नई दिल्ली: संघर्ष किसी भी व्यक्ति को सफलता के उस मुकाम पर पहुंचा देता है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होती. झारखंड की चुटनी देवी इनमें से ही हैं जिन्हें भारत सरकार ने साल 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजे जाने का ऐलान किया है.
डायन प्रथा के खिलाफ लड़ रही हैं लड़ाई
चुटनी देवी झारखंड में उस सामाजिक कुप्रथा से लड़ रही हैं जिसकी शिकार 22 साल पहले वो खुद हुई थीं. इसे झारखंड में डायन या छत्तीसगढ़ में टोनही कहा जाता है. न जाने कितनी महिलाएं इस कुप्रथा का शिकार हुईं और उनका क्या हाल हुआ.
कुछ को तो लोगों ने नंगा करके घुमाया, मल-मूत्र खिलाया, पूरे गांव में घुमाया और पत्थर लाठी, डंडों से मार-मारकर मौत की नींद सुला दिया, वह भी सिर्फ इस वजह से कि लोग उस महिला को डायन समझते थे.
22 साल पहले खुद हुईं थी इस कुरीति की शिकार
झारखंड के सरायकेला के बीरबांस गांव में रहने वाली चुटनी देवी को साल 1999 में उनके ससुराल में डायन प्रथा का शिकार होना पड़ा था. जमशेदपुर के गम्हरिया के करीब स्थित महताइनडीन गांव के लोगों ने उन्हें अचानक डायन की संज्ञा दे दी.
उनके आस-पास अचानक होने वाली घटनाओं के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाने लगा. ऐसे में एक दिन लोगों ने उन्हें डायन बताकर मल-मूत्र पिलाया, पेड़ से बांधकर उनकी पिटाई की और गांव में अर्धनग्न करके गलियों में घसीटा. इसके बाद उन्हें घर और गांव से बाहर निकाल दिया गया.
जान पर भी हुआ था हमला
गांव के बाहर वो झोपड़ी बनाकर परिवार के साथ रहने लगी लेकिन लेकिन वहां पर भी डायन होने के कलंक ने उनका साथ नहीं छोड़ा उनके घर पर लोगों ने हमला किया और उन्हें जान से मारने की कोशिश की लेकिन वो किसी तरह भागकर अपने मायके आ गईं. इसके बाद उनका संपर्क एक सामाजिक संगठन से हुआ जिसके साथ मिलकर उन्होंने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की ठान ली.
अपने दर्द को बनाया दूसरों के लिए दवा
चुटनी देवी ने इसके डायन प्रथा की प्रताड़ित महिलाओं की मदद करने का बीड़ा अपने कंधों पर उठा लिया. उनके मन में इस काम करते हुए भावना थी कि और किसी महिला को उनकी तरह प्रताड़िता न किया जाए. उनका अपना दर्द समय के साथ समाज के लिए दवा बन गया है.
आज इस तरह की किसी भी घटना की सूचना मिलते ही वो अपने लाव-लश्कर के साथ महिला की चौखट तक उसकी मदद के लिए पहुंच जाती हैं.
पहले वो लोगों को इसके बारे में समझाती हैं अगर वो नहीं मानते हैं तो कानून की सहायता से महिला को राहत दिलाती हैं.
अकेले शुरू की थी लड़ाई
चुटनी देवी ने इस सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई अकेले शुरू की थी लेकिन देखते-देखते उनके साथियों की संख्या बढ़ती गई. जिन महिलाओं को डायन कहकर अत्याचार किया गया या करने की कोशिश की गई और चुटनी देवी ने उसकी मदद की वो उनकी संघर्ष यात्रा की साथी बनती गईं. आज 62 महिलाएं उनकी टोली में शामिल हैं और वो अपन आसपास के इलाके में इस तरह की घटनाओं पर अपनी पैनी निगाह रखती हैं. पलक झपकते ही खबर चुटनी देवी तक पहुंचती है.
ऐसे में उनकी टोली को एक्शन में आने में देर नही लगती. उनकी टोली की सभी महिलाएं तकरीबन एक घंटे के प्रताड़ित महिला की मदद के लिए पहुंच जाती हैं और उसे न्याय दिलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती हैं. इस कुरीती के खिलाफ उन्होंने ऐसा हल्ला बोला कि आज पूरे देश से इस कुप्रथा का शिकार हुई महिलाएं उनसे ममद मांगने आती हैं.
100 से अधिक महिलाओं को बचाया
पिछले 22 साल में चुटनी देवी समाज की इस अमानवीय बुराई के खिलाफ लड़ीं और ऐसी 100 से अधिक महिलाओं का सहारा बनीं जिन्हें डायन होने का बोझ लेकर जीना पड़ रहा था. चुटनी निरक्षर हैं लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत के बल पर साक्षर समाज की एक बड़ी कुरीति को चुनौती देकर घुटने के बल चलने को मजबूर कर दिया है.
वो झारखंड में डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है जिसने उन्हें कलंक से उबारकर नया जीवन दिया है. उनके इस जज्बे को मान्यता देने के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उनके इस जज्बे को पूरे देश का सलाम.
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