिपाही मौजूद थे. उन्होंने वायरलेस पर जब झगड़े का शोर सुना तो तुरंत पहुंच गए. इसके बाद 300 चीनी और 55 भारतीय फौजियों के बीच जबरदस्त मारपीट और झगड़ा शुरु हो गया. 
किसी पक्ष ने गोली नहीं चलाई
दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर गोली नहीं चलाई. क्योंकि दोनों तरफ के फौजी जानते थे कि फायरिंग की आवाज सुनते ही पूरी सीमा पर तैनात भारत-चीन फौजें एक दूसरे पर हमला बोल देंगी. इसलिए दोनों तरफ के फौजियों ने अपने बाहुबल के आधार पर मामला निपटा लेने का फैसला किया. 
झील के पास मौजूद कच्ची पहाड़ी दोनो देशों के फौजियों की उठा-पटक और मारपीट से थर्रा गई. चीनी फौजी संख्या में अधिक थे, लेकिन भारतीय सैनिकों की संख्या कम होने के बावजूद उनका हौसला बुलंद था. 
दोनो टुकड़ियों के बीच लाठी-डंडे, रॉड, हॉकी स्टिक, बेसबॉल क्लब, ड्रैगन पंच, पाईप, पत्थर, कीलें, बूट की नोक का जमकर इस्तेमाल हो ही रहा था.



 ढह गया पेट्रोल प्वाइंट-14 का कच्चा टीला


दोनो देशों के फौजियों के बीच अभी लड़ाई चल ही रही थी कि जंग का मैदान बनी वह कच्ची पहाड़ी इतना जुल्म बर्दाश्त नहीं कर पाई. यह टीला ध्वस्त हो गया जिसके बाद भारतीय और चीनी फौजी पीछे ठंडे पानी में गिर पड़े. आपको बता दें कि लद्दाख में मौसम बेहद ठंडा है और तापमान जीरो के आस पास है. 
अचानक टीले के ढहने की वजह से दोनों तरफ के फौजियों को गंभीर चोटें आईं. जो कि इतनी बड़ी संख्या में कैजुअल्टी का कारण बनी. भारतीय फौजी संख्या में कम थे, इसलिए पहाड़ी के धंसने से उनके कम फौजी वीरगति को प्राप्त हुए. जबकी चीनी फौज की पूरी टुकड़ी में 300 से ज्यादा सैनिक थे. इसलिए उनको भारी नुकसान पहुंचा. अभी चीन के 43 फौजियों के मरने की खबर सामने आई है. लेकिन हो सकता है कि मरने वाले चीनी फौजियों की संख्या 50 से भी ज्यादा हो. क्योंकि कई चीनी सैनिक बुरी तरह घायल हुए हैं. इन्हीं घायल फौजियों को अस्पताल पहुंचाने के लिए चीनी सेना के हेलीकॉप्टर उस इलाके पर मंडराते रहे थे.    
इस पूरे घटनाक्रम की खास बात ये रही कि सिर्फ 55 भारतीय जांबाजों ने बिना एक भी गोली चलाए मात्र पत्थरों, लाठियों और डंडों से संख्या में अपने से छह गुना ज्यादा चीनी फौज को वह सबक सिखाया कि उनके होश ठिकाने आ गए. अब चीन की सेना कोई भी हरकत करने से पहले सौ बार जरुर सोचेगी.


(यह पूरा घटनाक्रम सूत्रों से मिली जानकारी पर आधारित है)