Kargil: मुश्किल पहाड़ियों पर भारतीय जांबाजों ने जब पाकिस्तान को चटाई थी धूल, पढ़िए वीरता की कहानी

कारगिल की कहानी को सुनने और समझने के बाद ये कहा जाता है कि मैदान पर लड़ी जाने वाली ये अबतक की सबसे मुश्किल लड़ाई थी.   

Written by - Akash Singh | Last Updated : Jul 26, 2021, 10:21 AM IST
  • भारत ने चटाई थी पाकिस्तान को धूल
  • जानिए भारतीय जांबाजों की कहानी
Kargil: मुश्किल पहाड़ियों पर भारतीय जांबाजों ने जब पाकिस्तान को चटाई थी धूल, पढ़िए वीरता की कहानी

नई दिल्लीः कोई एक दिन हर इंसान के लिए खास दिन होता है. उस सामान्य से दिन के बहुत अजीज होने के पीछे कई कहानियां होती हैं, जिसकी यादें ताजा बनाए रखने के लिए हर शख्स उसे खास ढंग से सेलिब्रेट करता है. एक ऐसा ही दिन भारत के लिए भी खास है जिसकी कहानियां आज भी करोड़ों हिंदुस्तानियों को प्रेरित करती हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं 26 जुलाई की, यह वही तारीख है जब भारतीय सेना के जांबाजों ने कारगिल की मुश्किल पहाड़ियों पर चट्टान सा हौसला लेकर पाकिस्तान के नापाक इरादों को धूल चटाई थी. आज का दिन कारगिल विजय दिवस के रूप में याद किया जाता है. 

दुनिया का सबसे मुश्किल युद्ध

कारगिल की कहानी को सुनने और समझने के बाद ये कहा जाता है कि मैदान पर लड़ी जाने वाली ये अबतक की सबसे मुश्किल लड़ाई थी. करीब तीन महीने चली इस लड़ाई में पासा कई बार पलटा. लेकिन वो कहते हैं न कि जीत तो उसी की होती है जो आखिरी बाजी मार ले. पाकिस्तान से मिले इस धोखे वाले युद्ध में भारत का पलड़ा एक समय बहुत कमजोर था.

क्योंकि पाकिस्तान के सैनिकों और घुसपैठियों ने भारत के उन ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था, जहां न तो सैनिक होते थे और ने ही कोई स्थानीय. कई दिनों से चल रही इस घुसपैठ की भनक न तो भारतीय सैनिकों को थी और न ही भारत की सुरक्षा एजेंसियों को और ज ब तक ये भनक किसी को लगती पाकिस्तानी अपने को बहुत मजबूत कर चुके थे. 

क्यों सबसे मुश्किल था कारगिल
कारगिल की ये लड़ाई करीब 100 किलोमीटर के दायरे में लड़ी गई जहां करीब 1700 पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सीमा के करीब 8 या 9 किलोमीटर अंदर घुस आए थे. इस पूरे ऑपरेशन में भारत के 527 सैनिक शहीद हुए और 1363 जवान आहत हुए. बता दें कि फौज में एक कहावत होती है कि 'माउंटेन ईट्स ट्रूप्स,' यानी पहाड़ सैनिकों को खा जाते हैं. अगर ज़मीन पर लड़ाई हो रही हो तो आक्रामक फ़ौज को रक्षक फ़ौज का कम से कम तीन गुना होना चाहिए. पर पहाड़ों में ये संख्या कम से कम नौ गुनी और कारगिल में तो सत्ताइस गुनी होनी चाहिए. 

मतलब अगर वहां दुश्मन का एक जवान बैठा हुआ है तो उसको हटाने के लिए आपको 27 जवान भेजने होंगे. एक समय जब ये युद्द शुरू हुआ तो पाकिस्तान अपनी जीत को लेकर बहुत उत्साहित था, लेकिन उन्हें शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि युद्द सिर्फ हथियारों से नहीं बल्कि हौसलों से जीते जाते हैं. भारतीय सैनिकों ने जब एक-एक करके मुश्किल चोटियों पर कब्जा करना शुरू किया तो पाकिस्तान के सैनिक भाग खड़े हुए. आज आलम ये है कि पाकिस्तान में ही इस युद्द पर सवाल उठ रहे हैं.

इस युद्ध में पाकिस्तान की जब हार हुई तो वहां के लोगों ने अपनी सरकार की नीयत पर सवाल उठाए और इसे पाकिस्तान के इतिहास का सबसे नासमझी वाला कदम बताया गया. क्योंकि उस समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर गले मिल रहे थे. लेकिन पाकिस्तान आदतन भारत के पीठ पर छूरा घोंप रहा था. लेकिन नतीजा वही हुआ पाकिस्तान ने सबकुछ खोया. हजारों लोग घर छोड़ने को मजबूर हुए तो कई सैनिकों की जान गई और अर्थव्यवस्था और खस्ताहाल हो गई.   

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