बेंगलुरु. कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक धार्मिक संरचना (संरक्षण) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. इसे राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने कथित तौर पर सार्वजनिक संपत्तियों पर 'अवैध' धार्मिक इमारतों के संरक्षण के लिए लागू किया था. 


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मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति एम जी एस कमल की खंडपीठ ने बेंगलुरु के डी केशवमूर्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की और नोटिस जारी करने और महाधिवक्ता को तीन सप्ताह के भीतर आपत्तियां दायर करने का निर्देश दिया. याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 3 में अवैध धार्मिक संरचनाओं को हटाने के संबंध में 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को खारिज करने का इरादा है.


सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया गया आधार
याचिका में 29 सितंबर, 2009 को उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया था कि सड़कों और उद्यान जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अवैध धार्मिक संरचनाओं की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. याचिका में दावा किया गया है कि नये अधिनियम में 29 सितंबर 2009 से 21 अक्टूबर 2021 तक निर्मित अवैध इमारतों को संरक्षित करने का प्रस्ताव है.


किन नियमों का दिया गया आधार
याचिका के अनुसार, अवैध धार्मिक इमारतें कर्नाटक नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम 1961, कर्नाटक नगर निगम अधिनियम 1976, कर्नाटक नगर पालिका अधिनियम 1964, बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम 1985 और बीबीएमपी अधिनियम 2020 का उल्लंघन हैं.


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